दुःखी व सुखी लोगो में 21 बड़े अन्तर Difference Between Happy People Vs Sad People In Hindi
Difference Between Happy People Vs Sad People In Hindi
सुख व दुःख तो जीवन के कालचक्र के दो फलक होते हैं जो क्रम से एक-एक करके आजीवन आते-जाते रहते हैं फिर भी कुछ व्यक्ति बात-बात पर दुःखी हो जाते हैं या दुःख को पकड़कर बैठ जाते हैं।
सुखी व दुःखी व्यक्तियों में अन्तर पहचानना सरल भी हो सकता है व कठिन भी क्योंकि अनेक व्यक्ति दुःखी होकर भी दिखावे के लिये मुस्कुरा रहे होते हैं तो कई व्यक्ति सुखी होकर भी विभिन्न बहाने खोज-खोज स्वयं को पीड़ित अथवा दुःखी घोषित करने का परिश्रम कर रहे होते हैं.
किन्तु फिर भी यहाँ सुखी व दुःखी व्यक्तियों में अन्तर करने के कुछ प्रयास किये जा रहे हैं किन्तु ध्यान रखें कि इसमें से कई अन्तर सब पर समान रूप से लागू नहीं होते तथा कई अन्तरों में दोनों पक्षों में कुछ अच्छाइयाँ व कुछ बुराइयाँ एक साथ हो सकती हैं. अतः आप भी इन लक्षणों के आधार पर किसी को दुःखी अथवा सुखी घोषित मत कर बैठना.
Difference Between Happy People Vs Sad People In Hindi
1. सम्भव है कि दुःखी व्यक्ति स्वयं में खोया-खोया-सा लगे जबकि सुखी व्यक्ति आसपास के परिवेश से प्रतिक्रियाशील दिखे।
2. हो सकता है कि दुःखी व्यक्ति आशाओं के बीच भी निराशा ढूँढ ले परन्तु सुखी व्यक्तियों को निराशाओं के भँवर में भी आशा की डोर नज़र आने लगे।
3. आशंका रहती है कि दुःखी व्यक्ति अपने अतीत के कष्टों की छाप अपने वर्तमान व भविष्य पर पड़ने देगा व हतोत्साहित रहेगा कि मेरा कुछ नहीं होने वाला परन्तु सम्भावना है कि सुखी व्यक्ति नित नवीन कुछ अच्छा करने को प्रोत्साहित रहे। दुःखी के भाग्यवादी व सुखी के कुछ कर्मवादी होने की सम्भावना भी रहती है।
4. सुखी की अपेक्षा दुःखी के हीनभावग्रस्त होने की आशंका अधिक रहती है।
5. सुखी की अपेक्षा दुःखी व्यक्ति विशेष रूप से स्वयं के प्रति लापरवाह हो सकता है।
6. दुःखी व्यक्ति ‘जो नहीं है’ उसका पीछा करता फिरता है इसलिये अपने दुःख को और बढ़ा लेता है जबकि सम्भव है कि सुखी व्यक्ति को जो मिला है वह उसी में संतुष्ट रहे, संतोष ही उसके लिये धन व सुख है जबकि दुःखी का मन इच्छाओं के उस आकाश-सा हो सकता है जहाँ संतोषरूपी मेघ नहीं हुआ करते।
7. दुःखी व्यक्ति में Negativity ढूँढने की प्रवृत्ति पायी जाती है, जैसे कि ऐसा होता तो मैं क्या यहाँ होता, मैं तो वहाँ होता। काश ! वैसा हो जाता तो ऐसा होता। सब बुरे हैं, सब भ्रष्ट हैं ऐसी Thinking से ग्रसित होने की सम्भावना सुखी की अपेक्षा दुःखी में अधिक होती है जबकि सम्भव है कि सुखी में इस सन्दर्भ में कुछ सकारात्मकता हो कि भगवान् की दया से जहाँ हैं अच्छे हैं।
8. सम्भव है कि दुःखी व्यक्ति अपने दुःख का ठीकड़ा परिस्थितियों या दूसरों के मुँह पर फोड़ता फिरे व श्रेय लेने की बात आने पर दौड़ा-दौड़ा सामने आ जाये परन्तु सुखी व्यक्ति में दोष स्वीकारने व सुधारने की एवं श्रेय दूसरों के नाम करने की प्रवृत्ति रह सकती है।
9. दुःखी अपनी वर्तमान परिस्थितियों से पलायन कर अतीत की स्मृतियों या भविष्य की अनिश्चतताओं में गोते लगाने की चेष्टा कर सकता है किन्तु सुखी अतीत, वर्तमान, भविष्य के सम्पादित अंषों को साथ लेकर चलने का पक्षधर हो सकता है।
10. दुःखी व्यक्ति को देखकर दूसरे भी हतोत्साहित हो सकते हैं जबकि सुखी व्यक्ति से मिलकर सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति उससे चर्चा करना चाह सकते हैं।
11. दुःखी व्यक्ति परिवर्तन के प्रयास कर सकता है जबकि सुखी व्यक्ति यथास्थितिवादी हो सकता है।
12. सुखी की अपेक्षा दुःखी रहने अथवा हो-हो जाने वाले व्यक्तियों के मन में हताशा-निराशा व अवसाद के भाव उमड़ने व घर करने की आशंका अधिक बलवती होती है।
13. सम्भव है कि दुःखी की अपेक्षा सुखी कम पूर्वाग्रही हो।
14. सुखियों की अपेक्षा दुःखी दूसरों से तुलना, होड़, ईर्ष्या व द्वेषादि दोषों से अधिक घिरा हुआ हो सकता है। इन विषयों में नयीचेतना के अन्य आलेख अवश्य पढ़ें।
15. सम्भव है कि दुःखी व्यक्ति सुख को बाहर खोजता फिरे परन्तु सम्भावना है कि सुखी व्यक्ति अपने भीतर आनन्द के स्रोत को समझ जाये।
16. दुःखी व्यक्ति के स्वार्थी होने की आशंका सुखी की अपेक्षा अधिक हो सकती है क्योंकि दुःखी व्यक्ति स्वयं को दुःखी घोषित करवाकर दूसरों से सहानुभूति बटोरने की चेष्टा कर सकता है एवं अपने दुःख को दूसरों के दुःखों से बड़ा समझ सकता है.
इस प्रकार दूसरों के दुःखों की अनदेखी कर देगा इसी की आशंका लगी रहेगी। इसके विपरीत सुखी व्यक्ति दूसरों के दुःखों को दूर करने की पहल करेगा ऐसी कुछ तो सम्भावना बनेगी।
17. दुःखी व्यक्ति को चाहे जितनी अनुकूल या सुखद परिस्थितियों में रखो वह बिना बात के दुःख के बहाने ढूँढ ही लेगा- जैसे कि कोरोनाकाल में 20 हज़ार रुपये मासिक वेतन मिलने वाले को 1 हज़ार रुपये कम मिलने लगें.
इसके लिये यही बड़े दुःख कारण बन जायेगा जबकिSukhi Insan सम्भव है कि छोटी-बड़ी बातों को दुःख का कारण न समझे एवं संतोष कर ले कि कइयों की तो नौकरी छूट गयी किन्तु ईश्वर कृपा वश मैं तो सौभाग्यशाली हूँ जिसके केवल 1 हज़ार रुपये ही कट रहे हैं।
18. आशंका रहती है कि दुःखी कृतघ्न होगा एवं आशा रहती है कि सुखी कृतज्ञ होगा।
19. दुःखी प्रायः बड़े शहर या विदेश भागने की फ़िराक में हो सकते हैं जबकि सम्भव है कि सुखी को अपना गाँव न्यारा लगे अथवा विदेश घूमने अथवा बसने की चाह न हो या नगण्य हो।
20. दुःखी व्यक्ति जिन बातों से दुःख समझता है वह जान-बूझकर उन्हें ही पकड़े रखता है जबकि सुखी व्यक्ति दुःखों व दुःखों के कारणों से भी उबरने का प्रयास कर सकता है।
21. वैसे दुःखों में एक सबसे अच्छी बात यह होती है कि दुःखों से व्यक्ति मानव जीवन की नश्वरता को शीघ्र समझ सकता है, शीघ्र वह मोक्ष रूप परम सुख की ओर बढ़ सकता है, इसमें शीघ्र वैराग्य जाग सकता है.
सुखियों जैसे यह संसार में सुख समझने की भूल से सीख प्राप्त कर जन्म-मरण के बन्धन रूप पिंजरे को तोड़कर परमात्मा से साक्षात्कार को इच्छुक हो सकता है जबकि सुखी में तो आशंका रहती है कि यह तो इधर-उधर की बातों को सुख समझते-समझते ही पूरा नश्वर जीवन यूँ ही गँवा देगा एवं सार्थकता सहित सच्चे सुख व मूल जीवनोद्देष्य मोक्ष में बारे में सोचेगा ही नहीं।
जरुर पढ़े – जीवन की सार्थकता के 41 मार्ग
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