ईर्ष्या हीनभावना से होने वाले 6 बड़े नुकसान – How To Avoid jealousy Envy Harm In Hindi
ईर्ष्या और हीनभावना जो आपको बर्बाद कर देगी How To Avoid Jealousy Envy Harm In Hindi
ईर्ष्या और हीनभावना इन्सान के पतन के मुख्य आरण होते है. ईर्ष्या और द्वेष रखने से न ही हमें मानसिक शान्ति मिलती है और न ही हम सुखी रह पाते है. यह हमारे रिश्तो पर असर डालती ही है साथ में यह हमारे कार्य करने की क्षमता को भी क्षीण कर देती है.
ईर्ष्या और हीनभावना के वशीभूत किये गये काण्डों से तो भिन्न-भिन्न देशो व संस्कृतियों के साहित्य भरे-पूरे दिखते हैं। पुराणों से लेकर मुग़ल काल, अंग्रेज़ों के ज़माने से लेकर आधुनिक समय तक तथाकथित मित्रों व परिजनों तक ने ऐसा नाश मचाया है कि जिसकी भरपायी किसी पीढ़ी के बस की बात नहीं। वस्तुतः ईर्ष्या व हीनभावना ये दोनों ही तुलना-जनित मनोविकृतियाँ हैं.
वास्तव में हर व्यक्ति अद्वितीय होता है, गुणों के अलग अनुपात में धनी होता है, अतः ईर्ष्यादि दोषों से दूर रहना हो तो न तो स्वयं को, न अपनों को एवं न परायों को किसी आधार पर किसी से तौलो. सुख से रहो, जियो और जीने दो, न तुलो, न तौलो, इस बार आप स्वयं को केन्द्र में रखकर देखें कि जीवन के विभिन्न पड़ावों में ईर्ष्या व हीनभावना से कैसे बचें.
How To Avoid Jealousy Envy Harm In Hindi
1. पारिवारिक ईर्ष्या व हीनभावना
” उसके घर इतना सामान है”; ” उसके घरवाले कितने सहयोगी“; “उसका मकान तो शहर में मैनरोड से सटे सुविधा-सम्पन्न इलाके में है ” ”काश ! मुझे उस परिस्थिति में रहने को मिलता“; ”मैं पारिवारिक व सम्पत्तिगत सहित परिजनों की दृष्टि से भी कितना अभागा“ जैसे विचार वास्तव में व्यर्थ हैं. कई धारावाहिक व फ़िल्म अभिनेता इन सबके होने के बावजूद आत्महत्याएँ कर रहे हैं क्योंकि इन सब में भी वास्तव में कुछ नहीं रखा है.
मानसिक संतोष की ही महत्ता होती है, कहा भी गया है कि सुख से सोवे कुम्हार जाके लूट न लेवे मिटिया, अर्थात् कुम्हार सुख से सोता है क्योंकि उसके पास ऐसा कुछ है ही नहीं कि उसकी ज़मीन-ज़ायजाद कोई लूटने आये अथवा उसकी जान को कोई जोख़िम हो। सम्पत्तियाँ होंगी तो मक्खियाँ भिनकेंगी, मक्खियाँ भिनकेंगी तो विपत्तियाँ बरपेंगी।
2. लैंगिक ईर्ष्या व हीनभावना
अपना शरीर व बैंक-बैलेन्स और दूसरे का कष्ट व दृष्टिकोण सबको छोटा ही लगता है, इसी प्रकार पुरानी पड़ने पर अपनी लुगाई बोरिंग और दूसरे की लुगाई Interesting लगने लगती है क्योंकि व्यक्ति गन्दी फ़िल्म के भ्रामक दृष्यों, पथभ्रष्ट संगी-साथियों की बातों में आकर तुलना करते रहता है और दूर के ढोल सुहावने लगने लगते हैं, यदि व्यक्ति उस स्थिति के पास होता तो वहाँ से भागने की सोचता क्योंकि ऊपर से चाशनी में लिपटी सच्चाई प्रायः कड़वी होती है।
अपने कर्मफल अनुसार जो व्यक्ति जहाँ जैसे भी है उसी में संतोष कर लेना चाहिए। संतोष को परम सुख ऐसे ही नहीं कह दिया गया है। सुधार व प्रगति का सम्बन्ध आर्थिक वृद्धि अथवा सम्पत्तिगत बढ़त से नहीं होता, सीमित में संतोषी ही सबसे सुखी होता है। मूलभूत आवष्यकताओं की पूर्ति देखें तो पता चलेगा कि बहुत सारी अवांछनीय इच्छाओं को हम ‘आवश्यकता’ का तमगा लगाये बैठे हैं जिससे दुःखों व असंतोष को जबरन ही निमंत्रित कर देते हैं।
जाँचें कि जीवन में ऐसा कितना कुछ अनावश्यक है जिसके बिना भी आप सुख-संतोष से सहज रह सकते हैं। उन जरुरतो का बोझा ढोना बन्द कर देंगे तो जीवन अधिक कष्ट रहित व सुखद हो जायेगा।
3. मान-प्रतिष्ठाजन्य ईर्ष्या व हीनभावना
“उसे सब पूछते हैं, मुझे कोई नहीं पूछता.. वो ऊँची पोस्ट पर बड़ा आदमी है. मैं छोटा आम आदमी. ये सब बातें भी निरा निरर्थक हैं. सामाजिक-आर्थिक स्थिति व दूसरों की मान्यताओं से आपकी भीतरी ख़ुशी यथार्थ में रिमोट-कण्ट्रोल नहीं हो सकती.
आपकी अलग स्थिति, अलग मामला व सम्पूर्ण परिदृष्य भी अलग है. ज़रा उन नेताओं व पूँजीपतियों को देखें तो पता चलेगा कि हर समय मान, धन छिन जाने, लोकप्रियता घट जाने, अगले चुनाव में जाने क्या हो ऐसे मनोभावों से घिरे रहते हैं कि रात को चैन की नींद व दिन का सुकून-चैन भी नसीब नहीं होता, जाने किस उठा-पटक में ही ज़िंदगी घसीट देते हैं।
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4. रूपरंग जनित ईर्ष्या व हीनभावना
दुबला-मोटापन हो या नाटापन या चेहरे का रंग अथवा सिर पर बालों का झुरमुट वास्तव में सच्चाई-पसन्द व्यक्ति के लिये आपमें इन सबके कोई मायने नहीं होंगे। सुन्दरता भी एक दृष्टिकोण मात्र है।
स्त्री ने यदि कुत्ता भी जना हो तो वो उसे शेर कहेगी। वास्तव में प्रेम अथवा ममत्व हो तो रूपरंग का महत्त्व शून्य हो जाता है। सुन्दरता के Concept को केन्द्र में रखकर आकर्षित होने वाले मौसमी मच्छर सुन्दरता के बादल छँटते ही ओझल हो जाते हैं।
5. बाज़ारवाद व उपभोक्तावाद जनित ईर्ष्या व हीनभावना
अधिक से अधिक वस्तुओं व सेवाओं का प्रयोग करने वालों को सुखी अथवा खुश क्यों मानना ? वास्तव में वे तो सर्वाधिक पराश्रित हैं, यंत्रों, वस्तुओं व दूसरों पर निर्भर हुए।
बैंकों व सरकार के सकल घरेलु उत्पाद इत्यादि की नज़र से देखें तो भूटान का नामो-निशान शायद नज़र न आये परन्तु खुश रहने वालो की सूची में विश्व में सर्वाधिक ख़ुश भूटान ही के नागरिक पाये गये हैं। नेपाल में भी विज्ञापनों व दिखावे सहित व्यावसायिक शोर-शराबे की भीड़ उतनी नहीं दिखती तो क्या इस आधार पर वहाँ के लोगों को दुःखी या पिछड़ा मान लेंगे ?
मिनिमेलिस्ट लोगो अर्थात् मिनिमेलिस्टिक Lifestyle अपनाने वालों के सुखी जीवन-यापन की सम्भावना अधिक रहती है जो कम से कम वस्तुओं में जीवन-निर्वाह का प्रयास करते हैं. घर-कार्यालय इत्यादि को भानुमती का पिटारा अथवा भण्डारगृह नहीं बनाते।
कोई किसी भी चीज़ सुविधा का प्रयोग करे वह हमारे द्वारा उस उत्पाद को प्रयोग करने का आधार नहीं हो सकता। पूँजी हो या न हो पड़ौसी की देखा-देखी हम डेढ़ लाख की हाई-प्रोफ़ाइल आधुनिक माडल की Bike क्यों ख़रीदें जबकि हमारे पास अच्छी-ख़ासी स्कूटी पहले से है ?
जिसमें हमारी मूलभूत परिवहन-आवागमन आवश्यकता की पूर्ति अत्यन्त सरलता से हो रही है। यदि पूँजी है भी तो भी उसे विलासिता में खर्चने के बजाय क्यों न किसी सार्वजनिक लोकोपयोगी समाजोत्पादक कार्य में अथवा वृक्षारोपण इत्यादि सार्थक कार्यों में लगाये.
6. सम्पत्ति जनित ईर्ष्या व हीनभावना
परिचित हो या अपरिचित दूसरे का Bank Balance देखकर स्वयं का मन Imbalance करने का क्या औचित्य ? चल-अचल परिसम्पत्तियों को सुख की निशानी समझने वालों को यह असलियत नज़र आनी चाहिए कि परेशानियाँ, चिंताएँ, दुविधाएँ, तनाव ये सब सम्पत्तियों के समानुपाती होते हैं, जितनी सम्पत्ति उतनी विपत्ति। ”ऋण लो, घीं पीओ, सुख से जिओ, कल किसने देखा“ की नास्तिकतापूर्ण भौतिकवादी चार्वाक मानसिकता बड़ी अहितकारी है।
रुपैय्या हाथ का मैल, माया महाठगिनी जैसी चरितार्थ होती उक्तियों का अर्थ गुनने, स्वीकारने की आवश्यकता है। कर्ज़ा लेकर कार ख़रीदने अथवा बैंक-लोन में दबकर शाही जीवन से तो बेहतर वह व्यक्ति है जिसके खाते में अँगुलियों में गिनने लायक हज़ार रुपये हैं परन्तु कर्जा किसी का नहीं।
बड़े-बड़े राजा हुए जो अथाह सुख-सुविधाएँ भोगते रहे परन्तु देर-सवेर उन्हें सच्चाई का भान हुआ कि इन सबमें कुछ नहीं रखा और वे सब त्याग वन की ओर चले, शान्ति की ओर, भक्ति की ओर, मुक्ति की ओर !
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