घर में बेटी होने के 7 लाभ Benefits Of Having A Girl Baby In Hindi
Benefits Of Having A Girl Baby In Hindi
बेटी (Beti) होने को एक जोख़िम अब भी माना जाता है। पुत्र हुआ तो पुत्ररत्न, पुत्री हुई तो पुत्रीरत्ना के बजाय बोझ कैसे ? यहाँ बेटी होने के ऐसे-ऐसे लाभ गिनाये जा रहे हैं जो अनुभव तो सब करते हैं परन्तु मानता कोई नहीं.
Benefits Of Having A Girl Baby In Hindi
1. बेटे से अधिक भरोसेमंद :
बेटा तो नौकरी (Job) के लिये जो गया तो लौटना उसे रास नहीं आता, न आने के हज़ार बहाने जेब में रखकर घूमता है परन्तु परिवार में परेशानी आयी देख ससुराल में भी सब सँभालने वाली बेटी मायके दौड़ी चली आती है, अब बताओ किसे कहें पराया धन ? बेटा भगौड़ा, बेटी सहायक नहीं क्या ?
इतने सारे विशेषाधिकार मिलने के बाद भी बेटा कभी स्त्री तो कभी जीविका के नाम पर भाग निकलने की फ़िराक में रहता है जबकि बेटी तो मायके हर संकट में आ जाने को एक पग पर तैयार खड़ी मिलती है!
2. लोभी बेटे :
ज़मीन-जायज़ाद के बँटवारे एवं कुटुम्ब में आर्थिक व अधिकारों सम्बन्धी कलह-द्वेष किसके कारण हुए हैं ? बेटे ही के कारण ना ! ऐसे कितने मामले सुने होंगे जहाँ इन सबके पीछे स्त्री उत्तरदायी हो ? जो फिर भी पुत्रमोह इतना हावी क्यों कि बेटी होने की अच्छाइयों पर नज़र डालना नहीं चाहते ?
3. बेटी आगे सब सँभाल लेती :
बेटी को बोझ अथवा पराया धन समझकर चलने वालों से पूछा जाना चाहिए कि बेटी जो सब तक मायके रहती सब सँभालती है एवं विवाह के बाद अपने आप चली भी जाती है परन्तु बेटे प्रायः आजीवन मानसिक व अन्य रूपों में बोझ बने बैठे रहते हैं, आर्थिक व पारिवारिक त्रास का कारण बनते हैं।
4. बेटा औपचारिक बेटी व्यावहारिक :
बेटा आमतौर पर अधिक से अधिक क्या कर सकता है ? कमा के खिला सकता है अथवा एकाध बार कुछ करके ज़रा-सा प्रसिद्ध कर सकता है परन्तु खरीदे रूखे कच्चे खाने में भावनात्मक मिठास तो बहू-बेटियाँ ही लाती हैं।
5. पुत्री सर्वकुशल :
गृहकार्यदक्षता स्त्रियों का मुख्य लक्षण माना जाता है, पुरुष तो प्रायः अकुशल, अर्द्धकुशल अथवा अल्पदक्ष श्रेणी में आते हैं। जिस घर में कोई स्त्री न रहती हो उस घर की दशा दयनीय रहने की आशंका समझी जाती है।
6. बेटी सहायक, बेटा अवरोधक :
कोई माने अथवा ना माने बेटियों को जन्म से ही बेटे से कमतर माना जाता है. कोई स्वादिष्ट खाद्य-सामग्री घर आयी तो पहले बेटे को खिलायी, बाद में बची हुई बेटी हो, बेटे को उन्नत संसाधन व सुविधाएँ, बेटी को काम-चलाऊ, फिर भी बेटी विद्रोह नहीं करती जबकि बेटा अपनी हर सुविधा-संसाधन में कमियाँ गिनाने तैयार बैठा मिलता है। बेटा तो अँधेरा कुआँ है जितना दो उसे उतना कम लगेगा उसे परन्तु बेटियाँ तो प्लेट्स जैसी होती हैं- सीमित में संतुष्ट।
7. बेटी निर्दोष, बेटा दोषी :
कन्या जन्म से बचने के लिये कई समाजों में यह बहाना बनाया जाता है कि यदि बेटी हुई तो उसकी विशेष देखरेख करनी होगी, उसे असुरक्षित जीवन जीना होगा इत्यादि।
ये लोग समझना ही नहीं चाहते कि वह अपने आप असुरक्षित कैसे हो गयी ? अपने-अपने भाई-बेटों को नैतिक शिक्षा प्रदान करें तो बेटियाँ-बहनें स्वतः सुरक्षित हो जायेंगी। अंकुश में रखने योग्य बेटे हैं, नियन्त्रण में पुत्रों को रखना है जो खुले साण्ड जैसे घूमते हुए परनारियों को स्वउपभोग की वस्तु माने मँडरा रहे हैं।
बेटा उत्पीडक व बेटी उत्पीड़ित है तो फिर कन्या के पैदा होने को रोकने का प्रयास अथवा पुत्री जन्म के प्रति अनिच्छा क्यों अनिच्छा तो पुत्रजन्म के प्रति होनी चाहिए कि एक बेटा जाने कितनी बेटियों-बहनों के जीवन को असुरक्षित कर देगा। भक्ष्य को भक्षक से बचाने का प्रयास करना चाहिए, भक्ष्य को जन्म लेने से नहीं रोकना है, रोकना हो तो इन भक्षकों को रोको।
बेटी पर कविता
जो स्त्री माँ, बेटी, बहन रूपों में आती है उसे समर्पित एक कविता –
नारी क्यों निर्बला बेचारी
संकीर्ण दृष्टिकोण पुरुष का और नारी बनी बेचारी
हाय री ! पुरुष-प्रधान समाज में इस दुखियारी की लाचारी
बाल्यकाल में कहलाये ‘पराया धन’
यौवन में ‘माल’ उपभोग्य सामग्री
वार्द्धक्य में अनुपयोगी वस्तु
जीवन के तीनों पड़ावों में बस वस्तु
कभी अपने स्त्रीधन के लिये सतायी जाती
कभी तन के तथाकथित सौन्दर्य के लिये तड़पायी जाती
ऊँची शिक्षा, बाहर नौकरी भाई को करने दी जाती
बहन चैखट में सिमटती, सहज जीवन के लिये तक तरसायी जाती
किषोरावस्था पूर्ण होते ही परिवार चुन ‘ठिकाने’ लगाने की बात की जाती
ब्याहने पर मायके में मेहमान पूछें ”कहाँ दी अपनी छोरी ?“
ससुराल में आगंतुक पूछते ”कहाँ से लाये हैं?“
लड़कों का ज़माना शायद सच में इतना बदल गया है
लड़कियों को ‘दीदी’ बोलने वालों से क्या रिश्ता बदल गया है
हर परनारी को माँ-बहन-बेटी कहलाने वाले संस्कार कहाँ गये
नारी-सम्मान बचाने आगे आने वाले ‘सच्चे पुरुष’ कहाँ गये
नारीत्व को भय का पर्याय समझ लिया है- ”तू औरतों-सा क्यों डर रहा है ?“
नारी का ही दूध पीकर पले-बढ़े, मर्द बने
अब क्यों स्त्रीत्व को कमज़ोरी की निशानी मानते हो
घर पर एक दिन भी ‘परिश्रमी’ महिलाओं के बीमार पड़ने पर ‘घरेलु आपातकाल’ लग जाता है
बाहर दफ़्तर में मात्र 6 दिन, 8 घण्टे कार्य करके क्यों मर्दानगी की शेखी बघारते हो
नर्म नारी को दर्द देकर कौन मर्द बना रह सकता है
सब समझ आता है ऐसे पुरुषों का पुरुषत्व कितना सस्ता है
अबला पर हमला करके स्वयं को बलशाली मानना तो नामर्दगी है
ऐसे तथाकथित मर्दों को जानने वाली महिलाओं को शर्मिंदगी है
आओ सुधार करें
हर नारी से सद्व्यवहार करें
पुत्र, भाई, पिता समान
करें हर नारी का सम्मान
नारी-सुरक्षा : नारी को यथासम्भव इन संसाधनों द्वारा सुरक्षित करें
मिर्च पाउडर की स्प्रेयर बोतल, मेक-अप सामग्री में सुरक्षात्मक कार्यवाही के लिये कुछ नुकीली वस्तुएँ, सिम्पल फ़िएचर फ़ोन में यह व्यवस्था कि ख़तरा होने पर वह एक बटन दबाये तो उसके घर, पुलिस थाने, मकान-मालिक व आसपास के अन्य घनिष्टों को स्थिति की सूचना का चेतनावनी मूलक SMS तात्कालिक रूप से पहुँच जाये।
तो दोस्तों यह लेख था घर में बेटी होने के 7 लाभ – Benefits Of Having A Girl Baby In Hindi, Ladki Paida Hone Ke Fayde Hindi Me. यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो कमेंट करें। अपने दोस्तों और साथियों में भी शेयर करें।
@ आप हमारे Facebook Page को जरूर LIKE करे ताकि आप मोटिवेशन विचार आसानी से पा सको. आप इसकी वीडियो देखने के लिए हमसे Youtube पर भी जुड़ सकते है.
Leave a Reply