ज्योतिष क्या है व कितना वास्तविक है What Is Astrology How Astrology Work In Hindi
What Is Astrology How Astrology Work In Hindi
आकाश में विद्यमान जितने ग्रह-नक्षत्र इत्यादि हैं वे परस्पर प्रभाव डालते रहते हैं फिर चाहे उन्हें हम धरती से न देख पायें। धरती पर जीवन पंचमहाभूतों (जल, आग, वायु, पृथ्वी व आकाश) से सम्भव हुआ है।
आग तो सूर्य, पृथ्वी के केन्द्र इत्यादि रूपों में मिल ही जाती है परन्तु आकाश रहस्यों से भरा लगता है किन्तु पृथ्वी के हर प्राणी पर समस्त खगोलीय संरचनाओं का प्रभाव पड़ता माना जाता है.
पृथ्वी के जीवन पर दूरस्थ ज्योति-पुँजों के इन प्रभावों के अध्ययन को ज्योतिष कहा जाता है। जीवन की उठापटक को समझकर कष्टों को कम किया जा सके व कल्याण में वृद्धि की जा सके इसलिये प्राचीन काल में ज्योतिष शास्त्र की रचना की गयी।
अपने पिता प्रजापति ब्रह्मा जी से इस शास्त्र का ज्ञान सर्वप्रथम महर्षि भृगु ने प्राप्त की. उन्होंने भृगु संहिता की रचना की जिसमें भविष्य वाणियाँ अचूक पायी गयीं।
इस ग्रंथ में प्रत्येक मनुष्य की जन्म कुण्डली के आधार पर उसके भविष्य में आने वाली परिस्थितियों के वर्णन की व्यवस्था थी। यह ग्रन्थ पहले इतना सटीक हुआ करता था कि पूर्वजन्म का भी ज्ञान हो जाता था व यह भी पता चल जाता था कि पूर्वजन्म के किन गुण-दोषों के कारण हमारी वर्तमान परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई हैं।
इस जटिल विषय के जानकार अत्यन्त दुर्लभ हो चले हैं, वे भी सटीक गणना नहीं कर पाते जिससे उनके आकलन व भविष्य वाणी सच साबित नहीं हो पातीं परन्तु ज्योतिष अत्यन्त प्रामाणिक है, उदाहरण स्वरूप चंद्र से पृथ्वी के ज्वार-भाटे का सम्बन्ध आज के वैज्ञानिक भी मानते हैं।
वास्तव में धरती कर्मभूमि है, जो जैसा करेगा वैसा भरेगा परन्तु निकट व दूर की समस्त वस्तुओं, क्रियाओं व घटनाओं का परस्पर प्रभाव तो पड़ता ही रहता है। संगति की महत्ता यहाँ भी परिलक्षित होती है।
What Is Astrology How Astrology Work In Hindi
ज्योतिष के दो उद्देश्य कहे गये हैं –
(1) सांसारिक उद्देश्य (प्रारब्ध परिस्थिति को उत्पन्न करना) तथा आध्यात्मिक उद्देश्य (इसमें कर्तृत्व के अभिमान व कर्ताभाव को मिटाया जाता है. इन दोनों उद्देश्यों के लिये देश, काल, पात्र की जानकारियाँ अपेक्षित होती हैं।
लेख के अन्त में विदेशी विद्वानों द्वारा भारतीय ज्योतिष के सन्दर्भ में व्यक्त किये गये विचार सम्मिलित किये गये हैं। नीचे ज्योतिष की शब्दावली प्रस्तुत है जिससे इस विषय में मूल भाव समझने में पाठकों की सहायता होगी.
षडांगी वेद – वेद के छः अंग होते हैं जिनमें अन्तिम स्थान पर ज्योतिष है. शिक्षा, कल्प-कर्मकाण्ड, व्याकरण, निरुक्त-शब्दकोष, छंद, ज्योतिष (ग्रह, राशियाँ, नक्षत्र इत्यादि)।
सिद्धान्त (गणित) ज्योतिष : ग्रहों की स्थिति व गति इत्यादि को गणित ज्योतिष कहते हैं।
फलित ज्योतिष : शुभाशुभ समय के निर्धारण व यज्ञ-यागादि कार्यों के लिये समय व स्थान के निर्धारण को फलित ज्योतिष कहा जाता रहा है। ज्योतिष शब्द सुनते ही लोग जिस अर्थ को ग्रहण करते हैं वह फलित ज्योतिष ही होता है।
जातक शास्त्र (होरा) : जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति के अनुसार व्यक्ति के फलाफल का निरूपण इसमें सम्मिलित है। मानव-जीवन के सुख-दुःख, इष्ट-अनिष्ट, उन्नति-अवनति, भाग्योदय इत्यादि शुभाशुभों का वर्णन इसमें किया जाता है। जातक शास्त्र में फल-निरूपण दो प्रकार से किया जाता है. जातक के जन्म-नक्षत्र के आधार पर व जन्मलग्नादि द्वादष भावों के आधार पर।
इसी प्रकार जन्मपत्री में देहधारियों की जन्मकालिक ग्रह स्थिति से आजीवन होने वाली शुभाशुभ घटनाओं का संकेत समझने की चेष्टा की जाती है। जन्मपत्री का स्वरूप, फलादेश विधि एवं संसार के अन्य देशो व संस्कृतियों में उसके स्वरूप एवं शुभाशुभ घटनाओं के आकलन की प्रणालियों में बहुत कुछ दर्शाया व बताया जाता है।
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त्रिस्कन्ध ज्योतिष :
वास्तव में ज्योतिष की तीन शाखाएँ हैं जिन्हें मिलाकर त्रिस्कन्ध ज्योतिष कहा जाता हैः.
*. सिद्धान्त (खगोल व गणितीय भाग जिसमें ग्रहों की स्थिति की गणना मुख्यतया सम्मिलित).
*. होरा (दिन-रात बनने की प्रक्रिया को होरा कहते हैं जिसके अन्तर्गत व्यक्ति विशेष पर ग्रहों के प्रभावों का अध्ययन किया जाता है);
*. संहिता – वर्गविशेष, वस्तु, समूह विशेष, किसी घटना, विज्ञान या मुहूर्त का विवरण इसमें सम्मिलित है। त्रिस्कन्ध की दो उपषाखाएँः शकुन(यह होरा व संहिता दोनों में है एवं इसमें अपने आप स्वतः होने वाली क्रियाएँ सम्मिलित हैं) तथा प्रश्न (यह भी होरा व संहिता दोनों में है.
किसी काल विशेष में प्रश्न पूछते समय की कुण्डली इसमें सम्मिलित). शकुन को निमित्त शास्त्र भी कहा गया है। पंचस्कन्धात्मक ज्योतिष होरा, सिद्धान्त, संहिता, प्रश्न व शकुन इन सबको सम्मिलित करने पर ज्योतिष को पंचस्कन्धात्मक ज्योतिष कहा जाता है।
पंचांग – यह ऐसी तालिका है जिसमें विभिन्न कालावधियों अथवा तिथियों में आकाशीय खगोलीय पिण्डों की स्थिति का विवरण इन पाँच पैमानों के आधार पर होता है.
(1) तिथि, (2) वार, (3) नक्षत्र, (4) योग
(5) करण – इन पाँच अंगों के कारण ही यह पंचांग कहलाता है। खगोलशास्त्र एवं ज्योतिष विज्ञान में कई पंचांगों को अपनाया जाता रहा है क्योंकि इतिहास में कई संस्कृतियों में पंचांग रहे हैं तथा सूर्य, चंद्र, तारों, नक्षत्रों व तारामण्डलों की स्थितियों से मानव-जीवन में धार्मिक, सांस्कृतिक व आर्थिक प्रभाव गहनता से पड़ते हैं।
व्यक्ति के दो रूप बाह्य व आन्तरिक- बाह्य – इसमें भौतिक शरीर है। आत्मा की चैतन्य क्रिया की विशेषता के कारण अपने पूर्वजन्म के निश्चित विचारों, भावों व क्रियाओं की ओर झुकाव तथा वर्तमान जीवनानुभवों का मिश्रण। आन्तरिक स्मृतियों, अनुभवों एवं प्रवृत्तियों का संष्लिष्ट रूप।
भारतीय ज्योतिष के सन्दर्भ में विदेशी विद्वानों द्वारा व्यक्त विचार –
1. प्रोफ़ेसर मैक्समूलर के अनुसार – आकाश मण्डल व नक्षत्र मण्डल इत्यादि के बारे में भारतवासी अन्य देशो के ऋणी नहीं हैं। ये ही इनके मूल खोजकर्ता है.
2. काण्ट आर्मस्टर्जन के अनुसार – ईसवी सन् से 3000 वर्ष पूर्व ही भारतीयों ने ज्योतिष शास्त्र एवं भूमितिशास्त्र में यथेष्ट पारदर्षिता प्राप्त कर ली थी.
3. कर्नेल टाड के राजस्थान नामक लेखन के अनुसार – हमें वे ज्योतिषी कहाँ मिलेंगे जिनका ग्रहमण्डल सम्बन्धी ज्ञान अब भी यूरोप में आश्चर्य उत्पन्न कर रहा है.
4. मिस्टर मारिया ग्राह्म के अनुसार – समस्त मानवीय परिष्कृत विज्ञानों में ज्योतिष मनुष्य को ऊँचा उठा देता है। इसके प्रारम्भिक विकास का इतिहास संसार की मानवता के उत्थान का इतिहास है। भारत में इसके आदिम अस्तित्व के बहुसंख्य प्रमाण विद्यमान हैं.
5. मिस्टर सी.वी. क्लार्क एफ़.जी.एफ़. के अनुसार – अभी बहुत वर्ष पहले तक हमें सुदूर स्थानों के अक्षांश निश्चयात्मक रूप से विदित नहीं थे किन्तु प्राचीन भारतीयों ने ग्रहण-ज्ञान के समय ही इन्हें जान लिया था। इनकी अक्षांश , रेखांश वाली यह प्रणाली वैज्ञानिक होने के साथ अचूक भी है.
6. डाक्टर राबर्टसन के अनुसार – 12 राशियों का ज्ञान सर्वप्रथम भारत वासियों को ही हुआ था। भारत ने प्राचीनकाल में ज्योतिर्विद्या में प्रचुर उन्नति कर ली थी.
7. प्रोफ़ेसर कोलब्रुक एवं बेवर के अनुसार – चान्द्रनक्षत्रों का ज्ञान सर्वप्रथम भारतीयों को ही था. चीन व अरब ने भारत से ही ज्योतिष सीखा.
8. चीनी विद्वान् लियाँग चिचाव के अनुसार – वर्तमान सभ्य जातियों ने जब हाथ-पैर हिलाना भी आरम्भ नहीं किया था तभी हम दोनों भाइयों (भारत व चीन) ने मानव-सम्बन्धी समस्याओं को ज्योतिष जैसे विज्ञान द्वारा सुलझाना आरम्भ कर दिया था.
9. प्रोफ़ेसर वेलस द्वारा वर्णित अनुसार प्लेफ़सर की पंक्तियाँ – ज्योतिष ज्ञान के बिना बीजगणित की रचना कठिन है.
10. डाक्टर थीबो के अनुसार – भारत ही रेखा गणित के मूल सिद्धान्तों का आविष्कारक है.
तो दोस्तों यह Article था ज्योतिष क्या है व कितना वास्तविक है – What Is Astrology How Astrology Work In Hindi, Jyotish Kya Hai Aur Kitna Real Hai. यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो कमेंट करें। अपने दोस्तों और साथियों में भी शेयर करें।
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