आदर्श दिनचर्या कैसे अपनायें 8 बेस्ट तरीके How To Follow Ideal Daily Routine In Hindi
How To Follow Ideal Daily Routine In Hindi
व्यक्ति दिनभर क्या करता है या उसकी गतिविधियों व समय के निर्धारण के प्रारूप को दिनचर्या कह सकते हैं। व्यक्ति की दिनचर्या अच्छी न हो तो समय होकर भी उसे समय अपर्याप्त लगता है, दो कार्यों में सामंजस्य नहीं रख पाता, दिनभर उठापटक व झँझटों में डूबने-उतरने में बीतता जाता है.
इसलिये दिनचर्या के कुछ मूलभूत नियम होते हैं जिनसे व्यक्ति शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से नीरोग, सक्रिय एवं उत्साही बना रह सकता है.
How To Follow Ideal Daily Routine In Hindi
1. ब्रह्म मुहूर्त-जागरण Brahma Muhurta-Jagaran
सूर्य की प्रथम किरण स्थल पहुँचने से पहले उठना व्यक्ति की जैविक घड़ी के नियमन की दृष्टि से भी उपयोगी रहता है, इससे व्यक्ति अधिक स्फूर्तिवान् भी रहता है. हो सकता है कि आरम्भ में आपको यह कठिन लगे किन्तु कुछ ही दिन में सहज लगने लगेगा. मेज पर रखने वाली घड़ी यदि न हो तो अभी क्रय कर लायें एवं हो सके तो दो या अधिक प्रकार से अलार्म भरें एवं एक बार अलार्म बजने पर फिर आलस्य न करें, दो मिनट्स भी देरी नहीं करनी है.
तुरंत उठकर कोई वन्दना करें, जैसे कि –
कराग्रे वसते लक्ष्मी,
करमध्ये सरस्वती,
करमूले तु गोविन्दः,
प्रभाते करदर्शनम्।
आलस्यैव मनुष्यस्य शरीरस्थो महारिपुः। यदि कभी थोड़ा-भी आलस्य किया तो स्वयं को दण्डित करने के लिये लम्बी दूरी तक साईकल चलायें या अधिक समय तक रस्सी कूदें, हर ग़लती में दण्ड में निर्धारित दूरी व अवधि बढ़ा देनी है। अब बिस्तर से उठकर नित्यकर्म हेतु बढ़ें।
2. मलत्याग दंतमार्जन स्नान वस्त्र प्रक्षालन Disinfection bathing bath cleaning
रात्रि के अंधकार, उत्स्वेद इत्यादि से उबरकर अपने आप को नवोदित सूर्य की नवआभा में उभारने के लिये यथाशीघ्र ये चारों कार्य कर लेने आवश्यक हैं। कुछ भी बाद में लिये लम्बित न रखें। ‘Bed Tea’ बुरी चाय समान हो सकती है, तुरंत नित्य कर्मादि हेतु निकलें।
3. प्रात: कालीन पूजन Morning worship
स्नानोपरान्त अगरबत्ती, दीपक इत्यादि सहित भगवद्पूजन अनिवार्य रूप से करें, एक हाथ में घण्टी व दूजे हाथ में दीपक लेकर पाँच-छः आरतीयाँ गायी जा सकती हैं। कभी-कभी धूपबत्ती भी जला लिया करें। आरती के अन्त में हो सके तो कपूर जलायें। फिर साष्टांग दण्डवत् कर प्रभु को प्रणाम करके ही अपने सामान्य दैनिक कामकाज का श्रीगणेश करें।
आरती के साथ घर में तुलसी वन्दन अवश्य करें, जैसे कि वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी पुष्पसारा नन्दिनी तुलसी कृष्ण जीवनी किन्तु ध्यान रखें कि तुलसी के एकदम पास अगरबत्ती न लगायें, अन्यथा वे झुलस-झुलस जाती हैं, अब जीभर के पानी पीयें, हो सके तो मटके या ताम्रपात्र में रखा जल।
4. पक्षियों व गिलहरियों को जलआहार Fishing birds and squirrels
आपके घर हो सके तो कार्यस्थल में भी में मिट्टी के दो सकोरे हों जिन्हें नित्यप्रति धोकर आप एक सकोरे में स्वच्छ पेयजल भरें एवं दूसरे सकोरे में मिश्रित देसी अनाज, इस हेतु आप मासिक स्तर पर किराने की दुकानों से यह बोल सकते हैं – ” समस्त देसी साबुत अनाजों का एक बड़ा मिश्रण बनाकर सौंपें। इस प्रकार यदि हर व्यक्ति करे तो प्रकृति पर अतिक्रमण के अपने दोष की थोड़ी-सी भरपायी तो मानव सहज में कर ही सकता है, यह एक मानवोचित कर्तव्य भी है।
5. जीविका शुरू करना Make a living
अब आपकी जीविका इत्यादि कार्य आरम्भ कर सकते हैं। यदि आप नाश्ता नहीं करते तो प्रथम पूर्ण भोजन किसी भी स्थिति में यथासम्भव 12 बजे तक सम्पन्न कर लिया करें किन्तु यदि नाश्ता करते हैं तो भी एक बजे तक पूर्ण खाना अपरिहार्य रूप से खा लें।
भोजन में विविधता व स्थानीय सामग्रियों का समावेश सदैव रहे। दिनभर में जब भी समय मिले, आगे बढ़कर समय निकालते हुए बागवानी इत्यादि सार्थक व रचनात्मक कार्य करें, दूसरों की सेवा करें।
एक मिनट भी व्यर्थ न बैठें, खाली दिमाग शैतान का घर इस सच्ची कहावत को गाँठ बाँध लें. ‘Time pass’ जैसा कोई शब्द आपके शब्दकोश में न हो, प्रभु नाम को हाथ से मंत्र लेखन इत्यादि रूपों में लिखते रहें, मोबाइल के हर अनावश्यक प्रयोग से कठोरतापूर्वक दूर रहें।
जीवन की सार्थकता के 41 मार्ग शीर्षक का आलेख अवश्य पढ़ें। चैबीसों घण्टे बारहों महीने आपके हर कार्य में भी अपने इष्टदेव का मंत्रोच्चारण करते रहें (मन ही मन तो अनिवार्यतः)।
6. सायंकालीन पूजन Evening worship
सूर्यास्त के समय पुन: आरती करें। प्रभु ही हैं जो हम सबको सँभाले हुए हैं, हर दिन कम से कम दो बार एक बार प्रातः कालीन पूजन व एक बार सायंकालीन पूजन अवश्य करें। इनसे आप में व वातावरण में सकारात्मक ऊर्जाओं का संचार बढ़ेगा। ध्यान रहे कि औपचारिकता समझकर नहीं बल्कि मनोयोग से पूजन करना है।
7. भोजन food
रात का भोजन यथासम्भव 9 बजे तक कर ही लें, हर बार भोजन के लिये उपयुक्त रीति का पालन करें, पटे पर थाली रखकर या छोटे स्टूल को उल्टा रखकर उसकर थाली रखकर भोजन करें तथा आलती-पालती मारकर बैठें एवं कमर से सिर तक यथासम्भव एकसीध में हों।
भोजन के आरम्भ से पूर्व ऊँ अन्नपूर्णायै नम: जैसे किसी प्रकार भगवती के प्रति आभार जतायें कि कितनों को दिनभर जीतोड़ परिश्रम के बाद भी पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं हो पाता किन्तु आपको यह सौभाग्य कितनी सहजता से मिल रहा है।
भोजन के अन्त में जीभर पानी न पीते हुए कुछ घूँट पीयें एवं बाद में जीभर पी सकते हैं, अन्यथा पेट के पाचक रस भोजन की लुगदी में ठीक से नहीं मिल पाते जिससे उसका पाचन व पोषकों का अवशोषण सामान्य रूप से नहीं हो पाता। रात्रि के भोजन के बाद कुछ लोग एकदम सो जाते हैं, ऐसा न करें, उठकर कुछ चले-फिरें, ईश्वर का ध्यान करते हुए छत या मैदान में घूम आयें।
8. शयन Sleeping
रात को भोजन के बाद (पर्याप्त चल-फिरकर) सोने के लिये सर्वप्रथम बायीं करवट लेटें ताकि पाचन और अधिक सहज हो जाये, फिर शवासन में लेट जायें, अर्थात् उत्तानावस्था (पीठ के बल लेटकर) समूचे शरीर को एकसीध में रखें तथा हाथ-पैरों को अब एकदम ढीला छोड़ दें।
तकिया का प्रयोग नहीं करना है। बिस्तर व पलंग का गद्दा अधिक नर्म न हो। अपने किये समस्त कर्मों में भूल-चूक के लिये प्रभु से क्षमायाचना करें एवं अब से पाप रहित दिनचर्या के प्रति संकल्पित होयें। रात को सोने में किसी धर्मसंगत कारण से यदि विलम्ब हो भी गया हो तो भी उठने का समय प्रभावित मत होने देना।
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