शारीरिक शिक्षा का महत्त्व और फायदे Physical Education Benefit Importance Essay In Hindi
Physical Education Benefit Importance Essay In Hindi
शारीरिक शिक्षा का अर्थ वास्तव में भारत में नया नहीं है ” पहला सुखः निरोगी काया “, ”स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है“ जैसे वाक्यों में यह स्पष्ट हो जाता है। हम यह नहीं कह रहे कि अस्वस्थ शरीर में अच्छा मस्तिष्क नहीं हो सकता अथवा शारीरिक स्वास्थ्य ही सब कुछ है बल्कि हम तो यह कहना चाह रहे हैं कि शरीर यदि पीड़ा रहित हो तो मन को शान्त व उपयोगी कार्यों में एकाग्र रखना सरल रहता है।
पुराने ज़माने के खेतिहर किसान व मज़दूर नित्यप्रति इतने सक्रिय रहते थे कि उन्हें अलग से ‘शारीरिक शिक्षा’ के विषय में विशेष विचारने की आवष्यकता ही अनुभव नहीं होती थी। शरीर को स्वस्थ व रोग रहित रखने के लिये विविध प्रकार की शारीरिक गतिविधियों द्वारा उसे सक्रिय बनाये रखने को पश्चिमी देशो में शारीरिक शिक्षा कहा जाता है।
Physical Education Benefit Importance Essay In Hindi
सर्वप्रथम हम यह समझ लेते हैं कि क्या शारीरिक शिक्षा नहीं – जिमिंग, बाडी-बिल्डिंग, व्यायाम इत्यादि अथवा नपी-तुली शारीरिक गतिविधियों को दोहराना अथवा हाथ-पैरों को यांत्रिक रूप से मोड़ना इत्यादि को शारीरिक शिक्षा नहीं कह सकते, तो क्या है ? वास्तव में नैसर्गिक गतिविधियों में शरीर को क्रियाशील रखना आवश्यक है।
उदाहरणार्थ हर व्यक्ति यदि सूर्य-नमस्कार करे तो यह मानसिक परिष्कार व शारीरिक सक्रियता दोनों की दृष्टि से उपयोगी रहेगा. पढ़ें ‘ सूर्य-नमस्कारः लाभ व विधि’। साथ ही साथ ‘ पेट की चर्बी कैसे कम करें ’ नामक आलेख भी अवश्य पढ़ें, शारीरिक रूप से सक्रियता सभी को आवष्यक है परन्तु मोटापे से ग्रसित लोगों को अधिक आवश्यक।
शारीरिक शिक्षा के सार्थक व प्रभावी उपाय :
शारीरिक शिक्षा के नाम पर पाश्चात्य देशो के समान भारत में भी व्यर्थ के खेल-कूद, व्यायाम अथवा जिमिंग जैसे निरर्थक ढर्रों का चलन है परन्तु यहाँ कुछ ऐसे उपाय दर्शाए जा रहे हैं जिनसे शरीर हानि रहित रूप से क्रियाशील भी रहेगा एवं गतिविधियाँ सार्थक रहेंगी सो अलग :
1. रात्रि में लगभग 9-10 बजे सोकर ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
2. प्रातः जागरण के तुरंत उपरान्त बिस्तर से बाहर निकलने से पूर्व ‘कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्’ विधिवत् करें तथा फिर ऊँ श्रीगणेशाय नमः उच्चारित करते हुए शुभत्व के संकल्प के साथ दिनचर्या का आरम्भ करें।
3. शरीर को दिनभर सक्रिय रखें।
4. अपने (यथासम्भव अपनों के भी) कपड़े, बर्तन इत्यादि स्वयं धोयें, इससे जहाँ एक ओर घर-बैठे आपकी कमर, हाथ-पैर इत्यादि चलायमान रहेंगे वहीं दूसरी ओर अपनों की सहायता भी होगी।
5. घरेलु व कार्यालयीन साफ़-सफाई, झाड़ू-पौंछा इत्यादि में यथासम्भव स्वयं भी उतरें।
6. दूरदर्शन पर सर्वसाधारण वर्ग के लिये दिखाये गये योगासन (जैसे कि भ्रामरी, कपालभाति प्राणायाम इत्यादि) करें जिन्हें साधारणतया कोई भी कभी भी कर सकता है परन्तु इनमें यथासम्भव नियमितता हो, न कि ऐसा कि क्षणिक उत्साह में आiकर सप्ताह में एक बार करके भूल गये।
7. रिमोट व मोबाइल संचालित दिनचर्या मानव के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को गर्त में ले जा रही है, बिना यांत्रिक सहायता के स्वयं उठकर अपना कार्य करने को अपनी सहज आदत बनायें; देखेंः ‘ओफ़लाइन सुखी जीवन जीने के उपाय’।
8. आजकल कुछ स्थानों में आसपास टहलने अथवा दौड़ने के लिये सुरक्षित क्षेत्र अथवा स्वच्छ परिवेश नहीं बचे हैं, छत अथवा आँगन में रस्सी कूदें जिससे आपका पूरा शरीर बहुत कम अवधि में भी नीरोग हो सकेगा एवं इसमें बैडमिण्टन जैसे किसी दूसरे व्यक्ति की आवश्यकता भी नहीं होगी। रस्सी पर हर कूद में अपने इष्ट का मंत्र उच्चारित करें।
9. बात-बात पर गाड़ी, लिफ़्ट, एस्केलेटर से जाने के बजाय पैदल चलें एवं Cycle भी चलायें, इस प्रकार पेट व जाँघों में लचीलापन आयेगा एवं सम्बन्धित समस्याएँ कम आयेंगी।
10. हो सके तो एक जोड़ी चप्पल एक्यूप्रेशरयुक्त रखें, इसका भी प्रयोग नित्य किया करें, इससे शरीर में रक्तसंचार अच्छा रहेगा एवं ऐड़ियों में दरारें, सूखी त्वचा व पैरों में दर्द की सम्भावना भी घटेगी।
11. सप्ताह में कम से कम एक बार कुछ घण्टों के लिये जूते (कपड़े अथवा अन्य अहिंसक रूप से निर्मित) पहने जा सकते हैं ताकि पैरों में खुलकर पसीना आये एवं शरीर के कुछ विषैले पदार्थ उसके माध्यम से बाहर निकल पायें, इन जूतों से पैरों की सहज मालिश भी हो जाती है जो कि त्वचा व माँसपेशियों के स्वास्थ्य के अनुकूल है।
12. नंगे पैर घास पर चलना भी समग्र स्वास्थ्य के लिये आरोग्यप्रद माना गया है, यदि ऐसा स्थान न भी मिले तो भी ऊबड़-खाबड़ स्थल व खुरदुरी सड़क अथवा अन्य खुरदुरे स्थान पर चलें जिससे आपके तलवों की निष्क्रिय पेशियों में ऊर्जा का संचार होगा एवं नवीन कोशिकाओं का निर्माण होगा।
13. दिन में अनेक बार गर्दन को घड़ी की दिशा व विपरीत दिशा में कुछ बार उतनी घुमायें जितनी सम्भव हो, इसी प्रकार गर्दन को दायें-बायें व आगे-पीछे भी ले जायें, हर बार ‘ऊँ’ उच्चारित करें।
14. दिन में कभी बैठना पड़े तो अपने दोनों पैरों को ऊपर उठाकर कभी घड़ी की दिशा तो कभी उसकी विपरीत दिशा में ऐड़ियों को घुमायें जिससे समूचे शरीर का भार झेलने वाले इन अंगों की नैसर्गिक स्निग्धता (Natural lubrication) बनी रहेगी एवं अस्थियाँ बेकार पड़े यंत्र समान जाम नहीं होंगी।
15. यथासम्भव हाथों से कागज़ पर लिखने की आदत डालें, सम्भव हो तो दूसरे हाथ से भी कुछ सीमा तक लिखने का प्रयास करें ताकि अँगुलियों की सक्रियता बनी रहे। इस व अन्य सन्दर्भों में उपयोगी आलेख ‘जीवन की सार्थकता के 41 मार्ग’ भी जरुर पढ़ें।
स्वयं पर वामहस्त अथवा दक्षिणहस्त का ठप्पा न लगने दें, अधिकांश कार्य दोनों हाथों से करने के प्रयास करते रहें ताकि मस्तिष्क के दोनों भाग एवं शरीर के दोनों पाष्र्व अधिक सक्रिय हो पायें।
16. हाथ-पैरों की अँगुलियों इत्यादि की अस्थियों को मरोड़कर अथवा खींचकर वहाँ से आवाज़ निकलवाने (जिसे कहीं-कहीं चिटखाना भी कहते हैं) का प्रयास न करें, यह अस्वास्थ्यकर होता है। हाथ-पैर धोते व तैल लगाते समय हर अँगुली के सभी ओर अलग से पहुँचें ताकि अँगुलियों का कोई भाग अनछुआ न रहे।
17. भोजन सात्त्विक, शुद्ध, शाकाहारी व यथासम्भव ताज़ा हो तथा उसमें विभिन्न सब्जियों का मिश्रण हो; अंकुरित अनाज, सलाद इत्यादि कच्ची खाद्य-सामग्रियों का प्रयोग अवष्य करें जो पाचन-तन्त्र सहित दाढ़-दाँतों के स्वास्थ्य के लिये भी अत्यन्त सहायक हैं।
18. रेडी-टू-ईट, रेडी-टू-फ्ऱाए, रेडी-टू-यूज़ विविध सामग्रियों के बजाय कच्चे पदार्थ घर में लाकर बनाने का प्रयास भोजन व अन्य सन्दर्भों में भी करें ताकि पूरा शरीर घर के भीतर भी अधिकाधिक सक्रिय रखा जा सके।
वाशिंग मशीन, ‘यूज़ एण्ड थ्रो’ जैसी वस्तुओं (जो कि प्रायः पर्यावरण-प्रदूषक भी सिद्ध होती हैं) का लोभ त्यागें जो जीवन को अनावष्यक रूप से आरामदेह बना देती हैं, आलस्य व प्रमाद बढ़ाती हैं, शरीर को निष्क्रिय बनाती हैं एवं ‘खाली दिमाग शैतान का घर’ बनाकर मस्तिष्क को व्यर्थ बातों में विचलित करती हैं।
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jay shiv says
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