एक बेहतर लेखक कैसे बनें ? 13 तरीके How To Become A Good Writer In Hindi
How To Become A Good Writer In Hindi
हो सकता है कि आपके पास किसी अथवा कुछ विषयों में ज्ञान का भण्डार हो एवं आप इसे दूसरों में वितरित करके एक भला कार्य कर सकते हों परन्तु यदि ऐसा है तो आपको दूसरों तक इसे सटीक तरीके में पहुँचाना होगा जिसके लिये कुछ Tips ध्यान रखें जो एक अच्छा अनूदक, अच्छा वक्ता एवं समग्र रूप में एक अच्छा मनुष्य बनने के भी लिये उपयोगी हैं.
How To Become A Good Writer In Hindi
1. जब जो विचार आये उसे उसी रूप में लिख लें ( एक बार में पूर्ण सटीक वाक्य अथवा Editing आदि की चिंता न करें, यह सब तो बाद में किया जा सकता है । तुरंत न लिखा जाये तो आशंका बनी रहेगी कि कई महत्त्वपूर्ण विचारों को आप विस्मृत कर जायेंगे।
2. इलेक्ट्रानिक गज़ेट्स पर निर्भर न हों : हो सके तो कागज़ या Copy पर लिखें एवं एक-एक Line स्पेस छोड़कर Pencil से लिखें ताकि जरूरत पड़ने पर वाक्यों शब्दों को जोड़ा-घटाया जा सके।
3. अन्तिम कलेवर प्रदान करने से पहले एक बार स्वयं निष्पक्ष होकर एवं आलोचना करने की तरह उसे पढ़ें मानो अपने शत्रु का कोई Article पढ़ रहे हों.
4. किसी एक पक्ष की ओर आपका झुकाव हो तो भी समस्त पक्षों को साथ-साथ रखकर उल्लेख करें, अपने लेखन-विषय के साथ पक्षपात न होने दें, तटस्थ रहकर Writing न किया तो वह दूसरों के लिये उतना उपयोगी नहीं रह जायेगा।
5. सम्बन्धित विषयों में विषय-विशेषज्ञों के आलेखों व उनके वाद-प्रतिवाद को भी पढ़ें परन्तु ऐसा न समझ बैठें कि एक्सपर्ट सही ही बोल रहे होंगे। किसी एक पक्ष में बहुमत होने को उसके सही होने का सबूत न समझें, न ही किसी पक्ष में अल्पमत होने से उसे मिथ्या घोषित करें।
प्रायः किसी भी बात के परस्पर विरोधी विषय-विशेषज्ञ अपनी बात को बढ़ा-चढ़ाकर अतिरंजित कर डालते हैं एवं विरोधी पक्ष को दुर्बल करने की चेष्टा करते हैं तथा हर बार हर Subject को तर्क से तौल पाना भी सम्भव नहीं होता. प्रमाणों साक्ष्यों के अभाव में किसी को दोषी या पराजित अथवा निर्दोष या विजयी सिद्ध कर देना बुद्धिमत्ता नहीं है।
6. प्रामाणिक पुस्तकों / आलेखों / पत्रिकाओं, आँकड़ों / तथ्यों को देखें परन्तु उन्हें Exmple मात्र समझें, अपने लेखन का आधार न बनने दें, मौलिकता बरकरार रहे, आपके भीतर से लेख के भाव उभरने चाहिए. संख्या व सांख्यिकी इत्यादि को दर्शाने के लिये कुछ वाक्य ज्यों के त्यों दोहराने जरुरी हो सकते हैं किन्तु उस स्थिति में सन्दर्भ स्रोत का उल्लेख अवश्य करें.
उसमें अपने मत या दृष्टिकोण की मिलावट न करें एवं वास्तव में ज्यों का त्यों लिखें ताकि आपके विचार एवं उस सन्दर्भ स्रोत से लिया गया अंश ये दोनों पृथक्-पृथक् दिखें।
7. यदि किसी के उद्धरण / कथन इत्यादि का उल्लेख करना हो तो अनुवाद में भी उसका अर्थ तनिक भी ऊपर-नीचे न हो पाये तथा उद्धरण-चिह्न ”…“ का प्रयोग करें ताकि स्पष्ट रहे कि किसके अनुसार क्या है या किसने कहाँ से कहाँ तक बोला।
8. यदि Typing (टायपिंग), लेख-संशोधन (Proof Reading) या एडिटिंग (Editing) के लिये किसी अन्य को अपना आलेख सौंपा हो तो प्रकाशन से पहले स्वयं एक बार जरुर देख लें।
9. यदि किसी तथ्य या प्रामाणिकता पर आपको संदेह हो अथवा आप विशुद्ध रूप से आशवस्त न हों तो ‘सम्भवतया’ इस प्रकार का अर्थ दर्शाने वाले शब्दों का निःसंकोच प्रयोग करें.
जहाँ-जहाँ भी आपके अथवा अन्यों के अनुमान / आकलन हो तो वहाँ इन शब्दों का व स्रोत का उल्लेख जरुर करें, जैसे कि अमुक संस्थान द्वारा सन् 2020 के मौसम-पूर्वानुमान के अनुसार अथवा वर्ष 2019 में तत्कालीन भारत शासन के आकलन के अनुसार।
10. प्रामाणिकता का ध्यान रखें, वैज्ञानिक, धार्मिक, चिकित्सात्मक इत्यादि समस्त प्रकार के तर्कों व साक्ष्यों का प्रयोग करें ताकि हर मानसिकता का व्यक्ति उसे समझ-स्वीकार सके। संदिग्ध व अप्रासंगिक जानकारियों के समावेश से परहेज करें।
किसी बात की प्रामाणिकता परखने का कोई अचूक उपाय तो होता नहीं है परन्तु फिर भी उस Subject में कट्टर विरोधियों में पारस्परिक विरोधाभासों का अवलोकन निकटता से करते हुए वास्तविक स्थितियों के निरीक्षण का प्रयास तो किया जा सकता है।
11. स्रोत का उल्लेख करते समय देश, समय व वातावरण सहित प्रमुख परिस्थितियों का विवरण स्पष्टतया दर्शाए ताकि तत्कालीन स्थितियों के सम्बन्धित निष्कर्ष को तत्कालीन प्रसंगों में समझा जा सके, वर्तमान में अतीत या भविष्य का अथवा वर्तमान का निरूपण अथवा प्रदर्शन करना हो तो समस्त आधारों, उदाहरणों व परिदृष्यों सहित प्रत्येक पहलू एवं समस्त प्रभावी कारकों का उल्लेख किया जाना जरूरी है।
12. कारण-प्रभाव सम्बन्ध :
प्रायः किसी एक घटना के अनेक कारण व अनेक प्रभाव हो सकते हैं, किस कारण से कौन-सा प्रभाव पड़ रहा है इत्यादि सह सम्बन्धों को समझना टेढ़ी खीर है, अतः विस्तृत विश्लेषण व स्वविवेक के बिना किसी भी कारण को किसी प्रभाव से न जोड़ें। इस कारण-प्रभाव सह सम्बन्ध को ढंग से समझना हो तो अपने पूर्वाग्रहों को तजना होगा एवं सच्चे अर्थों में निष्पक्ष होना होगा।
13. इन्टरनेट, गूगल इत्यादि को ज्ञान-स्रोत समझने का भ्रम अपने आप शीघ्र अभी तोड़ लें, यदि Hard Copy पुस्तकें कम पड़ रही हों तो पीडीएफ़ में सम्बन्धित शोध संस्थानों की रिपोट्र्स, पुस्तकों के PDF या Googlebooks को देख सकते हैं, किसी शब्द के अर्थ व परिभाषा के लिये भी Online शब्दकोशो इत्यादि की सहायता प्राप्त की जा सकती है ( वैसे आजकल डाउनलोडेबल Offline Dictionory व Softcopies उपलब्ध हैं ).
परन्तु इन पर तनिक भी निर्भर मत हो जाना एवं मानवीय स्वविवेक की कसौटी पर परखे बिना Google वास्तव में कचरे का ढेर है जहाँ फ़र्ज़ीवाड़ों/जालसाजियों, विरोधाभासों एवं संदिग्ध व अप्रामाणिक सूचनाओं व तथ्यों की ही भरमार रहती है. Wikepedia इन्सायक्लोपीडिया में भी तो जनसाधारण की पहुँच होने से अप्रामाणिकता के खरपतवार लहलहा रहे होते हैं।
किसी विशेषज्ञीय अथवा अनुसंधान समूह की लिखी जानकारियों को परम सत्य न मान लेना, विशेषज्ञ को किसी Subject का Knowledge अन्य औसत व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक हो सकता है परन्तु न तो वह सर्वज्ञ हो सकता है, न ही निरहंकार, न ही त्रुटिरहित।
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