दोस्त रिश्तेदार कैसे करते है आपका जीवन बर्बाद How Relatives Friends Destroy Life In Hindi
How Relatives Friends Destroy Life In Hindi
चैरासी लाख में मानव-योनि ही कर्मयोनि कहलाती है अर्थात् मनुष्य पुराने कर्मों के फल भोगता तो है ही परन्तु नये कर्म भी कर सकता है जबकि अन्य जीवन-जन्तु, पेड़-पौधे भोग शरीर होते हैं, अर्थात् वे मात्र कर्मफल भोग सकते हैं, नये कर्म नहीं कर सकते।
गर्भ में आने से लगभग 5 से 15 साल की आयु तक मनुष्य भी लगभग भोग शरीर जैसा होता है क्योंकि इस आयु में व्यक्ति का स्वयं का दिमाग, स्वयं का प्रेरक अस्तित्व नहीं होता एवं वह परिजनों या बाहरी व्यक्तियों के हाथों की कठपुतली होता है.
यदि ये संगतियाँ अच्छी हुईं तो व्यक्ति अच्छा व यदि बुरी हुईं तो व्यक्ति बुरा सोचेगा, बोलेगा, करेगा लगभग ऐसा मानकर चला जा सकता है। वैसे भी इस अवधि में मानव भी पशु से भी अधिक निरुद्देष्य चेष्टाएँ करने, साँस लेने, खाने-पीने, खेलने-कूदने इत्यादि में ही जीवन का यह भाग बिता देता है।
मित्रों व परिजनों या रिश्तेदारों को अपना माना जाता है परन्तु यदि हम विश्लेषण करें तो पता चलेगा हम में से बहुतों के जीवन का बहुत बड़ा भाग इन्हीं तथाकथित मित्रों व परिजनों, रिश्तेदारों के कारण बर्बाद होता रहता है :
How Relatives Friends Destroy Life In Hindi
1. आवश्यकता-आधारित सम्बन्ध :
नश्वर सम्बन्ध आवश्यकता-आधारित होते हैं, माता-पिता की इच्छा से आत्मा शरीर के माध्यम से गर्भस्थ हो जाती है; फिर उसे अपने-अपने ममत्व की पूर्ति के लिये अभिभावकों द्वारा पाला जाता है। सन्तान-पालन के दौरान ऐसी कई बातें उसे जाने-अनजाने सिखा दी जाती हैं जो नहीं सिखायी जानी चाहिए.
जैसे कि कुत्ते को देखकर पत्थर उठा लेना, वृक्ष-हत्या ( पेड़ों की कटाई ) में भी सहज रहना, बच्चा यदि दूसरे की चीज़ों को छीने तो उसे शाबाशी देना या ख़ुशी ज़ाहिर करना मानो उसने कोई धर्मसंगत वीरता का कार्य किया हो.
सुबह समय पर न उठना, मोबाइल, लड़ना-झगड़ना, असभ्य आचार-व्यवहार, रेडी टू ईट अथवा मैगी-नूडल्स जैसे रेडी टू कुक फ़ूड, फ़ास्ट जंक फ़ूड, कोल्ड सोफ़्ट ड्रिंक, स्वार्थ के लिये बातें छुपाना व अपने आप को बचाने के लिये बातें बनाना इत्यादि।
जब व्यक्ति को लगने लगता है कि हमसे उसके ये सब प्रयोजन पूरे नहीं हो रहे तो वह अपना असली रूप दिखा देता है; मान लो कि माता-पिता को अपनी सन्तान के बचपन में ही पता चल जाये कि उसकी सन्तान बड़ी होकर अन्तर्जातीय विवाह करने वाली है तो बहुत सम्भावना है कि वे उसे या तो मार देंगे, कहीं छोड़ आयेंगे अथवा बेमन से पालेंगे, बस बोझा ढो रहे हैं ऐसा समझकर।
आप अपने आसपास के लोगों की ग़लत बातों का विरोध करें तो उनका वास्तविक रूप सामने आ जायेगा, वे आपसे कटने लगेंगे क्योंकि उन्हें लगेगा कि आप उनके काम के नहीं, उन्हें आपकी मौन-स्वीकृति अब मिलनी बन्द हो गयी। ‘बच्चों को अच्छे संस्कार कैसे दें’ नामक आलेख अवश्य पढ़ें।
2. थाली का बैंगन अथवा बिन पेंदे का लोटा :
रिश्तेदार, परिवार, दोस्त, घनिष्ट कहलाने वाले अधिकांश व्यक्ति ऐसे ही होते हैं कि जब जिस पक्ष में बहुमत गया अथवा लाभ अधिक दिखा वे उसी ओर लुढ़क जाते हैं। उनकी अपनी समस्या, अपनी ज़िन्दगी, अपनी परिस्थिति उन्हें महत्वपूर्ण लगती है, आप उनके लिये द्वितीयक होते हैं, हो सकता है कि मन ही मन वह आपको तृतीयक अथवा चतुर्थक भी न समझता हो।
3. औपचारिकताओं में धन और समय का नाश :
इनके जन्मदिवस, सगाई-शादी में अनावश्यक उपहार लेनदेन व अन्य प्रकारों से खर्चों एवं समय के दुरुपयोग में आज तक कितना समय व धन खर्चा इसका लेखा-जोखा अभी एक तरफ़ बैठकर तैयार करें……………… इस तैयारी के बाद अवलोकन करें कि काश यह किसी अच्छे कार्य में किया होता तो कितना उत्तम होता; अब से जाग जायें।
4. आर्थिक लेन-देन :
उधारी हो अथवा अन्य किसी प्रकार का भौतिक लेन-देन वह सम्बन्धनाशक होता है तथा ऐसे आधारों पर बनाये गये सम्बन्ध भी क्षणभंगुर होते हैं। ‘ कुसंगति से कैसे बचें ’ नामक आलेख आर्टिकल पढ़ें।
5. रिश्ता नहीं, सकारात्मकता देखें :
किसी से नश्वर सम्बन्धों के आधार पर उसे अपना मान बैठना अमंगलकारी होता है, रक्तसम्बन्ध अथवा आर्थिक, शैक्षणिक, कार्यालयीन किसी भी प्रकार का घोषित, अघोषित अथवा मुँहबोला सम्बन्ध सार्थकता की ग्यारण्टी नहीं ले सकता।
सांसारिक सम्बन्ध प्रायः निरर्थक होते हैं जो एक निश्चित अवधि के लिये व्यक्ति को कर्मफल भुगतवाने के लिये ईश्वर द्वारा रचे होते हैं परन्तु व्यक्ति इन्हें ही अपना मान जीवनभर के लिये उनसे जुड़ जाता है।
बहुत कम ऐसा होता है कि पारिवारिक अथवा मैत्री सम्बन्ध सच में सार्थक अथवा किसी प्रकार से सकारात्मक हों, उदाहरण के लिये कयाधु-प्रह्लाद सम्बन्ध पारिवारिक होकर भी सकारात्मक था क्योंकि हिरण्यकषिपु द्वारा डराये जाने पर भी वह पुत्र को हरिभक्ति की शिक्षा देती थी.
जबकि साधारण माँयें तो ”बेटा ! प्राण बचा, पिता की अनुचित माँग मान ले“ बोलतीं। माँ अथवा कोई भी रिश्ता हो तो कयाधु जैसा जो सार्थक है, मोहरहित है, आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर करने वाला है।
व्यक्ति का चरित्र व भविष्य बिगाड़ने में परिजनों की बड़ी भूमिका रहती है, विश्रवा जैसे प्रकाण्ड ब्राह्मण के पुत्र होने के बावजूद दूषितमना कैकसी रूपी माता होने के कारण कुम्भकर्ण व रावण में दानवी गुणों की भरमार रही। बस विभीषण अच्छा निकला जिसने आगे चलकर साक्षात्कार विष्णु-अवतारी राम के काज किये।
6. संन्यास व वैराग्य की महत्ता :
जब सबसे उबरना ही है तो उनमें पड़ना क्यों ! संसार प्रायः व्यक्ति की अच्छी ऊर्जाओं, सच्ची शक्तियों का शोषक होता है, परिवार व तथाकथित मित्र हमें व्यर्थ की Direction में ले जाने को आतुर रहते हैं.
जैसे कि ये करले, वो करले तो ऐसा हो जायेगा, धन-सम्पत्ति, पार्टी, वाहवाही इत्यादि में ही जीवन का अधिकांश भाग उलझकर रह जाता है। कोई भी कुछ अच्छा करने को प्रेरित नहीं करता; आपको किस-किस ने व कितनी बार ऐसा प्रेरित किया ? ……….. (लिखें).
कोई भी कुछ बुरा करने से नहीं रोकता; आपको किस-किस ने व कितनी बार ऐसा करने से रोका ? …………… ( लिखें )। आप स्वयं पायेंगे कि रिक्त स्थान में लिखने को संख्या, व्यक्ति व आवृत्ति बहुत कम है। इन सबके साथ रहेंगे तो परस्पर प्रतिकार में ही बहुत ऊर्जा खप जायेगी। चलें भगवत् की ओर। चलें सार्थकता की ओर।
7. कर्मफल :
व्यक्ति को जैसा भी परिवार मिला हो वह उसका कर्मफल है परन्तु उस परिवार की ग़लत धारणाओं, अनुचित निर्देशो को मानने के लिये वह बाध्य नहीं है; चाहे 10-15 वर्ष की आयु तक वह परिजनों के हाथ की कठपुतली रहा हो, अन्य पशुओं जैसे मात्र भोग शरीर जो स्वयं से कर्म नहीं कर पाता परन्तु इस अवस्था के बाद तो उसकी आत्मा जाग जानी चाहिए.
चूज़ा भी घौंसला छोड़ जाता है उसे स्थायी समझकर वहीं जम नहीं जाता, अतः परिवार की ग़लतियों को नज़रअंदाज़ कभी न करें। धर्म के लिये परिवार के विरुद्ध उतरना पड़े तो संकोच नहीं करना। बड़े-बड़े महात्माओं तक को पारिवारिक व संगी-साथियों का प्रतिकार झेलना पड़ा है।
8. सही पाठ कोई नहीं पढ़ाता :
घर के भीतर परिवार वाले व घर से बाहर संगी-साथी एवं अन्य सब के सब बस अपने बने-बनाये रवैये व रुख़ के आधार पर फैसला करने में लगे रहते हैं, सब हमारा उपयोग उनके अपने के लिये कर रहे होते हैं। सच्चा मार्गदर्षक बिरले ही किसी को मिल पाता है जो अनुचित व अनैतिक के विरुद्ध आगे उठना सिखाये, जो स्वार्थ तज परमार्थ की सीख दे, जो सांसारिक नश्वरता छोड़ शाश्वत की ओर ले चले.
जो स्वयं निःस्वार्थ रहकर हमें निष्काम होने का पाठ पढ़ाये, जो भौतिकता के बंध तोड़ हमें आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ाये, जो दूसरों से स्पर्धा नहीं बल्कि सबका सच्चा हित करना सिखाये, जो पैसे-प्रतिष्ठा आदि निरर्थकताओं से परे सार्थक-सकारात्मक जीवन जीने के नुस्खे बताये।
तो दोस्तों यह लेख था दोस्त रिश्तेदार कैसे करते है आपका जीवन बर्बाद – How Relatives Friends Destroy Life In Hindi, Dost Rishtedar Kaise Karte Hai Aapka Jeevan Barbad Hindi Me. यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो कमेंट करें। अपने दोस्तों और साथियों में भी 25 Way To Personal Hygiene Tips In Hindi शेयर करें।
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