पशु-पक्षियों के 40 उपकार 40 Benefaction Of Birds Animals In Hindi
40 Benefaction Of Birds Animals In Hindi
दोस्तों, पशु-पक्षियों के हमारे जीवन में एक बहुत ही बड़ा स्थान है, यह कहना गलत नहीं होगा की अगर पशु व पक्षी नहीं होते तो मनुष्य का जीवन जीना भी दुर्लभ हो जाता है.
पुराने समय से ही मानव पशुओ को साथ लेकर अपने कई कार्यो को सिद्ध कर चूका है और निरंतर पशु-पक्षियों को अपनी सेवा के लिए उपयोग करता रहता है. आइये आज इस लेख में हम आपको पशु-पक्षियों के हम पर किये गये उपकार को जानेगे.
40 Benefaction Of Birds Animals In Hindi
1. आशुतोश :
पहली बात तो पशु-पक्षी प्रायः नाराज़ होते नहीं, यदि किसी कारण वश हो भी गये तो बड़ी आसानी से मान जाते हैं, बस आपकी एक मुस्कुराहट से ही राज़ी हो जाते हैं, उनके सिर पर हाथ फेर दिया तो मानो आपके सभी अत्याचारों, सब क्लेश -कलह भूल आपको दिल से अपना लेते हैं।
2. दूध :
लगभग सम्पूर्ण आहार कहलाने वाला दूध गाय-भैंस-बकरी लगभग पूरी जवानी बस आपको देते रहते हैं। इस दूध के ढेरों दुग्धोत्पाद तैयार किये जाते हैं जिनसे बहुसंख्य परिवारों की गृहस्थी व कारखानों की आर्थिक स्थिति चलती है।
3. मूत्र :
छत्तीसगढ़ में जंगली जल-भैंसे के ज्वलनशील मूत्र का प्रयोग घर में प्रकाश व्यवस्था में किया जाता था, बिल्ली का मूत्र मानव-कर्ण के उपचार में सहायक पाया गया है. गाय का मूत्र तो खेत व शरीर दोनों की शुद्धि व उपचार के लिये जगविख्यात है ही।
4. गोबर :
गाय-भैंस के गोबर में समूचे जग की ईंधन (कण्डे उपले व गोबरगैस व बायोगैस के रूप में) एवं जैविक खाद आवश्यकताओं की पूर्ति की सामथ्र्य है. स्त्रियों के सौन्दर्य-प्रसाधन तक में गोबर की महत्ता है। वैज्ञानिक अनुसंधानों में देखा गया है कि गोबर से लिपा घर रोगाणुओं व कीटाणुओं एवं हानिकर वैद्युत्-चुम्बकीय विकिरणों से काफ़ी सीमा तक सुरक्षित रहता है।
5. खाद :
गाय-भैंस के पेट में 24 घण्टे से भी कम अवधि में बनने वाली गोबर रूपी खाद के अतिरिक्त भी सभी पशु-पक्षियों के मल-मूत्र मृदा के बाँझपन को दूर करते हैं।
6. जैविक कीट-नियन्त्रण :
गौमूत्र से फसलों को कीटों से व भूमि को दीमकों से बचाने में बड़ी सहायता हो जाती है। आज कल तो घरेलु सफाई के तरलों में भी गौमूत्र एक घटक के रूप में मिलाया जाने लगा है।
7. पेट-थिरेपी :
पालतू पशुओं के सान्निध्य व छुअन से रक्तचाप इत्यादि विविध मानवीय रोगों के उपचार में सहायता होती है। जहाँ पालतू पशु होते हैं वह अन्य घरों की अपेक्षा अधिक सुखी, शान्त व नीरोग रहता है।
8. रोगहत्र्ता :
जिंक द्वारा मानव के दूषित रक्त को खींचने सहित एक्युपंक्चर द्वारा उपचार के अनेक उदाहरण देखे गये हैं। टीकों के निर्माण में पशुओं का महत्त्व तो आप जानते ही होंगे।
9. सौन्दर्य-वर्द्धक :
आलीशान होटलों व ब्यूटी सैलून सहित प्राकृतिक उपचार-केन्द्रों में मछलियों से पेडिक्योर करवाने की इच्छा रखने वाले बहुत हैं।
10. फसल-रक्षक :
साँपों, उल्लुओं, मोरों व बिल्लियों द्वारा चूहों को खाकर प्लेग जैसी कई बीमारियों से मानवों का बचाव करने के साथ ही अनाज के एक बड़े भाग को बचा लिया जाता है, अन्यथा कारखानों व घरों में रखे बिजली के उपकरणों तक को चूहों से बचा पाना किसके बस की बात होती !
11. मानवों के अधूरेपन की पूर्ति :
कोई अकेला हो या किसी के साथ, पशु ही जीवनभर के व सच्चे साथी होते हैं जो हर मानव के मन का अधूरापन सहज ही पूरा कर देते हैं। इनके साथ हर समय Quality Time होता है। एक-दूसरे का स्नेह पाने व जीभर के प्यार लुटाने की पारस्परिक आवश्यकतापूर्ति पशुओं के माध्यम से स्वतः हो जाती है।
12. सच्चे साथी :
ये हर स्थिति में हृदय से साथी होते हैं, बिना मोलभाव, बिना तोलमोल, बिन लेन-देन के बस आपका साथ निभाते हैं, इन्हें कहीं और जाने की अथवा कुछ और करने की नहीं पड़ी होती।
13. निःशर्त प्रेम :
एक हाथ ले, एक हाथ दे वाला व्यापार पशु-पक्षियों में नही चलता, मोहल्ले में घूमने वाले कुत्ते को देखकर मुस्कुरा दो अथवा उसे अपने पास भर आने दो तो इतने में ही वह आपके आसपास आ जाता है एवं पता ही नहीं चलता कि आप व उसकी पक्की दोस्ती कब परवान चढ़ने लगी।
14. निःस्वार्थ सेवा :
मुझे क्या मिलेगा जैसी सोच पशु-पक्षियों की नहीं होती, ऐसे बहुत सारे उदाहरण सामने आये हैं जहाँ पक्षी अथवा पशु को मनुष्य भोजन व आसरा कुछ भी प्रदान नहीं करता था फिर भी किसी मुश्किल घड़ी में उसने उस मनुष्य की मुश्किल घटायी अथवा दूर की।
15. द्वेषरहित :
ये हमसे कोई पूर्वाग्रह, दोष दर्शन अथवा बैरभाव नहीं रखते बल्कि हमारी ग़लतियों व ग़ुनाहों तक को जल्दी ही भूल जाने की अजीब व आश्चर्य जनक आदत इनको होती है। ये हमारी बातें पकड़कर मुँह फुलाये नहीं बैठते।
हममें चाहे जितने दोष हों परन्तु ये हमसे कभी द्वेष नहीं करते। गाय के दूध पर पहला अधिकार उसके बच्चे का होता है फिर भी वह अपनी आँख़ों के सामने देखती है कि मानव उसके दूध का व्यापार करने लिये बछड़े को मिलने वाली दूध की मात्रा को सिमटा रहा है फिर भी वह विशेष रोष नहीं करती, न ही आक्रामक होती है।
16. रोज़गार प्रदाता :
पशुधन के रूप में ये धन-उत्पादक ही नहीं बल्कि स्वयं भी सम्पदारूप होते हैं। पालतू पशु घर के लिये एवं वन्य पशु समूचे पारिस्थितिक तन्त्र हेतु सजीव लक्ष्मी स्वरूप होते हैं।
17. जहाँ कोई रह नहीं सकता वहाँ भी ये परोपकार करते :
ध्रुवीय व अन्य हिमाच्छादित क्षेत्रों में रेनडियर व बर्फ़ीले कुत्ते यातायात व परिवहन में साथ निभाते हैं तथा इतनी शीतल जलवायु में जहाँ वनस्पतियाँ उग नहीं पातीं वहाँ पायी जाने वाली मछलियों को खाकर व अन्य जीवों का ख़ून व इसके उत्पाद पी-खाकर मनुष्य अपनी गुजर-बसर करते हैं ( ध्यान रहे – हम माँसाहार का समर्थन नहीं कर रहे, बस पशु-पक्षियों के उपकारों की गाथा का बखान कर रहे हैं )।
18. गर्माहट प्रदाता :
हमारे ओढ़ने-बिछाने से लेकर शीतकाल में हमें हाड़ कँपा देने वाली ठंड से बचाने में भी पशु स्वयं को कुर्बान कर देते हैं, फ़र व चमड़े से बनी वस्तुएँ धु्रवों की जलवायु व अन्य शीतल स्थितियों में मनुष्यों को ठण्ड से बचाने काम में लायी जाती हैं (स्मरण रखें कि हम किसी को मारकर उसके कपड़े बनाने का समर्थन नहीं करते)।
19. मृत्यु के बाद भी :
एक उदाहरण सामने आया था जब एक बन्दर किसी व्यक्ति की मृत्यु के अवसर पर उसके शव पर लकड़ियाँ रखने व आगंतुकों को पानी का गिलास परोसने के प्रयास करते देखा गया, वैसे यह पूर्वजन्म से जुड़ी कोई घटना हो सकती है परन्तु फिर भी है तो अद्भुत, इसके अतिरिक्त कई पालतू पशुओं के मामलों में ऐसा देखा गया है कि मालिक यदि चिकित्सालय में भर्ती हो तो वे चिकित्सालय में आने के प्रयास करते गये एवं मृत्यु के बाद भी कब्रिस्तान में उसकी कब्र के पास नियमित रूप से जाते रहे अथवा वहीं भूखे-प्यासे बैठे रहे।
20. स्वामीभक्ति :
श्वान तो स्वामी भक्ति के लिये प्रसिद्ध है ही परन्तु कोल्हू के बैल व कर्री ज़मीन पर हल जोतने वाले बैल सहित अन्य पशुओं की शालीनता तो देखें जो उस समय सरलता से भाग सकते हैं जब उन्हें खुला छोड़ा जाता है परन्तु वे नहीं भागते. घर में आग लगने पर मालिक को जगाना, घायल मालिक तक सहायता पहुँचाना ऐसे उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है।
21. ढूँढ-ढूँढकर सहायता :
शत्रु सैनिकों को पकड़कर लाने के लिये प्रशिक्षित चीते, ब़ारीक़ सुराग तक पहुँचने में सहयोगी कुत्ते एवं बड़े इलाके की टोह लेते बाज़ सहायता की प्रतिमूर्तियाँ हैं।
22. वृक्षबीज-प्रसार :
गिलहरियों व पक्षियों द्वारा न जाने कितने अधिक बीजों को यहाँ-वहाँ छितरा दिया जाता है जिससे अधिक से अधिक क्षेत्र में अधिकाधिक पौधारोपण सम्भव होता है, इसी के साथ मधुमक्खियों, तितलियों व भँवरों के द्वारा परागण में सहायता करते हुए पूरे संसार का भला किया जाता है.
खेतों में भी लगभग 70 प्रतिशत उपज के लिये परागणकारी मधुमक्खियाँ उत्तरदायी पायी गयी हैं। मोबाइल-टावर्स से निकले विकिरण से इनकी संख्या में कमी से परागण एवं फसलोपज में बहुत कमी आ रही है।
23. आपदाओं की पूर्वसूचना :
घर में रिस रही रसोई गैस हो या फिर भूकम्प अथवा तूफ़ान के आने की आहट पशु-पक्षियों को इनका पता पहले ही लग जाता है. साँप अपनी पूँछ ज़ोर-ज़ोर से पटकने लगते हैं, हाथी सुरक्षित स्थानों में चले जाते हैं एवं बरसों पहले दक्षिण भारत में आयी त्स्युनामी से पहले ही एक लड़की को पहले ही इसकी पूर्वसूचना मिल चुकी थी जो तट पर मछलियों को खाना देने आया करती थी व उस घटना के पहले मछलियों का व्यवहार उसे अटपटा लगा।
24. दुसरो के दुःख में दुखी होना :
दूसरे के दुःख में दुःखी होना पशुओं के स्वभाव में होता है, कई बार पाया गया है कि बन्दरों इत्यादि को स्वादिष्ट फल देने पर भी वह इसलिये उसे नहीं खा रहा था क्योंकि साथ वाला बन्दर किसी कष्ट में अथवा भूखा था।
25. अपने शिकारी के भी लिये उदार :
बकरे व मुर्गे अपने साथियों को कटते देखकर भी आत्म-बलिदान की पराकाष्ठा को पार कर देते हैं. अपने भावी हत्यारों के प्रति तक वफ़ादार रहते हैं एवं उन पर भी प्यार लुटाते हैं।
26. दयाभाव :
भूखे मनुष्य के लिये रोटी खोजकर ले आने व खिलाने वाले पशु-पक्षियों के उदाहरण सुने ही होंगे, यहाँ तक कि बार-बार दुत्कारे जाने पर भी पशु-पक्षी अपनी ओर से हमारा बहिष्कार नहीं करते। उनमें करुणा का भाव कूट-कूटकर भरा होता है।
27. प्रतिशोध इन्हें नहीं पता :
वन्य हों या पालतू, जलीय हों अथवा थलीय समस्त पशु-पक्षियों पर मानवों ने इतने प्रत्यक्ष व परोक्ष अन्याय किये हैं यदि वे प्रतिशोध पर उतर आते तो अभी हम ‘ 7 अरब ’ नहीं होते, कब के धरती से समाप्त हो चुके होते. साँपों व बिल्लियों को बदला लेने वाले जानवर कहने वालो लोग वास्तव में इनके अहसानों का अपमान कर रहे होते हैं।
28. अपने किये उपकार को याद नहीं रखते :
ये तो राम समान होते हैं जिन्हें अपने किये उपकार याद नहीं रहते, न ही ये कभी अहसान जताते हैं, उपकार करके भी ये ‘प्रतिफल’ पाने की चाह नहीं रखते।
29. दूसरों द्वारा किये उपकार को याद रखते हैं :
केवल हाथी व घोड़ा ही नहीं बल्कि अन्य पशु-पक्षी भी ऐसे देखे गये हैं कि बहुत पहले जिनकी सहायता की गयी हो तो ये उस व्यक्ति को बाद में भी याद रखते हैं। मनुष्य जैसे कृतघ्न नहीं होते।
30. स्वयं को कष्ट पहुँचने पर भी आपको कष्ट से यथासम्भव बचाये रखते हैं :
सवारी पशु हों अथवा हल में जोते बैल अथवा अन्य, ये उस समय भी आपको पीड़ा से यथाशक्ति बचाये रखते हैं जब ये स्वयं किसी पीड़ा से गुज़र रहे होते हैं, इतना ममत्व तो मानवों में भी दुर्लभ है।
31. जातिगत भेदभाव से परे :
कई बार ऐसा पाया गया है कि किसी मनुष्य के भटके बच्चे को किसी पशु ने अपना दूध पिलाया, मोगली की सच्ची कथा सबके सामने है ही, अन्य उदाहरणों में मनुष्य के अतिरिक्त अन्य प्रजातियों के बच्चों को भी ये पशु अपना स्तनपान कराते पाये गये हैं।
32. मानवों को मानवीयता का पाठ पढ़ाते :
स्नेह, सहयोग, सहिष्णुता इत्यादि मानवीय कहलाने वाले भावों का चाहे मानवों में लोप होता जा रहा हो परन्तु पशुओं में ये भाव सदैव रहते हैं।
33. सम्पूर्ण देहदानी- महादानी :
इनके जीते-जी इनके उत्पादों, अंगों, रक्त, यहाँ तक कि ज़हर तक का प्रयोग मानवजाति अपने स्वार्थ के लिये लगातार करती है परन्तु मरणोपरान्त भी पशु-पक्षियों की हड्डियाँ व अन्य अवशेष तक तथाकथित औषधियाँ, खाद व वैज्ञानिक शोधों में प्रयोग कर लिये जाते हैं।
34. स्मारकों के रचयिता :
देवशिल्पी विश्वकर्मा तो दिव्य शक्तियों का प्रयोग करके देवी-देवताओं के राज-प्रासादों का निर्माण किया करते हैं परन्तु हाथी, बैल, ऊँट इत्यादि के बिना अधिकांश प्राचीन व मुग़लकालीन से लेकर अंग्रेज़ों के ज़माने के स्थापत्य की कल्पना करनी भी कोरी मूर्खता होगी.
दुर्गम पहाड़ियों पर बड़ी भारी षिलाओं को ले जाकर सटीक क्रम में जमवाना हाथियों के सिवाय और किसके बस में था? जबकि आज के आधुनिक मकानों की तो मियाद ही 40 वर्ष से अधिक आमतौर पर नहीं होती।
35. सादगी में भी शिरोमणि :
पशु-पक्षी सीमित में संतोष व न्यूनतावादी (मिनिमॅलिस्टिक) जीवनशैली अपनाते हैं, इन्हें अतिरिक्त सेवाओं व किसी वस्तु तक की आकांक्षा नहीं होती, न्यूनतम में सहज-सहर्ष जीवन निर्वाह की सीख विलासी मनुष्यों को पशुओं से निःशुल्क मिलती है।
36. त्याग में सर्वोपरि :
हम तो किसी दूसरे देश या फिर मोहल्ले में जाने पर भी लिपस्टिक तो कहीं परफ्युम जैसी निरर्थक चीज़ों को सीने से लगाये घूमते हैं परन्तु पशु-पक्षी हमारे लिये अपने साथी-समुदाय, अपनी अनुकूल परिस्थितियों इत्यादि तक का त्याग कर देते हैं एवं रूखा-सूखा खाकर भी हमारे साथ सुख से जीवन जी लेते हैं।
37. धैर्य व संयम की सीमा के उस पार :
चाबुख़ खाकर भी यदि पशु पलटकर आक्रमण न करे, तोता पिंजरा खुलने के बाद भी उड़कर न भागे अथवा घर में आता-जाता रहे तो बताइए धैर्य-संयम का गुणधर्म इनसे अधिक किसमें हुआ ?
38. अकेलेपन में भी पास :
सम्पत्ति, पद, यौवन, तथाकथित प्रतिष्ठा छिनने पर अपने भी दूर चले जाते हैं परन्तु पशु-पक्षियों को इस मोहमाया से कोई लेना देना नहीं होता, ये तो उस समय भी पास बैठे (सहर्ष) दिखते हैं जब अपनों ने व समूचे संसार से मुख मोड़ लिया हो।
39. तौलते नहीं :
हमारे अपने-पराये सभी मानव हमें सभी कार्यो, वस्तुओं को अन्य व्यक्तियों से तौलते रहते हैं किन्तु पशु हर तुलना से परे होते हैं, हम तो रोज़ मिलने वाले व्यक्ति की तुलना में बरसों बाद मिलने वाले व्यक्ति को महत्त्वपूर्ण मानते हैं परन्तु ये पशु हर समय व प्रत्येक परिस्थिति में हमसे अतुल्य स्नेह करते हैं एवं हमारे सान्निध्य को सदैव आतुर रहते हैं।
40. अटूट साथ :
न तो ये तलाक देते-लेते हैं, न ही किसी अन्य प्रकार सम्बन्ध-विच्छेद करते हैं. इनका साथ तो सब मतभेदों, सब दरारों से दूर चिरस्थायी होता है। चारा दानापानी न देने, अब तक बन्धन में रखकर स्वतन्त्र कर देने पर भी ये हमारा साथ छोड़कर नहीं जाते व हमारे आसपास ही रहने के प्रयास करते हैं मानो हमारे अभिभावक, हमारे प्रियजन अथवा साक्षात् भगवान हों।
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