अच्छे बुरे व्यक्ति की पहचान कैसे करे ? How To Identify Good Bad People In Hindi
व्यक्ति की परख अकेले कमरे में उसके कृत्य How To Identify Good Bad People In Hindi
व्यक्ति प्रायः बहुत सारे रूप लिये घूमता है, ये सब के सब उसकी आंशिक छवियाँ हैं, वास्तविक रूप तो उसे ही पता होता है जब वह अकेले कमरे में स्वयं को व्यक्त करता है जब वह ” मुझे कोई नहीं देख रहा ” के प्रति आशवस्त रहता है।
इस समय वह किसी से कुछ छुपाने की फ़िराक में नहीं होता बल्कि अपने मूल रूप को व्यक्त कर रहा होता है। इस सन्दर्भ में ‘चरित्र परखने के उपाय’ भी अवश्य पढ़ें। व्यक्ति बन्द कमरे में अपने किस रूप को कब, कैसे व क्यों व्यक्त करता है इसका उदाहरण सहित विवरण नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है.
How To Identify Good Bad People In Hindi
1. ” मुझे कोई देख-सुन नहीं रहा ” :
जब यह डर नहीं होता तब व्यक्ति स्वयं के विभिन्न वास्तविक रूपों को प्रकट करने लगता है, उसे इस बात का भय नहीं होता कि कोई कुछ क्या सोचेगा या बोलेगा।
उदाहरण स्वरूप कई मनुष्य घर के बाहर एकदम सभ्य बनकर धीरे-धीरे चबा-चबाकर भोजन करते हैं किन्तु घर में कई दिन के भूखे-प्यासे जैसे अधचबा खाना निगलते पाये जाते हैं।
2. उद्दण्डता :
नज़रों व कानों से तथाकथित सुरक्षित स्थिति में मानव मन निडर हो सकता है कि कोई मुझे नहीं डाँटेगा, वह उद्दण्ड हो जाता है। यही कारण है कि अपराधी को रंगे हाथ पकड़ने के लिये उसके कमरे की Video – Recording करनी पड़ती है जिसे स्टिंग ऑपरेशन कहा जाता है।
3. पकड़े जाने से बचाव का ग़लत लाभ उठाना :
उसे रोक-टोक से बचाव मिल जाता है जिससे वह जो चाहे कर पाता है ऐसा उसे लगता है। जैसे कि मोबाइल में अपना समय व चरित्र ख़राब करने की स्वतन्त्रता।
आपने अपने आसपास कभी अनुभव किया होगा कि गाँव में संयुक्त परिवार में रहने वाला किशोर धूम्रपान इत्यादि के नाम से भी डरता है क्योंकि परिजनों द्वारा विरोध का अंदेशा रहता है जबकि यही किशोर शहर जाते ही बाहरी हवा लगते ही खुलकर अपनी छुपी इच्छाओं की बेपरवाह पूर्ति की भद्दी राह पर चल पड़ता है।
4. स्वतन्त्रता व प्राइवेसी का कट्टर समर्थक :
अपने असली रूपों को छुपाये रखने वाले व्यक्तियों में एक बात समान रूप से देखी जाती है कि वे स्वाधीनता व निजता के स्पष्ट समर्थक होते हैं क्योंकि दूसरे व्यक्ति या किसी अपने की नज़र, उनकी फ़िक्र और स्नेह भी इन्हें ‘बन्धन’ प्रतीत होता है।
अपने शुभचिंतक अपने से भी दूर प्राइवेसी में ये आख़िर ऐसा करना क्या चाह रहे हैं जो उसके सामने करने से कतरा रहे हैं ? अपने निष्काम हितैषी की उपस्थिति में तो इसे हर्ष अनुभव होना चाहिए परन्तु क्यों असहजता अनुभव हो रही है ?
5. अलगाव व द्वैत् के पक्षधर :
सबकी नज़रों से दूर अपने असली रूपों में आने वाले व्यक्तियों के विचार कुछ ऐसे होते हैं- ” तुम ग़लत नहीं पर मेरा सोचना अलग है”, “सबका अपना-अपना मत होता है”, ” कोई बात किसी के लिये अच्छी तो दूसरे के लिये बुरी हो सकती है”, ” तू मैं एवं मैं तू नहीं हो सकता” इत्यादि, अर्थात् ये भगवान के अद्वैत् स्वरूप को समझना ही नहीं चाहते कि वास्तव में सभी उस परमात्मा के अंश हैं। एकोअहम् द्वितीयो नास्ति परमसत्य है तथा वास्तव में सही सबके लिये सही और ग़लत सबके लिये ग़लत होता है।
सिद्धान्त व आदर्श सबके लिये समान होने चाहिए व होते भी हैं। दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न हो सकते हैं परन्तु सत्य तो एक ही होता है (जो कि सम्भव है कि सबके दृष्टिकोणों से परे हो)।
बहुमत से भी सच को टटोला नहीं जा सकता। किसी प्रकार से अलगाव अथवा भेदभाव की बात करने वाला हमेशा मेरी बात कुछ और, सब एक-से नहीं होते, मैं अलग तू अलग, वो अलग, सबके रास्ते अलग साबित करने में लगा रहता है।
वह हर एकता में अनेकता के साक्ष्य ढूँढने की यात्रा पर होता है एवं जब भी कोई उदाहरण अपने पक्ष में उसे मिले हर बार अपनी पीठ थपथपाता है एवं दूसरे के सामने गर्व जैसा कुछ अनुभव करता है।
6. बिना एडिटिंग सच्चे भावों की अभिव्यक्ति :
वह अपने मन के सही-ग़लत सब भावों को जस का तस व्यक्त कर पाता है क्योंकि उसे यह डर नहीं सता रहा होता कि कोई मुझे जज कर रहा है। इसलिए उसे क्या बोलना है क्या नहीं, यह तय कर पाना मुश्किल होता है .
7. दूसरों की सोच के प्रभाव से थोड़ी-बहुत अप्रभाविता :
तन-मन खुले साण्ड जैसा घूमने की कोशिश करता है क्योंकि उसे इस बात की परवाह फ़िलहाल नहीं होती कि कोई मेरे बारे में क्या दृष्टिकोण बनायेगा अथवा मेरे व उसके सम्बन्धों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
8. बिन प्रयास के दुराव-छिपाव सम्भव :
उसे ऐसा लगता है कि अकेले कमरे अथवा एकान्त स्थान पर गुप्त रूप से कुछ भी करने में उसे किसी से छुपने में कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ेगा। इसलिए वह अकेले कमरे में वह सब कर सकता है जो वह सबके सामने नहीं कर सकता.
इस प्रकार हम देखते हैं कि व्यक्ति दूसरों की नज़रों में अच्छा लगने व दिखने की चाह में अपनी अभिव्यक्ति कभी पूरी नहीं करता। उसके बारे में प्रायः सर्वाधिक सटीक जानकारियाँ उसके तथाकथित घनिष्ट मित्रों को होती है जो उसकी सही-ग़लत बातों में साथी-साझेदार रहे होते हैं।
दैनिक कामकाज में व दूसरों के सामने व्यक्ति का असली रूप सामने नहीं आ पाता. वास्तविकताओं का पता तो तब चलता है जब वह दैनिक कामकाज एवं सबकी दृष्टि से दूर हो।
उसके विभिन्न यथार्थ रूप तब और खुल-खुलकर उजागर होंगे यदि उसके बिगड़ने के विभिन्न अवसर भी वहाँ सुलभ हों, जैसे कि इन्टरनेट कनेक्शन, उसकी पसन्द की अन्य समस्त ग़लत सेवाएँ व उत्पाद इत्यादि। उदाहरण के लिये व्यक्ति के पास यदि शराब की बोतल व फलरस की गिलास हो तो उसके द्वारा दारू की बोतल चुने जाने की ही सम्भावना है।
हमें वास्तव में सच्चा और अच्छा ‘होना’चाहिए, न कि दूसरों की नज़र में ‘ बनना ’चाहिए। कोई भी बनावट व दिखावट आपको बहुरुपिया साबित करेगी, अन्य से छल-कपट करने वाला स्वयं से स्वयं भी छला जाता है तथा इसके भीतर की अच्छाइयाँ भी दम तोड़ने लगती हैं।
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