पंचतन्त्र की सात मुख्य कहानियाँ Best 7 Stories Of Tales of Panchatantra In Hindi
Best 7 Stories Of Tales of Panchatantra In Hindi
पंचतन्त्र वास्तव में विष्णुषर्मा की रचना है। यह संस्कृत नीतिकथा अपने मूल रूप में अब उपलब्ध नहीं रही परन्तु उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसका लेखन अनुमानत तीसरी शताब्दी ईसापूर्व माना जाता है। लगभग अस्सी वर्षायु में आचार्य विष्णुषर्मा ने इस कालचयी अमरग्रंथ की रचना की जिसकी चयनित सात रोचक व शिक्षाप्रद कहानियाँ आपके लिये प्रस्तुत हैं –
Best 7 Stories Of Tales of Panchatantra In Hindi
1. मगरमच्छ का व्यवहार-परिवर्तन :
एक समुद्रतट के पास जामुन का एक बड़ा-सा सदाबहार पेड़ था। इस पेड़ पर रक्तमुख नामक एक वानर रहता था। एक बार करालमुख नामक एक समुद्री मगरमच्छ समुद्रतट पर आया तो वानर ने अतिथि समझ अपने साथ उसे भी मीठे-मीठे जामुन खिलाये क्योंकिः-
1. शास्त्रानुसार मित्र-शत्रु, पंडित-मूर्ख जो भी आये बलिवैष्वदेव (दिनचर्या में भूल-चूक से हुए पापों के प्रायष्चित्तस्वरूप भोजन से पूर्व पशु-पक्षियों, चींटियों के लिये एवं अन्य पात्रों के लिये कुछ अन्न अवश्य रखें) के समय आया हर व्यक्ति अतिथि है.
2. महर्षि मनु के अनुसार बलि (अर्थात् उपरोक्त बलिवैष्वदेव) के अन्त में अथवा श्राद्ध के समय आगत प्रत्येक व्यक्ति सम्मानित अतिथि है, उस समय उसके निवास, गोत्र, वंश अथवा विद्यादि किसी भी सन्दर्भ में पूछताछ नहीं करनी है.
3. लम्बे मार्ग पर चलने से थके व्यक्ति का भी यथोचित सम्मान किया जाना चाहिए। इस प्रकार मगरमच्छ वहाँ आता रहता एवं वानर उसे जामुन खिलाता जाता। एक बार मगरमच्छ की जिह्वा-लोलुप पत्नी मगरमच्छ से बोली- ”इतने मीठे जामुन प्रतिदिन खाने वाले वानर का हृदय कितना मीठा होगा उसे मैं खाना चाहूँगी, तुम किसी प्रकार उस वानर को मेरे पास ले आओ“।
पत्नी मोह से घिरा मगरमच्छ न चाहते हुए भी यह बात मन में लिये गया व छल करते हुए वानर से बोला कि मेरी पत्नी से मुझसे कहा है कि क्या मैं इतना स्वार्थी हूँ जो बारम्बार मीठे जामुन खाकर आ जाता हूँ परन्तु उस मित्र को घर आमंत्रित तक नहीं करता।
मगरमच्छ वानर को पीठ पर बिठाकर ले जा रहा था एवं मार्ग में मन की वास्तविक बात बतायी कि वह तुम्हारे हृदय को खाना चाहती है। वानर चपलता से उछलकर बच निकला एवं मगरमच्छ की पत्नी का लोभ पूरा नहीं हो पाया।
सीख : लालच बुरी बलाय, हर किसी को मित्र न समझें; परिजनों के प्रति अपना मोह मिटायें, बाहर वाले हों अथवा घर वाले किसी की अनुचित बात में न आयें, कृतघ्न न बनें, किसी से विश्वासघात न करें।
2. जुलाहा एवं शीशम का वृक्ष :
मंथर नामक एक जुलाहा था। औजार बनाने के लिये वह वन की ओर निकला। शीशम के पेड़ के पास जाकर वह रुक गया, जब उसने उसे काटना चाहा तो उसपर निवास करने वाले एक देवता ने कहा कि इस वृक्ष को मत काटो, बदले में जो चाहे माँग लो।
जुलाहा बोला कि मैं बाद में आकर तुमसे माँगता हूँ। वह जुलाहा लौट रहा था कि मार्ग में एक नाई मिला जिससे उसने इस विषय में पूछा तो नाई बोला- ”उससे राज्य माँग लो, तुम राजा बन जाना, मैं मंत्री, दान करना यश मिलेगा“। अब जुलाहा घर पहुँचा तो पत्नी ने कहा- ”राज्य पाते ही बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। राजा अनेक व्यसनों में फँस जाता है।
राज्य के कारण श्रीराम को चैदह वर्षों का वनवास भुगतना पड़ा, पाण्डवों ने भी वनवास बिताया व कौरव-पाण्डव महाभारत किया गया; यदुवंषी मिट गये; राज्य ही के कारण सुदास को गुरु के शाप से राक्षसयोनि में जन्मना पड़ा; राज्य से ही कात्र्तवीर्य व रावण का वध हुआ।
इन सब बातों का विचार करके बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह राज्य की आकांक्षा छोड़े व इस प्रकार सब प्रकार की विपत्तियों को बुलावा भेजना बन्द करे। जिस राज्य के लिये पिता अपने पुत्र का शत्रु बन जाता है, सहोदर सहोदर की हत्या कर देता है उससे दूर ही रहो।
माँगना है तो दो अतिरिक्त हाथ व एक अतिरिक्त मुख माँग लो जिससे हम दोगुने कपड़े सिल पायेंगे व आमदनी दोगुनी हो जायेगी, आधे में घर चल जायेगा, आधे की बचत हो जायेगी“। पत्नी को हामी भरते हुए जुलाहा शीशम के वृक्ष के निकट गया एवं वहाँ निवासरत् देवता से कहा- ”मुझे एक अतिरिक्त मुख व दो हाथ लगा दो“। देवता ने तथास्तु बोल दिया। जब जुलाहा अपने गाँव पहुँचा तो ग्रामीणों ने उसे राक्षस समझ पीट-पीटकर मार डाला।
सीख : सीमित में संतुष्ट रहें, राज्य ही नहीं बल्कि अन्य सभी प्रकार के लोभ-मोह त्याग देने चाहिए।
Best 7 Stories Of Tales of Panchatantra In Hindi
3. व्याध व कबूतरी :
एक व्याध (आखेटक/बहेलिया/शिकारी) था जिसके क्रूर व्यवहार के कारण उसके परिजन उसे छोड़ कर चले गये थे। व्याध ने एक दिन एक कबूतरी को पकड़ कर पिंजरे में डाल दिया। बादल घिर आये व उसे भूख प्यास सहित ठण्ड लगने लगी तो याचना करते हुए बोला कि कोई मेरी सहायता कर सकता है क्या? कबूतरी ने बाहर बैठे अपने पति से कहा कि इस शरणागत की रक्षा करना हमारा धर्म है।
कबूतर बोला कि इसने तुम्हें बन्दी बना लिया है फिर भी तुम इसका भला करने की सोच रही हो ! कबूतरी बोली- ”मैं तो अपने पूर्वजन्म के कर्मफल भोग रही हूँ किन्तु यह पापी, यह पक्षीहत्यारा अभी हमारा शरणागत है इसलिये हमें इसकी सहायता करनी चाहिए“। कबूतर ने सूखी टहनियाँ एकत्र कर उन पर अग्निषिखा ला दी। व्याध को गर्माहट मिली तो वह सुख अनुभव करने लगा। फिर कबूतर बोला कि मैं तुम्हारी भूख मिटाने में असमर्थ हूँ; अब कबूतर आग में कूद गया ताकि व्याध का आहार बन सके।
कपोत युगल का ऐसा बलिदानपूर्ण व्यवहार देख व्याध का हृदय-परिवर्तन हो गया एवं अपने हिंसक कर्मों के प्रति लज्जित होकर उसने कबूतरी को स्वतन्त्र कर दिया। अपने पति के साथ होने के लिये कबूतरी भी आग में कूद पड़ी।
अब दिव्य वस्त्रों व अलंकारों से सुशोभित कबूतर एक विमान में आया एवं पत्नी कबूतरी के आत्मदाह की भूरि-भूरि प्रषंसा की तथा उसे अपने साथ विमान में ले गया। इस समूचे दृष्य से व्याध में वैराग्य उत्पन्न हो गया व उसकी भी सद्गति हो गयी एवं ये तीनों स्वर्ग के अधिकारी हो गये।
4. लौह व बाज :
एक जनपद में जीर्णधन नामक एक दरिद्र बनिया रहता था। उसने एक दिन किसी बड़े नगर जाकर भाग्य आज़माने की सोची। उसके पास बस पूर्वजों की धरोहर के रूप में लौहे की बड़ी भारी तराज़ू थी जिसे उसने अपने विष्वस्त महाजन के पास अमानत के रूप में रख छोड़ा एवं आवश्यक वस्तुएँ एकत्र कर दूसरे नगर की ओर निकल पड़ा।
थोड़े ही समय में उसने वहाँ ढेर सारा धन बटोर लिया किन्तु धनी होने के बावजूद उसका मन वहाँ नहीं लगता था। वह अपना जमा-जमाया पूरा व्यापार छोड़ नगदी लेकर लौट आया। महाजन के पास जब उसने अपनी तराज़ू वापस माँगी तो महाजन बोला- ” तुम्हारी तराज़ू तो चूहे खा गये“। महाजन की धूत्र्तता को भाँपकर वह धीमे स्वर में बोला- ”तराज़ू को तो एक-न-एक दिन नष्ट होना ही था, मेरे यहाँ अथवा आपके यहाँ क्या अन्तर पड़ गया ?
महाजन के बालक को देखकर उसने आगे कहा- ”मैं यात्रा से बहुत थक गया हूँ, स्नान हेतु जा रहा हूँ. अपने पुत्र को भी मेरे साथ भेज दो, वह मेरे वस्त्रादि की देखरेख कर लेगा एवं स्नान का पुण्य प्राप्त करके वह लौट आयेगा“।
जीर्णधन ने उसे एक मार्ग में खोह में ढकेलकर शिला से निकासी को अवरुद्ध कर दिया। स्नान से निवृत्त हुए जीर्णधन को अकेला आता देख महाजन से अपने पुत्र के विषय में पूछा तो जीर्णधन ने कहा- ”उसे बाज उठाकर ले गया जिसके लिये मुझे बड़ा खेद है“।
महाजन बोला- ” रे मूर्ख ! ऐसा कैसे सम्भव है कि उसे बाज उठाकर ले गया ?“
जीर्णधन बोला- ” ठीक वैसे ही जैसे मेरी तराजू़ को चूहों ने खा लिया था“। लड़ते-लड़ते वे न्यायाधीश के पास जा पहुँचे। महाजन को बहुत डाँट सुननी पड़ी व उसने जीर्णधन की तराज़ू लौटा दी एवं इस प्रकार जीर्णधन से भी उसे उसका पुत्र सौंप दिया।
सीख : कुछ निष्प्रयोजन/अकारण नहीं होता, चतुर को चातुर्य से हराया जा सकता है, न तो लोभ, न ही विश्वासघात् करना चाहिए, दूर के ढोल सुहाने, थोड़े के लिये पूरा न खोयें।
5. अहंकार व गधा
उज्जवलक नामक एक बढ़ई ने जीविकोपार्जन के लिये एक गर्भवती ऊँटनी को घर लाकर पाला। वन से कुछ कोमल व हरे पत्ते लाकर ऊँटनी व उसके शिशु का लालन-पालन किया। ऊँटनी का दूध बेचकर कारोबार चलता रहा। बढ़ई इतना संतुष्ट हुआ कि अब वह ऊँटों के झुण्ड का मालिक बन बैठा।
ऊँट के बच्चे के गले में उसने एक घण्टा बाँध दिया ताकि उसकी स्थिति अलग ही समझ आ जाये। एक बार जब समूह चरने निकला तो लाढ़-प्यार से पाला ऊँटनी का वह पशु मोटा होने से पीछे रह गया एवं एक वन्य पशु द्वारा आहार बना लिया गया।
सीख : अहंकार अथवा प्रदर्शन/दिखावे/अलग दिखने की चाह से दूर रहने में ही भलाई होती है, मोह किसी से नहीं होना चाहिए।
6. बगुले के ऊपर केकड़ा
एक सरोवर के जलचर समृद्ध जीवन जी रहे थे। एक बार एक वृद्ध बगुला वैरागी होने का स्वाँग रचते हुए केकड़े से बोला- ” मैं भूखा रहकर प्राणत्याग करने जा रहा हूँ, मैं तट पर आ रही मछलियों को भी नहीं देखता “।
उसे सच्चा वैरागी समझ केकड़े ने पूछा कि क्या हो गया है ऐसा ? बगुला गम्भीरता का अभिनय करते हुए बोला- ” मैं यहीं पैदा होकर पला हूँ, यही मेरी मातृभूमि, इससे मुझे लगाव हो गया है किन्तु मैं एक ज्योतिषी की भविष्यवाणी से दुःखी हूँ“.
केकड़े द्वारा पूछे जाने पर उसने आगे बोला- ” उस ज्योतिषी ने कहा है कि यहाँ अब बारह वर्षों का सूखा पड़ने वाला है, अवर्षा के कारण प्यासे मरने की स्थिति आ जाने वाली है, मुझे सबकी चिंता हो रही है“।
केकड़े ने सब जीवों को बुलाया व सबने बगुले को महात्मा समझ प्रश्न किया- ” इस समस्या से उबरने का उपाय बता सकते हैं ?” बगुला बोला- ” पास में गहरे जल वाला एक विशाल तालाब है, यदि तुम सब एक-एक करके मेरी पीठ पर आना स्वीकार को तो सबको मैं वहाँ पहुँचा सकता हूँ“।
अब बगुला एक-एक जलीय जीव को उठा-उठाकर मार्ग में शिलाओं पर पटककर अपनी उदरपूर्ति करते रहा। एक बार केकड़े ने कहा कि मुझे भी वहाँ ले चलो, सबका कुशल मंगल देख लूँ।
उड़ते बगुले की पीठ पर सवार केकड़े ने मार्ग में एक स्थान पर अस्थियाँ पड़ीं देखीं तो उसे बगुले पर संदेह हो गया एवं उसने उतारने को कहा तो बगुला बोल पड़ा कि मैंने भोला बनकर तुम सबको अपना आहार बनाने के लिये यह योजना बनायी थी। केकड़े ने उसकी गरदन पर ऐसा काटा कि तत्काल उसकी मृत्यु हो गयी। केकड़े ने सरोवर जाकर सबको पूरी घटना बतायी व भविष्य के प्रति आश्वस्त किया।
सीख : कभी भी किसी अनजान व्यक्ति पर बहुत जल्द विश्वास नहीं करना चाहिए. आपके साथ जो इंसान मीठा व्यवहार कर रहा है उसका अपना स्वार्थ छुपा हो सकता है.
7. रक्षक नेवला :
देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण की पत्नी के घर में एक घौंसला बनाकर रहने वाली एक नेवली ने बच्चे को जन्म दिया किन्तु दुर्भाग्यवश नेवली की मृत्यु हो गयी तथा ब्राह्मणी ने उस नेवली-शिशु का पालन-पोषण किया।
नेवले का पुत्र ब्राह्मणी के पुत्र के साथ काफ़ी घुल-मिल गया था किन्तु ब्राह्मणी सदा आशंकित रहती थी कि कहीं वह नेवला-शिशु उसके पुत्र को कोई हानि न पहुँचा दे। किसी कारण वश एक दिन नेवलीपुत्र को अपना पुत्र सँभालने का दायित्व सौंपकर ब्राह्मणी कहीं चली गयी एवं घर पर नेवलीपुत्र व ब्राह्मणीपुत्र ही थे।
अकस्मात् कहीं से एक सर्प भीतर आ गया एवं सर्प से उस बालक को बचाने के प्रयास में नेवले ने सर्प को मार डाला जिससे उसके मुख पर रक्त की लालिमा आ गयी। ब्राह्मणी लौट आयी है ऐसा जानकर वह नेवला ज्यों ही शुभ समाचार सुनाने द्वार पर आया तो उसके मुख में रक्त लगा देख ब्राह्मणी को लगा कि उसने बालक को काट खाया है। क्रोध से अंधी ब्राह्मणी ने उस नेवले के प्राण हर लिये। बालक को सुरक्षित देखने के पश्चात् उस ब्राह्मणी को बड़ा भारी पश्चाताप हुआ।
सीख : निष्पक्ष जाँच से पहले किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचना चाहिए, बिना विचारे किया गया क्रोध विवेक को हर लेता है, मूर्खतापूर्ण संदेह सम्बन्धों में विष घोल देता है.. पूर्वाग्रही व्यक्ति को पछताने का भी समय नहीं मिल पाता।
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Sanjay vankar says
બહુ સારી સ્ટોરી છે
છોકરા ખુશ થઈ જાય
Dk says
Bahut achhi kahaniyan
Dk says
Nice stories