नशों से होने वाले नुकसान व इनसे कैसे बचें How To Get Rid Of Any Addiction In Hindi
How To Get Rid Of Any Addiction In Hindi
आसक्ति (नशा) क्या है ?
ऐसी कोई भी शारीरिक-मानसिक आदत तो व्यक्ति को कुछ अच्छा करने से रोके अथवा बुरा करने को उकसाये उसे नषा कह सकते हैं. ध्यान रखने योग्य है कि कोई ग़लत बात ग़लत ही होती है, यदि उसे कम मात्रा आवृत्ति में किया जाये तो भी हानि तो होगी ही किन्तु उसकी आसक्ति के मामले में अधिक हानि होगी किन्तु सर्वश्रेष्ठ तो यह है कि ” लिमिट में करो तो नुकसान नहीं ” वाली भ्रांति मन से मिटायें व हर ग़लत पहल से दूर रहें.
How To Get Rid Of Any Addiction In Hindi
अब तक जो किया सो किया अब हर ग़लत विचार से भी दूर रहें क्योंकि Limit हो या लिमिटलेस ग़लत तो ग़लत होता ही है। ”मैं एडिक्ट नहीं हूँ“ सोचने से आपका वह ग़लत कार्य हानिरहित अथवा भला अथवा सही नहीं हो जायेगा।
आधुनिक विज्ञान में लत या नशे को ऐसी जटिल स्थिति के रूप में समझा जाता है जिसमें कोई वस्तु-प्रयोग अथवा व्यवहार क्रिया को उसकी हानियों के बावजूद अथवा प्रतिकूल परिणामों की जानकारी होने पर भी जारी रखा जाता है। आसक्ति रासायनिक हो अथवा व्यवहारगत उसके फलस्वरूप उस हानिप्रद क्रिया, वस्तु का पुनः-पुनः प्रयोग, अपना आपा खोना एवं व्यक्ति के जीवन में बड़ी गिरावट को स्पष्ट लक्षणों के रूप में देखा जाता है।
आमतौर पर आसक्त होने वाले को भान ही नहीं हो पाता कि वह आसक्त हो चुका है क्योंकि अनेक कारणों से वह मानसिक निर्लज्ज तो हो ही जाता है एवं साथ ही में मस्तिष्क उस सम्बन्धित पदार्थ अथवा क्रिया का आदी होने लगता है एवं व्यक्ति को ऐसा भ्रम होने लगता है कि उसके शरीर को उस मादक क्रिया/वस्तु की आवष्यकता है; इस प्रकार वह और ! और !! के पीछे भागता फिरता है।
आसक्ति के प्रकार –
पदार्थ-आसक्ति :
(जैसे कि मद्य, गुटखा, धूम्रपान इत्यादि) एवं व्यवहारगत आसक्ति (जैसे कि मोबाइल अथवा गेम आसक्ति) परन्तु इन दोनों प्रकारों की आसाक्तियाँ कई बार एकसाथ पायी जाती हैं अथवा एक के आने से बची हुई दूसरी आसक्ति भी हो जाती है क्योंकि दोनों प्रकार की आसक्तियों के कारण एक समान रहते हैं एवं मस्तिष्क की क्रियाप्रणाली को अपने वश में करने की क्षमता भी इन दोनों आसक्तियों में एक-सी ही रहती है।
व्यवहारगत व पदार्थ – आसक्तियों में व्यक्ति उन्मादी अथवा मनोविक्षिप्त जैसा होने लगता है और वह उसमें ‘मज़ा या सुख’ जैसा एक आभासी अनुभव करने लगता है जिसे बढ़ाने के लिये वह उस मादक क्रिया/वस्तु का और उपभोग करना चाहता है। व्यक्ति को आसक्ति वाली वस्तु अथवा क्रिया‘सामान्य’ अथवा ‘सही बात’ लगने लगती है।
पदार्थगत आसक्तियाँ :
धूम्र/मद्यपान, गुटखा इत्यादि रूपों में तम्बाकू-प्रयोग, गाँजा, चरस, अफ़ीम इत्यादि (नि: शुल्क अफ़ीम खिलाकर भी अंग्रेज़ों ने भारतीयों को लत लगा दी थी, फिर सशुल्क देने लगे, जब भारतीय निर्धन हो गये तो अंग्रेज़ों की चाकरी करने के बदले अफ़ीम दी जाने लगी, इस प्रकार भी कई भारतीय अंग्रेज़ों के आर्थिक दास बनते गये, चीन के साथ भी इस विषय में ऐसा किया गया था)।
ध्यान रखें कि चाय-काफ़ी कभी-कभी पीने को आसक्ति नहीं कह सकते, न ही ग़लत परन्तु मद्य व तम्बाकू कभी-कभी पीने-खाने को चाहे आसक्ति न कहें किन्तु ये ग़लत तो हैं ही।
व्यवहारगत आसक्तियाँ :
व्यवहारगत आसक्तियों में भी चाय-मद्य का भेद समझना आवश्यक है, जैसे कि प्रायः अधिकांश क्रियाकलापों को अति मात्रा में करना, अनावश्यक रूप से करना हानि की ओर बढ़ने से आसक्ति की श्रेणी में आ सकता है.
जैसे कि बिन बात के अथवा बात-बात पर शापिंग करने अथवा सेलफ़ोन का अनावश्यक प्रयोग लत लगायेगा परन्तु अन्य कई क्रियाएँ कम आवृत्ति/, मात्रा में करने पर भी हानिप्रद होती हैं, जैसे कि पोर्नोग्रॅफ़ी, हस्तमैथुन, जुआँ-सट्टा इत्यादि. हमारे अन्य आलेख ‘ आफ़लाइन सुखी रहने के तरीके, ‘ हस्तमैथुन क्यों न करें ’भी पढ़ें।
आसक्ति के प्रभाव/परिणाम/लक्षण :
1. पारिवारिक कलह में वृद्धि व सामाजिक जीवन में गिरावट
2. समय, श्रम, ऊर्जा, ध्यान व धन को व्यर्थ बिताने/खपाने की प्रवृत्ति
3. ऐसा लगना कि अब लत से छुटकारा नहीं पाया जा सकता
4. लतकारी वस्तु अथवा क्रिया की ओर व्यर्थ का खिंचाव व तृष्णा तथा व्यक्ति उस ओर बढ़ने के तर्क खोजने चल पड़ता है ताकि स्वयं को व अपने अपनों को छल सके, जैसे कि वह कह सकता हैः- ”कुछ देवी-देवताओं को भाँग-मदिरा चढ़ायी जाती है“ जबकि इस वास्तविकता को स्वीकार नहीं करता कि महादेव शंकर ने तो विषपान किया था, देवीदेवताओं को व्यसनी बोलने वाले व्यक्ति सायनाइड खायेंगे अथवा विषपान करेंगे ?
5. आर्थिक घाटे
6. स्वास्थ्यसम्बन्धी हानियाँ
7. सीखने की क्षमता कुन्द पड़ना, निर्णयन प्रभावित होना, स्मृति-लोप
8. सम्बन्धित अंगों को क्षति (विशेषतया वस्तु-आसक्ति के सन्दर्भ में)
9. संचरणीय संसर्गज रोगों का जोख़िम बढ़ना (जैसे कि मद्यपान करके शारीरिक सम्बन्ध बनाने वाला सोच बैठता है कि निरोध से संक्रमण नहीं होगा एवं इस वास्तविकता को समझना ही नहीं चाहता कि निरोध का लचीलापन उसकी बनावट में अति सूक्ष्म छिद्रों के कारण होता है जिसमें से कई सूक्ष्मजीव व अन्य हानिप्रद कण आ-जा सकते हैं, निरोध कभी सुरक्षा का आश्वासन नहीं हो सकता)।
10. वाहनादि दुर्घटनाएँ
11. कुण्ठा, आत्महत्या अथवा अन्य आत्मघाती इच्छाएँ
12. कामग़ार जीवन को घाटा, जैसे कि उत्पादकता का घटना, कार्यस्थली में अनुपस्थिति बढ़ना एवं रोज़गार छिनना
13. वैधानिक मुद्दे पनपना
14. मस्तिष्क, मानसिकता व मनोस्थितियों में असामान्य बदलाव
15. ” आ बैल! मुझे मार“ जैसे साक्ष्यों के बावजूद जानबूझकर विपत्तिकर परिस्थितियों को निमंत्रित करना
16. मादक द्रव्य क्रिया के प्रति सहिष्णुता , सहनशीलता विकसित हो जाना जिससे व्यक्ति उसकी मात्रा/आवृत्ति को बढ़ाता है ताकि मादकता के बढ़े स्तर का अनुभव कर सके.
17. मात्रा को बनाये रखने अथवा बढ़ाते जाने से उपरोक्त पर निर्भर होते चले जाना आसक्तियों का उपचार – निम्नांकित शपथग्रहण प्रारूप का नियम पूर्वक दृढ़ता से पालन करते हुए हर प्रकार की आसक्ति व बुरी आदत इत्यादि से तुरंत व स्थायी रूप से उबरा जा सकता है।
ऐसा न सोचें – ” व्यसन धीरे-धीरे छोड़ूँगा, छूटेगा“, वास्तव में शुभस्य शीघ्रम्ः तुरंत छोड़ें। केवल जानकारी नहीं, व्यसनों की निरर्थकता का गहरा भीतरी बोध हो जाये तो उबरने की दिषा में मानसिक बल मिलेगा तथा नीचे प्रदर्शित शपथ-प्रारूप को दोहराते रहने से व्यक्ति स्वयं पर मानसिक दबाव डाल पायेगा कि अब हर व्यसन से दूर ही रहना होगा.
निव्रयसन शपथग्रहण प्रारूप (इसे ज्यों का त्यों मुद्रित व स्वहस्तलिखित में भी दोहराकर अधोहस्ताक्षरित करके अपने पास Hard अथवा एवं Softcopy के रूप में रख लैवें एवं अपने घनिष्टों को सौंप दैवें)
” मैं ईश्वर, धर्मग्रंथों, अपने माता-पिता सहित समस्त प्रियजनों इत्यादि की शपथ ग्रहण करता हूँ कि अबसे हर प्रकार के व्यसन, आसक्ति व उसकी पहल से भी सर्वथा दूर रहूँगा/रहूँगी ” आपके हस्ताक्षर (एवं हो सके तो आपके छायाचित्र प्रमाण-पत्र सहित स्थायी निवास प्रमाण की छायाप्रतियाँ भी संलग्न करें)।
उपरोक्त शपथ तो निरासक्त व अनासक्त व्यक्तियों को भी दोहरानी चाहिए, गम्भीर रूप से आसक्तों (लतियों) के लिये उपरोक्त शपथ के साथ-साथ यह भी अनिवार्य हो जाता है कि उकसाने वाले कारकों को अत्यन्त दृढ़ता से दूर कर दिया जाये, जैसे कि स्मार्टफ़ोन को; और अधिक गम्भीर प्रकरण में ऐसा कोई व्यक्ति भी आसपास सदैव होना आवष्यक है जो उस पर नज़र रखे कि वह आसक्ति की जड़ उस वस्तु व क्रिया से सर्वथा दूर रहे।
कुसंग से तो हर व्यक्ति को सर्वथा दूर ही रहना चाहिए। शपथ की अपरिहार्यता ध्यान रहे क्योंकि हर प्रकार का अनुचित विचार मन से स्वेच्छा से ही आरम्भ किया जाता है जिसके निराकरण के लिये मन से उसे निर्मूल करना नितान्त जरुरी है। पदार्थगत आसक्तियों से हुई शारीरिक हानियों से उबरने के लिये अथवा पदार्थगत व व्यवहारगत आसक्तियों की गम्भीरता के अनुसार मनोचिकित्सकों व मनोविशेषज्ञों की आवश्यकता हो सकती है.
अतः मनोचिकित्सालय को अजीब तरीके से ‘पागलख़ाना ’ कहकर उपहास न करें। वैसे भी मानसिक रोगों व आसक्ति-निवारण के विशेषज्ञ तो प्रयासरत रहते हैं कि व्यक्ति शीघ्रातिषीघ्र मानसिक व शारीरिक रूप से सामान्य जीवन जीने लायक हो जाये।
उपचार की रीतियाँ :
1. उपरोक्त शपथ-ग्रहण प्रारूप (सर्वप्रथम व अनिवार्य एवं सब प्रकरणों पर प्रभावी)
2. कुसंगति, कुप्रेरकों, सम्बन्धित क्रिया पदार्थ से दृढ़ दूरी तथा आसक्ति के दुष्प्रभावों से अवगत कराने हेतु प्रामाणिक पुस्तकों, टेलिविज़न डाक्यूमेण्टरीज़ इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है.
3. ‘ ख़ाली दिमाग शैतान का घर ’ बनने से रोकने के लिये शरीर व मन को किसी परिश्रमपूर्ण (विशेषतः शारीरिक) गतिविधि में लगायें, जैसे कि ख़ाली न बैठें, तथाकथित टाइमपास व फ़ुर्सत जैसे विचार न लायें, रस्सी कूदें, दौड़ लगायें, साइकिल चलायें, योग-ध्यान करें, सात्त्विक गतिविधियाँ करें तो सर्वोत्तम, सत्साहित्य पठन करें, भगवन्नाम, मंत्रलेखन करें, अकेले बैठकर व्यसन अथवा अन्य अनैतिक गतिविधि के बारे में न सोचें, बागवानी करें.
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Jay Mishra says
बहुत ही अलग परंतु बहुत ही जरूरी टॉपिक पर लिखा गया एक महत्वपूर्ण पोस्ट । जिसमें सभी बिंदुओं को ध्यान में रखकर लिखा गया है निश्चित रूप से यह लेख इस समस्या से जूझ रहे पाठकों के लिए काफी लाभदायक हो सकता है
PARMOD KUMAR says
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logical fact says
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sanjay Rohit says
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