गलत रास्ते में जाने से खुद को कैसे रोके 10 तरीके How To Stop Youreself Going Wrong Way In Hindi
पाँव बहकने से कैसे रोकें ? How To Stop Youreself Going Wrong Way In Hindi
पाँव बहकना अथवा पथभ्रष्ट होना अथवा सन्मार्ग से डिगना कोई किशोरावस्था में ही पायी जाने वाली Problem नहीं है बल्कि यह Life के किसी भी पड़ाव में किसी के भी जीवन में हो सकती है, यहाँ हम आपको बताएँगे कि पाँव बहकने की स्थिति से कैसे बचें. यदि ग़ैर-इरादतन रूप से या फिर किसी विवशता में उन परिस्थितियों में पड़ ही चुके हों तो अपने पाँव कैसे रोकें और सही दिशा में वापस कैसे लौटें.
How To Stop Youreself Going Wrong Way In Hindi
1. इरादतन आमंत्रण को नकारें :
कुछ घनिष्ट मित्र अथवा रिश्तेदार व्यक्ति का चरित्र ख़राब करवाने में बड़ी भूमिकाएँ निभाते पाये गये हैं। आम तौर पर कोई भी अपनी माँ के पेट से पापी बनकर नहीं पैदा होता। अधिकांश मामलों में व्यक्ति के जान-पहचान के लोग ही उसके मन को बहलाते-फुसलाते हैं एवं उसके साफ़ मन को पहली बार दागदार बना देते हैं।
जैसे कि जन्मदिवस, नव वर्ष, शादी-ब्याह इत्यादि के नाम पर घोषित अथवा अघोषित रूप से शराब अथवा माँस के समावेश वाली पार्टी अथवा ऐसे लोगों का जमघट जहाँ बुराई का बोलबाला हो, ऐसी जगहों पर जाकर कोई बिरला व्यक्ति ही बिना कालिख़ लगे निकल पाता है।
ऐसे आमंत्रणों को तुरंत नकार दें। सोचें कि वहाँ जाने में आपका या किसी और का क्या भला होने वाला है ? क्या किसी के जीवन में कुछ सकारात्मकता आने वाली है ? यदि नहीं तो फिर क्यों जाने की पड़ी है ?
2. ग़ैर-इरादतन आमंत्रण को नकारें :
कुमार्ग साधारणतया भूत-प्रेत जैसा होता है जो मन में कुतूहल और जिज्ञासा जगाकर व्यक्ति को अपनी ओर खींचता है, उसे मायाजाल में उलझाता है एवं फिर बुरी तरह पकड़ लेता है। ‘ एक बार टेस्ट करने की चाहत ’ ने कइयों का चारित्रिक पतन किया है। व्यसन हो या ‘ जीवन में नये की चाह ’ ये सब के सब व्यक्ति के मन को भटकाने वाले, अधर्म की ओर Triger करने वाले कारक होते हैं।
इस सम्बन्ध में ‘ कुसंगत से कैसे बचें ’ वाला आर्टिकल अवश्य पढ़ें। जब भी ऐसी कोई चाहत जगे तो स्वयं से प्रश्न करें-” मैं यह क्यों करूँ ? “क्या यह सही या नैतिक होगा ? ”इसका क्या कोई औचित्य होगा ?
3. नकारात्मक परिस्थितियों से दूरी बरते :
परिस्थितियाँ निर्जीव अवश्य होती हैं परन्तु वे स्वयं में मन का ‘ उकसावा ’ होती हैं। व्यक्ति का अवचेतन बड़ा संवेदनशील व ग्राही होता है, आसपास की निर्जीव-सजीव, प्रसुप्त-जागृत, सक्रिय-निष्क्रिय, दृष्य-अदृष्य वस्तु से इस प्रकार प्रतिक्रिया कर रहा होता एवं स्मृतियाँ बना रहा होता है कि हमें स्वयं भान नहीं हो पाता।
धैर्य व संयम के भरोसे होना स्वयं को जोख़िम में डालना ही तो है, बेहतर तो यही होगा कि नकारात्मक परिस्थितियों, व्यक्तियों, क्रियाओं, वस्तुओं, घटनाओं एवं यहाँ तक कि विचारों से भी यथासम्भव अधिकाधिक दूर रहें।
4. विकल्पों की भरमार में न तैरें :
विकल्प जितने अधिक होते हैं व्यक्ति का मन भटकने के अवसर उतने अधिक होते हैं। पहले केवल सफेद रंग के कपड़े मिलते थे तो रंगों में मन नहीं भटकता था. पहले साइकिल होती थी तो ईंधन चलित वाहनों की ओर मन नहीं दौड़ता था. पहले केवल मूलभूत जरुरतो की बात होती थी तो लग्ज़री, Latest Trend इत्यादि के अंधड़ में मन नहीं डोलता था।
5. लोगो की देखा देखी निर्णय न करें :
लोग क्या करते हैं.. सोचने के बजाय अपना विचार करें। सबसे पहले यह सोचें कि क्या यह उचित है, फिर यह सोचें कि जिस चीज आदि की बात की जा रही है क्या उसकी मुझे वास्तव में कोई जरुरत है भी अथवा बहती गंगा में हाथ धोने को बढ़ रहे हैं अथवा ‘ दूसरों की देखादेखी ’ ऐसा कर रहे हैं।
6. ख़ास दिखने की चाहत :
अन्तर व भेद मिटाकर एक होने की बात के बजाय ‘सबसे अलग दिखने’ अथवा ‘ ख़ास लगने ’ की चाहत व्यक्ति के मन को डोलायमान कर सकती है। ‘हटके लगने’ की आस से होना क्या है ? क्या औचित्य है ? कुछ नहीं ! कुछ भी नहीं।
7. ग़लत वचन व सोच पर अंकुश :
हर ग़लत कदम की शुरुआत उस बारे में बात अथवा वास्तव में विचार से ही होती है। ऐसे हर वचन-विचार को कुचलकर जड़ से मिटा दिया जाये तो बेहतर होगा, न तो ऐसी बात, ऐसे विचार स्वयं करें, न ही किसी दूसरे को ऐसा करने दें, अन्यथा ध्यान रखें कि बुराई बड़ी संक्रामक होती है.
सोच-सोचकर अथवा बातों ही बातों में आशंकाएँ लगी ही रहेंगी कि व्यक्ति उस ग़लत के समर्थन में दिमाग चलायेगा अथवा सन्मार्ग में कमियाँ अथवा दोष निकालने की जी तोड़ कोशिश करने लगेगा.
इस प्रकार ग़लत बात उसे ‘सामान्य’ लगने लगेगी। हर दुर्विचार अपने साथ एक मानसिक कर्म लाता है, विषैली बेल का बीज बोता है। मस्तिष्क के उस एक भाग को प्रदूषित कर देता है फिर जहाँ से कुछ अच्छा उपजने की आस घटती चली जाती है।
8. सब करते हैं, इसमें ग़लत क्या वाली बात भूलें :
कौन नहीं करता ” वाली बातें सोचकर व्यक्ति स्वयं को जान-बूझकर ही अनर्थ में ढकेल रहा होता है। सबके अथवा बहुसंख्य के करने से कोई कार्य तर्कसंगत नहीं हो जाता, न ही पाप से पुण्य में परिवर्तित हो जाता है।
9. ” मैं न्यूट्रल रहूँगा ” वाली धारणा छोड़ें :
अधर्म का प्रतिकार न करते हुए आप स्वयं उस अधर्म में भागीदारी कर रहे होंगे, इस प्रकार ‘ नकारात्मक ’ होंगे, अतः आप जिसे Neutrality कहते हो वह भी नकारात्मकता का ही एक रूप है।
10. ” मैं भटक नहीं सकता” अकड़ से बचें :
पहली बात तो यह बहुत कम लोग सोचते हैं, दूसरी बात यह कि यह Confidence हो तो अच्छा है किन्तु ऐसा सोचने वाले अधिकांश लोगों में यह अकड़ होती है। इस कारण वे जबरन स्वयं को परखने निकल पड़ते हैं- ”देखा ! मैं कुसंग या ग़लत स्थान पर 4 घण्टे रहा फिर भी मैं नहीं बहका“, मेरा मेरे पे Control है, मुझे सावधानी की ज़रूरत नहीं।
अहंकार तो स्वयं ही लोगों को भटकाने में अकेला ही काफ़ी होता है, यहाँ तक कि यदि कोई सोचे ” मुझे अहंकार नहीं हो सकता “ तो यह भी क्या उसका एक अहंकार नहीं हुआ ?
इस लेख में आपको How To Stop Youreself Going Wrong Way In Hindi – Galat Raaste Par Jane Se Khud Ko Kaise Roke और गलत रास्ते में जाने से खुद को कैसे रोके 10 तरीके के बारे में विस्तार से बताया गया है। यदि आपको यह लेख पसंद आया है तो कमेंट करें। अपने दोस्तों और साथियों में भी शेयर करें।
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