एकान्त का महत्त्व और इसके फायदे Importance Of Solitude Loneliness In Hindi
वैसे एकान्त एवं अकेलेपन को कई जगह एक-दूसरे के पर्याय जैसे प्रयोग किया जाता है; ध्यान रहे कि इनमें से किस शब्द का प्रयोग किसके द्वारा किस सन्दर्भ व अर्थ में किया जा रहा है उसे समझना आवश्यक है। यहाँ एकान्त का मतलब ‘ अकेला पड़ जाना ’ या बिन सार्थकता से अकेले जीना मत समझ लेना. अकेलेपन की अपेक्षा एकान्त काफ़ी अच्छा होता है। सुसंगति, सत्संग, सार्थक संगति ही एकान्त से बढ़कर होती है।
Importance Of Solitude Loneliness In Hindi
सबसे पहले एकान्त और अकेलेपन में अन्तर समझते हैं :
1. Time pass, बोरिंग, फ़ुर्सत, अशान्ति जैसे शब्द आयेंगे और शान्ति, सुकून जैसे शब्द.
2. परेच्छा, दुत्कारे, भगाये जाने, छोड़ दिये जाने, कर्तव्य से पलायन, कामचोरी, कायरता का समावेश सम्भव स्वेच्छा, वीरता, निर्मोह होने की सम्भावना.
3. टी.वी, गेम, स्पोर्ट, अखबार, मैग्ज़ीन पढ़ने, सोने, मनोरंजन, फ़न जैसी निरर्थक चाहत होना तथा समय का नाश अथवा दुरुपयोग कुछ सार्थक करने की अभिलाषा, जैसे कि आत्म परिष्कार, मंत्रलेखन, धार्मिक, आध्यात्मिक साहित्य-पठन, पौधारोपण इत्यादि कोई सकारात्मक चाह होना तथा ध्यान-साधना व अन्य सार्थकता में समय का सदुपयोग
4. अतीत की स्मृतियों व भविष्य की अनिश्चितता के ख़्याल, इसलिये तन से अकेला होकर भी मन में इधर-उधर की बातें भरी मन को ईश्वर से मिलन की ओर लगाया जाता है, मन में कुछ व्यर्थ नहीं ढो या सजा रहे होते.
5. उदासी, मानसिक विवशता, खेद, थकान अनुभूति ऊर्जा, उत्साह जैसी अनुभूतियाँ.
6. खाली दिमाग शैतान का घर सम्भव तप, ध्यान, योग सम्भव.
7. व्यक्ति इस स्थिति (अकेलेपन) से दूर होना चाहता है. व्यक्ति इस स्थिति (एकान्त) की ओर बढ़ना चाहेगा.
8. अकेलेपन के उत्पाद : असंतोष, चिढ़चिढ़ाहट, जीवन-समस्याओं का बढ़ना, अवसाद, व्यसन, आत्मघाती कदम, हताषा एकान्त के उत्पादः संतोष, समाधान, मानसिक व आत्मीय सुधार
9. कुसंग व अकेलापन दोनों एक कोटि के होते हैं, कौन कब अधिक हानिप्रद यह तो उदाहरण पर निर्भर सत्संग व एकान्त एक कोटि के होते हैं, सत्संग अधिक अच्छा होता है.
एकान्त का महत्त्व इतना अधिक है कि संन्यासी या वैरागी ही सबसे सुखी होता है क्योंकि वह परायों व अपनों की भीड़ से दूर रहता है, मोह-माया से परे होता है। सीमित आवश्यकताएँ, सादा जीवन, किसी से होड़ नहीं इत्यादि। घर से भागने को प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है।
एकान्त के महत्त्व को दर्शाते कुछ प्रमाण नीचे दिए गये है :
1. व्यर्थ के गतिरोध से दूरी :
दृष्टिकोणों अथवा रुख़ों में भिन्नता के कारण कई बार ऐसा देखने में आता है कि सकारात्मकता दब जाती है अथवा रचनात्मकता का परिष्कार सम्भव नहीं हो पाता तथा परस्पर प्रतिकार एवं घोषित या अघोषित द्वंद्व में मानसिक ऊर्जा खपती है जबकि एकान्त में यह ऊर्जा संरक्षित रहती है।
2. ध्यान भटकाने वाले कारकों से दूरी :
मोबाइल व संगी-साथियों से दूरी होना अपने आप में एक अच्छे अवसर का सृजन हो सकता है।
3. उपासना-साधना में सरलता :
एकान्त में साधना-उपासना की ओर चित्त को प्रवृत्त करना अपेक्षाकृत कम कठिन रह जाता है क्योंकि कोई सामान्य संवाद करने वाला पास नहीं होता, कोई विरोध करने अथवा टोकने वाला नहीं होता; थोड़ी-थोड़ी देर में कोई ध्यान खींचने वाला नहीं होता। इसके अतिरिक्त परिचितों की अनुपस्थिति से इस बात की सम्भावना भी बढ़ जाती है कि उससे चर्चा के दौरान आने वाले नश्वर विषयों में हमारा जो ध्यान उलझता रहता है वह अब बच जायेगा।
4. शक्ति-एकत्रीकरण :
मानसिक दृढ़ता की दृष्टि से भी एकान्त बड़ा अनमोल है। धर्म व सत्य के मार्ग में प्रायः सर्वप्रथम अपने ही अवरोध बनते हैं। अच्छे लक्ष्यों की ओर बढ़ने से रोकते हैं। सार्थक दिशा में चलने से पाँव पीछे खींचने को विवश करते हैं तथा पवित्र परम उद्देश्य से दूर रखने के यथासम्भव प्रयास करते हैं एवं अपने-अपने तर्कों से हमारा मन उनके पक्ष में ले लेने को आतुर रहते हैं। इस प्रकार शक्ति को बँटने से रोकने एवं इसे लगातार बढ़ाने में एकान्त सहायक है।
5. तत् प्रवाहशीलता :
शाष्वत् लक्ष्य निर्धारित करने, सत्पथ पर अग्रसर होने में सहायता हो जाती है यदि एकान्तता हो तो। इस प्रकार कोई ऐसा बाहरी कारक Active नहीं रह जाता जो हमें रोक या दबा सके। परिस्थिति-जनित थपेड़ों से भी काफ़ी सीमा तक बचाव हो जाता है।
6. आध्यात्मिक सम्पन्नता :
आपने देखा-पढ़ा ही होगा कि जितने भी सच्चे साधु-सन्त रहे हैं वे नितान्त एकान्त प्रेमी रहे हैं, प्रसिद्धि व नगरों से दूर रहा करते थे; यहाँ तक कि कई बार तो अपने निजी अथवा अन्य जटिल कार्यों के लिये अपने शिष्यों तक की सेवाएँ प्राप्त करने से मना कर दिया करते थे।
उनका आभामण्डल विशाल होता था। आभा मण्डल की यह विशालता भी एकान्त के समानुपात में हुआ करती थी। भीड़ में रहने वाले व्यक्ति की मानसिक व आध्यात्मिक ऊर्जाएँ क्षीण होती रहती है।
सावधानियाँ :
1. यदि दूध के धुले न हों अथवा मन वश में न हो एवं धर्म के प्रति कृत संकल्प न हों तो अकेले रहने अथवा अकेले होने की न सोचें, यह हर किसी के बस की बात नहीं बल्कि अकेलापन पाकर व्यक्ति अपनी अतृप्त अनुचित इच्छाओं की पूर्ति की ओर दौड़ सकता है, इस प्रकार उत्थान के बजाय पतन की सम्भावना बलवती हो सकती है।
2. मनुष्य को सामाजिक प्राणी माना जाता है इसलिये दीर्घकाल के लिये अपनी सारी स्थितियों को अपने बूते ढंग से सँभालना कठिन लग सकता है। इसलिये कहीं ऐसा न हो कि एकान्त की खोज में इतने सारे कार्य आपको स्वयं करने पड़ रहे हैं कि उनके चक्कर में आप असल में एकान्त हो ही नहीं पा रहे।
3. एकान्त अच्छाई के लिये हो तो ही बेहतर, अन्यथा स्वयं का नाश करेगा। खाली बैठना भी ग़लत है, ग़लत सोचना तो ग़लत होता ही है।
4. मोहियों के लिये कठिन :
जिन्हें अकेले होते ही अपनों का मोह सताने लगे अथवा अपनों का इनके प्रति मोह बाधा बनने लगे तो एकान्त के मार्ग में बड़ा विघ्न उपस्थित हो सकता है, इस प्रकार कुछ मिनट्स, घण्टों, कई दिनों, आजीवन कितनी अवधि का एकान्त हो यह ध्यानपूर्वक एवं अपनों से विचार – विमर्श कर ही निर्णय करें।
5. सत्संग एकान्त से भी श्रेष्ठ :
एकान्त तभी फलदायी होगा यदि व्यक्ति का आत्मज्ञान पर्याप्त हो। प्रायः सभी को सच्चे मार्गदर्शक, सच्चे सहायक की आवश्यकता आजीवन व सदैव बनी रहती है। सत्संग का मतलब पण्डाल लगाकर अन्धविश्वास फैलाने वाले लोगों के पास जाना न समझें। श्रीमद्भगवत्गीता, रामायण का पाठ, देवी-देवताओं की स्तुतियों को पढ़ना-सुनाना भी सत्संग है, सत्संग अर्थात् अच्छे की संगति।
निवेदन- आपको Importance Of Solitude Loneliness In Hindi – एकान्त का महत्त्व इसके फायदे / Solitude Loneliness Importance Hindi Article पढ़कर कैसा लगा. आप हमें Comments के माध्यम से अपने विचारो को अवश्य बताये. हमें बहुत ख़ुशी होगी.
@ हमारे Facebook Page को जरूर LIKE करे. आप हमसे Youtube पर भी जुड़ सकते है.
बहुत ही शानदार और उपयोगी लेख लिखा है आपने।