लोगो के चरित्र को कैसे पहचाने ? 11 तरीके How To Test People Character In Hindi
धन-सम्पत्ति, पद-प्रतिष्ठा, छवि-स्थिति इत्यादि के सबसे ऊपर चरित्र महत्त्वपूर्ण होता है। व्यक्ति प्रायः अपनी अनैतिक बातों को छुपाये घूमता है एवं ‘दूसरों को अच्छी लगने वाली’ बातों को ही उजागर होने देता है जिससे उसका चरित्र पता चल पाना टेढ़ी खीर होता है तभी घीं सीधी उंगली से नहीं निकलता तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है। सर्वप्रथम हम स्वयं दूध के धुले बनें, सबके सामने सब स्वीकार करें एवं तत्काल स्थायी सुधार की ओर दृढ़संकल्पित हो जायें।
जीवनसाथी चुनना हो, सन्तान का ध्यान रखना हो, दूसरे शहर में अपने परिजन का असल हाल-चाल जानना हो, नियोक्ता द्वारा कर्मचारी नियुक्त करना हो इत्यादि अवसरों में तो चरित्र परखने की आवश्यकता बहुत ही बढ़ जाती है। अपने प्रियजन की भलमनसाहत, चरित्र, अतीत इत्यादि जानने की इच्छा में कोई बुराई नहीं, उसे सवाल-जवाब में बुरा भी नहीं मानना चाहिए बल्कि यह तो अपनत्व की बात है। आइए चरित्र जानने के कुछ उपायों की चर्चा करते हैं.
How To Test People Character In Hindi
1. खून की जाँच करके :
आप सोच रहे होंगे कि रक्त-परीक्षण से चरित्र का क्या सम्बन्ध ! वास्तव में रक्त शारीरिक रोग ही नहीं बल्कि मानसिक अतीत भी थोड़ी-बहुत सीमा तक उजागर कर सकता है. रक्त-जाँच से पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति का अतीत अथवा वर्तमान तम्बाकू, गुटका, धूम्रपान इत्यादि की चपेट में रहा है कि नहीं, यहाँ तक कि बरसों पहले एवं बहुत कम मात्रा में धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के रक्त में भी ऐसे रसायन घूम रहे होते हैं जिनसे धूम्रपान की पुष्टि हो जाती है। स्वेच्छानुसार मेडिगोलीगल व फ़ोरेन्सिक जाँचें करवायी जा सकती हैं।
2. विशेष प्रकार की शपथ :
स्थायी पता प्रमाण सहित छायाचित्र प्रमाण-पत्र पर पूर्ण नाम व अधोहस्ताक्षरित रूप में इस विषेष प्रारूप युक्त शपथ से लगभग सबको व सर्वाधिक प्रामाणिकता से परखा जा सकता हैः ” मैं ईश्वर, धर्मग्रंथों एवं प्रियजनों की शपथ ग्रहण करता हूँ कि मेरे द्वारा दर्शायी गयीं समस्त जानकारियाँ वास्तविक हैं, मैंने कुछ भी बढ़ाया-घटाया-छुपाया नहीं है, न ही भविष्य में ऐसा कुछ किया जायेगा “।
विवाहपूर्व वधूपक्ष द्वारा की जाने वाली पूछताछ को लिखित रूप से करें एवं बाद में इस प्रारूप में शपथ दिलवायें तो सम्भावना है कि व्यक्ति की प्रतिक्रियाएँ शपथ के उपरान्त बदल जायेंगी।
3. अकेले में सवाल :
सबके सामने व्यक्ति अपनी निजी सूचनाओं को उजागर करने में असहज रहता है इसलिये यदि व्यक्तिगत बातें निजी तौर पर पूछी जायें तो व्यक्ति द्वारा अपने सच ज्यों के त्यों बताये जाने की सम्भावना काफ़ी बढ़ जाती है।
4. पहले स्वयं बतायें :
अपने बारे में बताना शुरु करते हुए सामने वाले से सवाल-जवाब शुरु करें ताकि उसके संकोचों को न्यूनतम किया जा सके, अन्यथा सम्भव है कि वह येही सोचता रहेगा- ” मैं क्यों बताऊँ “, ” इसे क्यों बताऊँ “, ” इसने ग़लत मतलब निकाल लिया तो “।
5. निडर करें :
व्यक्ति यदि आपकी प्रतिक्रिया उग्र व अजीब न होने के प्रति निश्चित हो तो वह उसके अपने मन के भेद खुलकर आपके सम्मुख व्यक्त कर पायेगा। परिणाम के प्रति वह आष्वस्त होगा तो मन की बातों को बिना Editing कह सकेगा।
6. संवादहीनता का नाश करें :
हर हाल में लगातार संवाद बनाये रखें, संवाद-हीनता तो कई ग़लतफ़हमियों व नासमझियों सहित गड़बड़ियों, शंकाओं व द्वंद्वों की जड़ है। संवादहीनता, बात से बचने, छुपाव-दुराव से दूरी भी बढ़ सकती है। कोई भी दूरीवर्द्धक विचार व व्यवहार न करें; एक-दूसरे से द्वैत् व द्वेष भाव बरतोगे तो परमात्मा से अद्वैत्, अभिन्न रूप में एकाकार कैसे हो पाओगे। दूरियाँ घटायें, खाइयाँ पाटें।
7. नीचा न दिखाए :
व्यक्ति को नीचा दिखाना, उसकी गोपनीय बातों को स्वयं जानकर औरों के सामने उगलना, उसे इमोशनल ब्लैकमेलिंग, भावनात्मक खिलवाड़, अपना तथाकथित टाइमपास या फ़न आपका Purpose नहीं होना चाहिए। आपका उद्देश्य अच्छाइयाँ जानकर उन्हें अधिकतम करना व बुराइयाँ जानकर उन्हें न्यूनतम करते हुए शून्य करने की ओर सुधार में सहायता करना होना चाहिए।
अपने आप को सही साबित करने या अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने एवं दूसरे को ग़लत साबित करना आपका उद्देष्य नहीं है इसे यहाँ निर्दिष्ट प्रारूप में शपथपूर्वक दर्शाए।
8. सबके मन की गाँठें खोलें :
शुरुआत स्वयं से करें, कोई मनमुटाव, व्यक्ति व विषय के सन्दर्भ पूर्वाग्रह न रखें, मन में अनावश्यक बातें पकड़कर न बैठें. ”रात गयी बात गयी“ सोचने वालों से विशेष सतर्क रहें तथा ”बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेहु“ ठीक तो है परन्तु अतीत की महत्त्वहीन लगने वाली बातें भी भविष्य के लिये महत्त्वपूर्ण हो सकती हैं।
भविष्य और कुछ नहीं बल्कि अतीत व वर्तमान का योगफल होता है। ग़लत बातों को याद नहीं रखना है, उनका विष्लेषण करते हुए सीख ग्रहण करते हुए आगे बढ़ना है किन्तु उसे दूसरों से छुपाना नहीं है, न ही उस अतीत से स्वयं भागना है।
9. व्यक्ति के ओनलाइन मैसेन्जर्स इत्यादि की छापामार तलाशी :
व्यक्ति के समस्त इलेक्ट्रानिक गज़ॅट्स एवं समस्त Identities व Profiles को तलाशे एवं बरसों की ओनलाइन सर्चिंग व संवाद History भी पता करें, तभी बहुत कुछ सा पता लग सकता है जो हो सकता है कि वह व्यक्ति स्वयं भी भूल चुका हो, ‘व्यक्ति की परख अकेले कमरे में उसके कृत्य’ एवं ‘ओफ़लाइन जीवनः सुखी जीवन’ वाला आर्टिकल जरुर पढ़ें।
10. व्यक्ति के परिवेश का अवलोकन :
उसके पास कौन-कौन-सी वस्तुएँ व सेवाएँ हैं तथा उनसे उसकी अन्तक्र्रियाएँ इन सबको देखना भी आवश्यक है ताकि उसके मन को समझा जा सके। उनका वह कैसे उपयोग करता है उन्हें कैसे संभालता है इसका जरुर पता करे.
11. व्यक्ति की संगति :
हम ऐसा नहीं कह सकते कि उसके परिजन, मोहल्ले वाले, सहपाठी, सहकर्मी, तथाकथित मित्र सच ( प्रतिकूल व अनुकूल चाहे कुछ भी हो ) ही बोलेंगे ऐसा मानकर नहीं चला जा सकता फिर भी व्यक्ति को परखने में संगति बड़ी निर्णायक होती है, उसके परिजनों व तथाकथित घनिष्टों के साथ उसका व्यवहार एवं उन सबका निजी जीवन ( उपरोक्त सभी बिन्दुओं रूपी कसौटियों के आधार पर ) यदि भली-भाँति परख लिया जाये तो व्यक्ति का चरित्र पहचानने में काफ़ी सहायता हो जायेगी।
संगति बड़ी प्रभावी होती है, इसमें भी कुसंगति व बुराई का आगमन व प्रसार बहुत ही तेज होता है। हिरण्यकषिपु नामक पापी का पुत्र होकर भी प्रह्लाद दूध का धुला निकला, इसकी माता प्रभुभक्त कयाधु व गुरु साक्षात् देवर्षि नारद थे। वैसे प्रह्लाद गर्भस्थ रूप में ही ‘ऊँ नमो नारायणाय’ बोलले लगा था। दुष्ट कैकसी व शुद्धमना विश्रवा ऋषि के पुत्र होकर भी कुम्भकर्ण व रावण अधर्मी निकले किन्तु विभीषण पवित्रमना।
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बहुत अच्छा पोस्ट, आपने बहुत ही अच्छे से समझाया है. में अप्पके शुक्र गुजार हूँ. हमे और भी ऐसे ही पोस्ट से अपडेट करते रहिये.
Charitra ko sath rahakar pahachanana sabse achha tarika hai.
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