विश्वास कैसे बनता है विष का वास ? How To Build Trust Person Relationship In Hindi
विश्वास में दुनिया कायम से पता चलता है कि लोग विश्वास शब्द को कितना मानते हैं मानो ‘विश्व’ को इससे ‘आस’ हो। विश्व के अधिकांश व्यक्ति इतने कपटी-छली होते हैं कि उन पर Vishwas करने में ‘विष का वास’ होता है। How To Build Trust Person Relationship In Hindi
आपको भी कभी न कभी ऐसे लोगो जरुर मिले होंगे जो आपके साथ विश्वासघात कर देते है और अपने कुछ निजी स्वार्थ के लिए आपको धोखा दे जाते है. यहाँ हम समझाना चाहेंगे कि विश्वास कब विष का वास बन जाता है.
How To Build Trust Person Relationship In Hindi
1. परिजनों का स्वार्थ :
सन्तान को उत्पन्न करना माता-पिता द्वारा किया गया स्वेच्छ्या निर्णय होता है तथा सन्तान को गर्भ में लाना पूर्णतया उनकी ‘इच्छा’ का उत्पाद है किन्तु उसका समुचित पालन-पोषण माता-पिता का अतिगम्भीर उत्तरदायित्व बन जाता है।
अभिभावक अपने बचपन अथवा युवावस्था की अधूरी इच्छाओं को अपनी सन्तानों में पूर्ण करने के लिये कई बार उनका ‘प्रयोग करते’ पाये जाते हैं, वे अपने उत्तरदायित्व (लालन-पालन) को बच्चों पर किया गया अहसान समझ बैठते हैं एवं उनके भविष्य से Return चाहते हैं।
सन्तानों को अपनी फसल व अपना खेत समझने लगते हैं। इस प्रकार ये अपने विश्वास में लेकर, बच्चों का भरोसा जीतकर उनकी भावनाओं व उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ भी कर सकते हैं। पालक अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहते- ऐसा अधिकांश मामलों में शायद कहा जा सकता हो परन्तु सतर्कता से ही बचाव सम्भव है क्योंकि वे अनजाने में अपनी ही सन्तानों का भी बुरा कर सकते हैं, उनके पूर्वाग्रह बच्चों के लिये अहितकर हो सकते हैं, जीवन-सार्थकता से दूर करने वाले हो सकते हैं।
ऐसे माता-पिता चाहते हैं कि उनकी सन्तानें अपना निर्णय निष्पक्ष होकर न कर पायें, जीवनसाथी भी इनके द्वारा पसन्द किया हो जैसे कि शिक्षा इनके द्वारा चयन की हुई थी, न कि व्यक्ति के स्वयं की। समर्थक अथवा विरोधी हुए बिना निष्पक्ष होकर विचार व निर्णय करें।
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2. मित्र के नकाब में अवसरवादी :
सबसे पहली बात तो यह है कि साथ पढ़ने, साथ उठने-बैठने के आधार पर व्यक्ति संगी-साथी, सहपाठी, सहकर्मी तो हो सकता है परन्तु उसे मित्र मान बैठना मुश्किलों भरा हो सकता है एवं मित्र यदि मान भी चुके हों तो अब सावधान हो जायें। त्रेतायुग में रामराज्य, महाभारत में भीष्म पितामह, विदुरनीति, मौर्यकाल में चाणक्य नीति सबमें यह बात स्पष्ट थी कि प्रायः सांसारिक सम्बन्धों का आधार स्वार्थ प्रेरित होता है तो फिर सीधी-सी बात है कि स्वार्थ साधना बन्द या कम होने पर वह कैसे टिकेगा !
स्वार्थपूर्ति के लिये अथवा स्वार्थपूर्ति के दौरान अथवा साथ रहने के ही आधार पर अथवा बिना औचित्य व सार्थकता के बनाये सम्बन्ध न बनायें, न ही उनमें मन लगायें. मिल-बैठकर मीठी बातें करने, आवश्यकतानुसार एक-दूसरे के काम आने व साथ खाने-पीने से किसी को मित्र का तमगा क्यों लगा दिया जाता है ?
सच्चे हितैषी हर देष-काल-वातावरण में नाममात्र की संख्या में ही होते हैं, यदि ऐसा कोई आपके जीवन में आये तो उसे कसकर पकड़ लें। ‘मित्रों व परिजनों रिश्तेदारों में बर्बाद जीवन’ अवश्य पढ़ें।
3. कर्मचारी की योजना :
जो कर्मचारी धन को महत्त्वपूर्ण समझता हो वह ‘यहाँ से अधिक’वेतन की पिपासा में दूसरी Company या जॉब की खोज में नहीं होगा ? ‘सामाजिक मान का भूखा’ तथाकथित अधिक मान-सम्मान के लिये दूसरी नौकरी नहीं करेगा इसकी क्या गारंटी ? अभी भी असंतुष्ट भटकता व्यक्ति किसी और संगठन का पलड़ा भारी देख भविष्य में दल बदल सकता है।
जैसे कि अध्यापन (टीचिंग) के क्षेत्र में तो बहुत सारे लोग इसे ‘औज़ार/साधन/माध्यम’ समझकर आते हैं कि इस प्रकार किसी अन्य प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में आसानी होगी.
इस प्रकार ये अच्छे अथवा दूरगामी शिक्षक कैसे हो सकते हैं जिनका लक्ष्य स्वयं का सामाजिक-आर्थिक भविष्य है, न कि बच्चों का स्वर्णिम भविष्य, वास्तव में ये तो बच्चों के भविष्य को पैरदान बना स्वयं उसे लाँघ रहे हैं। ये विश्वासपात्र व शिक्षार्थी-भविष्य-शुभचिंतक अध्यापक कैसे सिद्ध हो सकते हैं !
4. अज्ञात अतीत :
अतीत ठीक से सविस्तार (विशेष रूप से व्यक्तिगत, न कि जातपात व खानदान) न पता हो तो अच्छा भविष्य कैसे होगा ? आपके अतीत के बारे में अगर पूरा पता होगा तो आपका भविष्य भी बेहतर बनेगा वरना फ्यूचर में कुछ छुपा हुआ अतीत सामने आ गया तो मुश्किलें बढ़ जायेंगी. ‘विवाहपूर्व काउंस्लिंग द्वारा 20 समस्याओं से बचें’पढ़ें।
5. मौखिक से अधिक लिखित की ओर बढ़ें :
जब व्यक्ति को लगता है कि बात को बढ़ाकर कहने में मेरा फ़ायदा है तो वह अतिशयोक्ति करता है एवं जब उसे लगता है कि पूरी बात बताने में घाटा है तो वह उसे छुपाने और दबाने अथवा घटाकर प्रकट करने का प्रयास करता है, इस प्रकार बिना एडिटिंग किये ज्यों की त्यों हर बात नहीं बताना चाहता।
उदाहरण के लिये व्यक्ति विवाह से पहले वधुपक्ष को अपना वेतन बढ़ाकर दर्शा सकता है, इसलिये कम से कम 6 महीनों का बैंकिंग लेखा-जोखा निकलवायें, वह भी अपने सामने।
शपथ के बिना कोई बात मान लेना भी ‘आ बैल ! मुझे मार’ जैसा होगा क्योंकि इतने सीधे व निर्दोष लोग कम ही मिलेंगे जो बिना लाभ-हानि नापे अपनी हर बात सबसे बिन घटाये-बढ़ाये बोलें। सत्यापन व क्रॉस-चेक जरूरी हो ही जाता है.
शुरु से ही कर कदम फूँक-फूँक कर चलें, अन्यथा बाद में सदमा, विश्वासघात् जीवनभर के लिये बड़ा कष्टदायी हो सकता है। यदि व्यक्ति लगभग ठीकठाक है तो आपके द्वारा की गयी इन जाँचों में उसे आपत्ति क्यों होनी चाहिए !
6. आँकड़ों व तथ्यों पर आश्रित मत होयें :
हो सकता है कि School Colleges में Good Marks, कार्यालय में Work Performance,लोगों व सहकर्मियों का फ़ीडबैक कुछ प्रामाणिक लग रहा हो परन्तु ध्यान रहे कि चाटुकारिता व ”एक हाथ ले दूजे हाथ दे“ वाली मानसिकता से हो सकता है कि उसकी वास्तविकता छुप जाये; वैसे भी साथियों की निष्क्रियता द्वारा भ्रष्टाचार को उजागर अथवा ठीक करने का प्रयास करने वाले व्यक्ति को बदनाम करने की कोशिशे की ही जाती हैं।
शैक्षणिक अंक व अन्य उपलब्ध्यिों से भी व्यक्ति की गुणवत्ता का आकलन नहीं किया जा सकता। कार्यालय इत्यादि में हो सकता है कि किसी भले व्यक्ति को ग़लत साबित करने में लोग सफल भी हो जायें। इसलिये व्यक्ति के आसपास के लोग अथवा ग्राहक भी भरोसेमंद नहीं सिद्ध किये जा सकते।
शिक्षक अच्छा होगा तो वह अनुशासन प्रिय होगा एवं यह बात तो सबको पता होगी कि उसे अधिकांश शिक्षार्थी पसन्द नहीं करते, उन्हें तो ऐसा Teacher भायेगा जो उनकी ग़लतियों को छुपाये, डाँटे तक नहीं, हर बात हल्के में उड़ा दे, सिर चढ़ाकर रखे। प्रायः लोग अपने लाभ-हानि के आधार पर सापेक्ष होकर दृष्टिकोण बना लेते हैं। निरपेक्ष व निष्पक्ष नहीं होते। इस प्रकार ‘बहुमत’को सही होने की कसौटी न मानें।
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