महान शासक महाराणा प्रताप की जीवनी ! Maharana Pratap Biography In Hindi
Maharana Pratap Biography In Hindi
मेवाड़ की सारी सेना छिन्न – भिन्न हो चुकी थी. धन संपत्ति कुछ भी नहीं बचा था | सेना को संगठित करने तथा मुग़ल सैनिको से अपने को बचाते हुए वह राजपुरुष परिवार सहित जंगल में भटक रहा था. पूरे परिवार ने कई दिनों से खाना नहीं खाया था. पास में थोड़ा आटा था.
उनकी पत्नी ने रोटियाँ बनायीं सभी खाने की तैयारी कर रहे थे तभी एक जंगली बिलाव रोटियाँ उठा ले गया. पूरा परिवार भूख से छटपटाता रह गया. भूख से बच्चों की हालत गंभीर हो रही थी. ऐसी दशा देखकर पत्नी ने पुनः घास की रोटियाँ बनायीं जिन्हें खाकर पूरे परिवार ने अपनी भूख शांत की.
महाराणा प्रताप के जीवन पर निबंध – Maharana Pratap Biography In Hindi
त्याग, बलिदान, निरंतर संघर्ष और स्वतन्त्रता के रक्षक के रूप में देशवासी जिस महापुरूष को सदैव याद करते है, उनका नाम है ‘महाराणा प्रताप’.
उन्होंने आदर्शो, जीवन मूल्यों व स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व दाँव पर लगा दिया. इसी कारण महाराणा प्रताप का नाम हमारे देश के इतिहास में महान देशभक्त के रूप में आज भी अमर है.
महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का जन्म राजस्थान के उदयपुर नगर में 9 मई सन 1549 को हुआ था. बचपन से ही उनमे वीरता कूट – कूट कर भरी थी. गौरव, सम्मान, स्वाभिमान व स्वतन्त्रता के संस्कार उन्हें पैतृक रूप में मिले थे.
राणा प्रताप का व्यक्तित्व ऐसे अपराजेय पौरूष तथा अदम्य साहस का प्रतीक बन गया है की उनका नाम आते ही मन में स्वाभिमान, स्वतंत्र्य – प्रेम तथा स्वदेश अनुराग के भाव जागृत हो जाते है.
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मुग़ल सम्राट अकबर एक महत्वकांक्षी शासक था. वह सम्पूर्ण भारत पर अपने साम्राज्य का विस्तार चाहता था. उसने अनेक छोटे – छोटे राज्यों को अपने अधीन करने के बाद मेवाड़ राज्य पर चड़ाई की. उस समय मेवाड़ में राणा उदय सिंह का शासन था.
राणा उदय सिंह के साथ युद्ध में अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चितौड़ सहित राज्य के बड़े भाग पर अधिकार कर लिया. राणा उदय सिंह ने उदयपुर नामक नई राजधानी बसाई.
सन 1572 में प्रताप के शासक बनने के समय राज्य के सामने बड़ी संकटपूर्ण स्थिति थी. शक्ति और साधनों से सम्पन्न आक्रामक मुग़ल सेना से मेवाड़ की स्वतन्त्रता और परम्परागत सम्मान की रक्षा का कठिन कार्य प्रताप के साहस की प्रतीक्षा कर रहा था.
अकबर का साम्राज्य विस्तार की लालसा तथा राणा प्रताप की स्वतंत्रता – रक्षा के दृढ संकल्प के बीच संघर्ष होना स्वाभाविक था. अकबर ने राणा प्रताप के विरुद्ध ऐसी कूटनीतिक व्यूह रचना की थी कि उसे मुग़ल सेना के साथ ही मान सिंह के नेतृत्व वाली राजपूत सेना से भी संघर्ष करना पड़ा.
इतना ही नहीं, राणा का अनुज शक्ति सिंह भी मुग़ल सेना की ओर से युद्ध में सम्मिलत हुआ. ऐसी विषम स्थिति में महाराणा ने साहस नहीं छोड़ा और अपनी छोटी सी सेना के साथ हल्दीघाटी में मोर्चा जमाया.
हल्दीघाटी युद्ध में मुग़ल सेना को नाको चने चबाने पड़े. राणा के संहारक आक्रमण से मुग़ल सेना की भारी क्षति हुई, किन्तु विशाल मुग़ल सैन्य शक्ति के दबाव से घायल राणा को युद्ध – भूमि से हटना पड़ा.
इस घटना से सरदार झाला, राणा के प्रिय घोड़े चेतक और अनुज शक्ति सिंह को विशेष प्रसिद्धि मिली. सरदार झाला ने राणा प्रताप को बचाने के लिए आत्म बलिदान किया. उसने स्वयं राणा का मुकुट पहन लिया, जिससे शत्रु झाला को ही राणा प्रताप समझकर उस पर प्रहार करने लगे.
घोड़े चेतक ने घायल राणा को युद्ध भूमि से बाहर सुरक्षित लाकर ही अपने प्राण त्यागे तथा शक्ति सिंह ने संकट के समय में राणा की सहायता कर अपने पहले आचरण पर पश्चाताप किया. हल्दी घाटी का युद्ध भारतीय इतिहास की प्रसिद्ध घटना है. इससे अकबर और राणा के बीच संघर्ष का अंत नहीं हुआ बल्कि लम्बे संघर्ष की शुरुआत हुई.
राणा प्रताप ने समय और परिस्थितयो के अनुसार अपनी युद्ध नीति को बदला तथा शत्रु सेना का यातायात रोक कर और छापामार युद्ध की नीति अपनाकर मुग़ल सेना को भारी हानि पहुंचाई.
इससे मुग़ल सेना के पैर उखड़ने लगे. धीरे – धीरे राणा प्रताप ने चितौड़, अजमेर तथा मंडलगढ़ को छोड़कर मेवाड़ का सारा राज्य मुगलों के अधिकार से मुक्त करा लिया.
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20 वर्षो से अधिक समय तक राणा प्रताप ने मुगलों से संघर्ष किया. इस अवधि में उन्हें कठिनाइयों तथा विषम परिस्थितयों का सामना करना पड़ा. सारे किले उनके हाथ से निकल गये थे.
उन्हें परिवार के साथ एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर भटकना पड़ा. कई अवसरों पर उनके परिवार को जंगली फलों से ही भूख शांत करनी पड़ी. फिर भी राणा प्रताप का दृढ संकल्प हिमालय के समान अडिग और अपराजेय बना रहा.
उन्होंने प्रतिज्ञा की थी की ,” मैं मुगलों की अधीनता कदापि स्वीकार नहीं करूँगा और जब तक चित्तौड़ पर पुनः अधिकार न कर लूँगा तब तक पत्तलों पर भोजन करूँगा और जमीन पर सोऊंगा.
उनकी इस प्रतिज्ञा का मेवाड़ की जनता पर व्यापक प्रभाव पड़ा और वह संघर्ष में राणा प्रताप के साथ जुडी रही.
संकट की इस घडी में मेवाड़ की सुरक्षा के लिए उनके मन्त्री भाभाशाह ने अपनी सारी सम्पत्ति राणा प्रताप को सौंप दी. वर्ष 1572 में सिहांसन पर बैठने के समय से लेकर सन 1597 में अपनी मृत्यु तक राणा प्रताप ने अद्भुत साहस, शौर्य तथा बलिदान की भावना का परिचय दिया.
मेवाड़ उत्तरी भारत का एक महत्वपूर्ण तथा शक्तिशाली राज्य था. राणा सांगा के समय में राजस्थान के लगभग सभी शासक उनके अधीन संगठित हुए थे. अतः मेवाड़ की प्रभुसत्ता की रक्षा तथा उसकी स्वतंत्रता को बनाये रखना राणा प्रताप के जीवन का सर्वोपरी लक्ष्य था. इसी के लिए वे जिए और मरे.
युवराज अमर सिंह सुख – सुविधापूर्ण जीवन के अभ्यस्त थे. महाराणा को अपनी मरणासन्न अवस्था में इसी बात की सर्वाधिक चिंता थी की अमर मेवाड़ की रक्षा के लिए संघर्ष नहीं कर सकेगा. इसी चिंता के कारण उनके प्राण शरीर नहीं छोड़ पा रहे थे. वे युवराज और राजपूत सरदारों से मेवाड़ की रक्षा का वचन चाह रहे थे.
अमर सिंह व उपस्थित राजपूत सरदारों ने उनकी मनोदशा को समझकर अंतिम साँसों तक मेवाड़ को स्वतंत्र करने का संकल्प लिया. आश्वासन पाने पर उन्होंने प्राण त्याग दिए.
राणा प्रताप का नाम हमारे इतिहास में महान देशभक्त के रूप में अमर है. वीर महाराणा प्रताप के अदम्य साहस और शौर्य की सराहना करते हुए प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार कर्नल टाड ने लिखा है की-
” अरावली की पर्वतमाला में एक भी घाटी ऐसी नहीं है, जो राणा प्रताप के पुण्य कार्य से पवित्र न हुई हो, चाहे वहां उनकी विजय हुई या यशस्वी पराजय.”
प्रताप का जीवन स्वतंत्रता – प्रेमियों को सतत प्रेरणा प्रदान करने का अनंत स्रोत है. उनका वीरतापूर्ण संघर्ष साधारण जन – मानस में उत्साह की भावना जागृत करता रहेगा.
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दोस्तों ! यह था महाराणा प्रताप का जीवन – परिचय. इसमें हमने उनके जीवन के लगभग सभी अंशो को टच किया है. आपको महाराणा प्रताप की जीवनी कैसी लगी. हमें अपने कमेंट के द्वारा बताये.
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santosh sah says
thank you very much
Bhomaram panwar meghwal says
जय जय महाराणा प्रताप
जय जय भामाशाह
जय जय राजस्थान
जय जय भारत माता
शुभम चौहान says
जय महाराणा
हमे गर्व है अपने हिन्दू स्वाभिमानी शेर पर
जय राजपूताना
जय श्री राम
Surendra mahara says
Thankyou so much aajmi ji.
जमशेद आज़मी says
महाराणा प्रताप के ऊपर बहुत ही बेहतरीन लेख प्रस्तुत किया है आपने। महाराणा प्रताप का जीवन कठिनाइयों के बीच बीता। पर उन्होंने साहस और वीरता से काम लिया। आज हम सभी उनके बारे में पढ़ते हैं और गर्व से भर उठते हैं।