कबीर दास जी के दोहे Kabir Das Ke Dohe Hindi Meaning
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब.
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी समय के बारे में कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो, कुछ ही समय में जब जीवन ख़त्म हो जायेगा फिर तुम कुछ नहीं कर पाओगे.
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट.
पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि अभी राम नाम की लूट मची है, अभी तुम भगवान का जितना नाम लेना चाहो ले लो नहीं तो फिर समय निकल जाने पर अर्थात मर जाने के बाद पछताओगे कि मैंने तब भगवान राम की पूजा क्यों नहीं की.
माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख.
माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि कुछ भी माँगना मरने के बराबर है इसलिए किसी से भी भीख मत मांगो. सतगुरु जी कहते हैं कि मांगने से मर जाना बेहतर है अर्थात अपने पुरुषार्थ से स्वयं चीजों को प्राप्त करो, उसे किसी से मांगो मत.
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय.
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि कभी भी एक छोटे से तिनके की निंदा मत करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है. अगर कभी वह तिनका उड़कर आपके आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है.
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय.
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि मन में धीरज रखने से ही सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से भी सींचने लगे फिर भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा.
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर.
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन में जो है वह हलचल शांत नहीं होती. कबीर जी ऐसे व्यक्ति को सलाह देते है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलने की सोचे.
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान.
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि किसी भी सज्जन या साधु की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को हमें समझना चाहिए. हमेशा तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का.
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त.
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोषों को देखता है तो इन्हें देखकर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत.
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार.
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार में व्यक्ति को मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है. यह मानव शरीर उसी तरह है जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता.
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी अपने जीवन में इस संसार में आकर बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और इस संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो !
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना.
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है. इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी इन दोनों में से कोई सत्य को न जान पाया.
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात.
एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात.
हिन्दी अर्थ : कबीर जी कहते है कि जैसे पानी के बुलबुले है, ठीक इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है. जैसे सुबह होते ही सारे तारे छिप जाते हैं, वैसे ही यह शरीर भी एक दिन नष्ट हो जाएगा.
कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ.
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार के व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है. सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है.
कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी.
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि अज्ञान की नींद में सोए क्यों रहते हो ? ज्ञान के प्रकाश को हासिल कर प्रभु का नाम लो. सजग होकर प्रभु का ध्यान करो. वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें गहन निद्रा में सो ही जाना है, जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं ? प्रभु का नाम स्मरण क्यों नहीं करते ?
आछे / पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत.
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत.
हिन्दी अर्थ : देखते ही देखते सब भले दिन – अच्छा समय बीतता चला गया. तुमने प्रभु से लौ नहीं लगाई, प्यार नहीं किया अब समय बीत जाने पर पछताने से क्या मिलेगा ? पहले जागरूक न थे- ठीक उसी तरह जैसे कोई किसान अपने खेत की रखवाली ही न करे और देखते ही देखते पंछी उसकी फसल बर्बाद कर जाएं.
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय.
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय.
हिन्दी अर्थ : रात नींद में नष्ट कर दी और सोते रहे, दिन में भोजन करने से फुर्सत नहीं मिली यह मनुष्य जन्म हीरे के समान ही बहुमूल्य था जिसे तुमने व्यर्थ कर दिया कुछ सार्थक किया नहीं तो जीवन का क्या मूल्य बचा ? बस एक कौड़ी.
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय.
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान को याद करते हैं पर सुख में कोई भी नहीं करता. अगर सुख में भी भगवान को याद किया जाए तो फिर दुःख हो ही क्यों !
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय.
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि हे भगवान ! तुम मुझे इतना दो कि जिसमे बस मेरा गुजारा चल जाये, मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूँ और आने वाले मेहमानो को भी भोजन करा सकूँ.
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय.
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जब मैं इस दुनिया में बुराई को खोजने चला तो मुझे कोई भी बुरा न मिला. जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा तो कोई नहीं है.
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय.
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय.
हिन्दी अर्थ : बड़ी – बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मौत के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि अगर कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा.
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय.
सार – सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार में ऐसे सज्जन लोगो की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है. जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे.
तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई.
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना तो सरल है, किन्तु मन को योगी बनाना कुछ ही व्यक्तियों का काम है. अगर मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं.
कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय.
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में भी काम आए. सिर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते हुए तो किसी को नहीं देखा.
माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर.
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है और न मन. शरीर न जाने कितनी बार मर चुका होता है पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं.
मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी मनुष्य मात्र को समझाते हुए कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो, उन्हें तुम अपने बलबूते पर पूर्ण नहीं कर सकते. यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई नही खाएगा.
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही.
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जब मैं अपने अहंकार में डूबा था तब प्रभु को न देख पाता था, परन्तु जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सारा अन्धकार मिट गया. ज्ञान की ज्योति से अहंकार लगातार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया.
कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन.
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि कहते सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया. कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता. आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है.
कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई.
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि समुद्र की लहरों में मोती आकर बिखर गए. बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है. इसका अर्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व सिर्फ उसका जानकार ही जान पाता है.
जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई.
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो उस गुण की कीमत होती है. पर जब ऐसा गाहक नहीं मिल पाता, तब वह गुण कौड़ी के भाव चला जाता है.
कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस.
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि हे मानव ! तू क्यों गर्व करता है ? यह काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है. मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर भी तुझे मार डाले.
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ.
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जो कोशिश करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ भी नहीं पाते.
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि.
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि.
हिन्दी अर्थ : अगर कोई व्यक्ति सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है. इसलिए वह पहले ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है.
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप.
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ठीक है. जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है.
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय.
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए. क्योंकि वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियों को बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है.
हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास.
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास.
हिन्दी अर्थ : यह मानव का नश्वर शरीर अंत समय में लकड़ी की तरह जलता है और केश घास की तरह जल उठते हैं. सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से बहुत भर जाता है.
जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं.
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है, वह अस्त भी होगा. जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा. जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह पक्का जाएगा.
झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद.
खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि अरे ओ जीव ! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है ? देख तेरा यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा हुआ है.
ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस.
भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस.
हिन्दी अर्थ : कबीर जी सांसारिक लोगो के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता.
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत.
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत.
हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को कभी नहीं छोड़ता. जिस तरह चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता को नहीं छोड़ता.
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Nice yar
kabeer ji was god under stand through spritual knowledge of sant am pal ji maharaj
thanks