25 संस्कृत श्लोक जो ज़िन्दगी का असली महत्व बताते है ! Sanskrit Slokas With Meaning in Hindi
संस्कृत श्लोक हिन्दी – अर्थ सहित Sanskrit Shlok Hindi Arth Sahit
सीखने की चाह हो तो व्यक्ति कही से भी कुछ भी अच्छी बातें सीख सकता है. मैंने भी अपने स्कूल के दिनों में संस्कृत विषय का अध्ययन किया था उसमे मुझे संस्कृत की कहानियों के अलावा संस्कृत श्लोक काफी अच्छे लगते थे. ये श्लोक समझने में जितने आसान होते थे उतना ही ज्यादा इनसे ज्ञान की बातें सीखने को मिलती थी.
यही मेरे जीवन का वह समय था जहाँ से मेरे अंदर नैतिक शिक्षा बढ़ी और सीखने की ललक जागी. आज इस पोस्ट में यहाँ मैं आपके साथ बेहतरीन संस्कृत श्लोक शेयर कर रहा हूँ जिनका हिन्दी अर्थ भी साथ में दिया हुआ है. मेरी आपसे रिक्वेस्ट है की इन श्लोक को आप अच्छी तरह से पढ़े और अपनी लाइफ में इन्हें प्रैक्टिकल करना शुरू करे.
यकीन मानिए यह संस्कृत श्लोक मेरी तरह आपकी भी सोच में बदलाव लाएगी और आपकी आध्यातिम्क ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करेगी.
Sanskrit Slokas With Meaning in Hindi
संस्कृत श्लोक 1: स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा !
सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् !!
हिन्दी अर्थ : किसी व्यक्ति को आप चाहे कितनी ही सलाह दे दो किन्तु उसका मूल स्वभाव नहीं बदलता ठीक उसी तरह जैसे ठन्डे पानी को उबालने पर तो वह गर्म हो जाता है लेकिन बाद में वह पुनः ठंडा हो जाता है.
संस्कृत श्लोक 2: अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते !
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः !!
हिन्दी अर्थ : किसी जगह पर बिना बुलाये चले जाना, बिना पूछे बहुत अधिक बोलते रहना, जिस चीज या व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए उस पर विश्वास करना मुर्ख लोगो के लक्षण होते है.
संस्कृत श्लोक 3: यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः !
चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता !!
हिन्दी अर्थ : अच्छे लोग वही बात बोलते है जो उनके मन में होती है. अच्छे लोग जो बोलते है वही करते है. ऐसे पुरुषो के मन, वचन व कर्म में समानता होती है.
संस्कृत श्लोक 4: षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता !
निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता !!
हिन्दी अर्थ : किसी व्यक्ति के बर्बाद होने के 6 लक्षण होते है – नींद, गुस्सा, भय, तन्द्रा, आलस्य और काम को टालने की आदत.
संस्कृत श्लोक 5: द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढां शिलाम् !
धनवन्तम् अदातारम् दरिद्रं च अतपस्विनम् !!
हिन्दी अर्थ : दो प्रकार के लोगो के गले में पत्थर बांधकर उन्हें समुद्र में फेंक देना चाहिए. पहले वे व्यक्ति जो अमीर होते है पर दान नहीं करते और दूसरे वे जो गरीब होते है लेकिन कठिन परिश्रम नहीं करते.
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संस्कृत श्लोक 6: यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि !!
हिन्दी अर्थ : वह व्यक्ति जो अलग – अलग जगहों या देशो में घूमता है और विद्वानों की सेवा करता है उसकी बुद्धि उसी तरह से बढती है जैसे तेल का बूंद पानी में गिरने के बाद फ़ैल जाता है.
संस्कृत श्लोक 7: परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः !
अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम् !!
हिन्दी अर्थ : अगर कोई अपरिचित व्यक्ति आपकी सहायता करे तो उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह ही महत्व दे वही अगर आपका परिवार का व्यक्ति आपको नुकसान पहुंचाए तो उसे महत्व देना बंद कर दे. ठीक उसी तरह जैसे शरीर के किसी अंग में चोट लगने पर हमें तकलीफ पहुँचती है वही जंगल की औषधि हमारे लिए फायदेमंद होती है.
संस्कृत श्लोक 8: येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः !
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति !!
हिन्दी अर्थ : जिन लोगो के पास विद्या, तप, दान, शील, गुण और धर्म नहीं होता. ऐसे लोग इस धरती के लिए भार है और मनुष्य के रूप में जानवर बनकर घूमते है.
संस्कृत श्लोक 9: अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः !
उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् !!
हिन्दी अर्थ : निम्न कोटि के लोगो को सिर्फ धन की इच्छा रहती है, ऐसे लोगो को सम्मान से मतलब नहीं होता. एक मध्यम कोटि का व्यक्ति धन और सम्मान दोनों की इच्छा करता है वही एक उच्च कोटि के व्यक्ति के सम्मान ही मायने रखता है. सम्मान धन से अधिक मूल्यवान है.
संस्कृत श्लोक 10: कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति !
उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम् !!
हिन्दी अर्थ : जिस तरह नदी पार करने के बाद लोग नाव को भूल जाते है ठीक उसी तरह से लोग अपने काम पूरा होने तक दूसरो की प्रसंशा करते है और काम पूरा हो जाने के बाद दूसरे व्यक्ति को भूल जाते है.
संस्कृत श्लोक 11: न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि !
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् !!
हिन्दी अर्थ : इसे न ही कोई चोर चुरा सकता है, न ही राजा छीन सकता है, न ही इसको संभालना मुश्किल है और न ही इसका भाइयो में बंटवारा होता है. यह खर्च करने से बढ़ने वाला धन हमारी विद्या है जो सभी धनो से श्रेष्ठ है.
संस्कृत श्लोक 12: शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पण्डितः !
वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा !!
हिन्दी अर्थ : सौ लोगो में एक शूरवीर होता है, हजार लोगो में एक विद्वान होता है, दस हजार लोगो में एक अच्छा वक्ता होता है वही लाखो में बस एक ही दानी होता है.
संस्कृत श्लोक 13: विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन !
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते !!
हिन्दी अर्थ : एक राजा और विद्वान में कभी कोई तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि एक राजा तो केवल अपने राज्य में सम्मान पाता है वही एक विद्वान हर जगह सम्मान पाता है.
संस्कृत श्लोक 14: आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः !
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति !!
हिन्दी अर्थ : मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है. मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र परिश्रम होता है क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं रहता.
संस्कृत श्लोक 15: यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् !
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति !!
हिन्दी अर्थ : जिस तरह बिना एक पहिये के रथ नहीं चल सकता ठीक उसी तरह से बिना पुरुषार्थ किये किसी का भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता.
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संस्कृत श्लोक 16: बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः !
श्रुतवानपि मूर्खो सौ यो धर्मविमुखो जनः !!
हिन्दी अर्थ : जो व्यक्ति अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता है वह व्यक्ति बलवान होने पर भी असमर्थ, धनवान होने पर भी निर्धन व ज्ञानी होने पर भी मुर्ख होता है.
संस्कृत श्लोक 17: जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं !
मानोन्नतिं दिशति पापमपा करोति !!
हिन्दी अर्थ : अच्छे दोस्तों का साथ बुद्धि की जटिलता को हर लेता है, हमारी बोली सच बोलने लगती है, इससे मान और उन्नति बढती है और पाप मिट जाते है.
संस्कृत श्लोक 18: चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः !
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः !!
हिन्दी अर्थ : इस दुनिया में चन्दन को सबसे अधिक शीतल माना जाता है पर चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होती है लेकिन एक अच्छे दोस्त चन्द्रमा और चन्दन से शीतल होते है.
संस्कृत श्लोक 19: अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् !
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् !!
हिन्दी अर्थ : यह मेरा है और यह तेरा है, ऐसी सोच छोटे विचारो वाले लोगो की होती है. इसके विपरीत उदार रहने वाले व्यक्ति के लिए यह पूरी धरती एक परिवार की तरह होता है.
संस्कृत श्लोक 20: पुस्तकस्था तु या विद्या, परहस्तगतं च धनम् !
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् !!
हिन्दी अर्थ : किताब में रखी विद्या व दूसरे के हाथो में गया हुआ धन कभी भी जरुरत के समय काम नहीं आते.
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संस्कृत श्लोक 21: विद्या मित्रं प्रवासेषु, भार्या मित्रं गृहेषु च !
व्याधितस्यौषधं मित्रं, धर्मो मित्रं मृतस्य च !!
हिन्दी अर्थ : विद्या की यात्रा, पत्नी का घर, रोगी का औषधि व मृतक का धर्म सबसे बड़ा मित्र होता है.
संस्कृत श्लोक 22: सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् !
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः !!
हिन्दी अर्थ : बिना सोचे – समझे आवेश में कोई काम नहीं करना चाहिए क्योंकि विवेक में न रहना सबसे बड़ा दुर्भाग्य है. वही जो व्यक्ति सोच – समझ कर कार्य करता है माँ लक्ष्मी उसी का चुनाव खुद करती है.
संस्कृत श्लोक 23: उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः !
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः !!
हिन्दी अर्थ : दुनिया में कोई भी काम सिर्फ सोचने से पूरा नहीं होता बल्कि कठिन परिश्रम से पूरा होता है. कभी भी सोते हुए शेर के मुँह में हिरण खुद नहीं आता.
संस्कृत श्लोक 24: विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् !
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् !!
हिन्दी अर्थ : विद्या हमें विनम्रता प्रदान करती है, विनम्रता से योग्यता आती है व योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है और इस धन से हम धर्म के कार्य करते है और सुखी रहते है.
संस्कृत श्लोक 25: माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः !
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा !!
हिन्दी अर्थ : जो माता – पिता अपने बच्चो को पढ़ाते नहीं है ऐसे माँ – बाप बच्चो के शत्रु के समान है. विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पा सकता वह वहां हंसो के बीच एक बगुले की तरह होता है.
संस्कृत श्लोक 26: सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् !
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् !!
हिन्दी अर्थ : सुख चाहने वाले को विद्या नहीं मिल सकती है वही विद्यार्थी को सुख नहीं मिल सकता. इसलिए सुख चाहने वालो को विद्या का और विद्या चाहने वालो को सुख का त्याग कर देना चाहिए.
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Happy singh says
hello सर आपकी इस वेबसाइट पर हमको बहुत ही अच्छी जानकारी मिली है मैं चाहता हु आप ऐसे ही हमको कुछ नया देते रहे है आपका बहुत बहुत धन्यावाद
Uday singh says
सर आपकी इस वेबसाइट पर हमको बहुत ही अच्छी जानकारी मिली है मैं चाहता हु आप ऐसे ही हमको कुछ नया देते रहे है आपका बहुत बहुत धन्यावाद
sanjay kushwah says
आपके ये श्लोक बहुत ही शानदार है मुझे समझ नहीं आ रहा में कैसे आपको धन्यवाद करू
SATISH CHANDRA says
यहां पर अपने बहुत ही अच्छे अच्छे श्लोक लिखे है अच्छे लगे.
Sakshi says
10 / 7
दुर्गेश कुमार says
आपके सारे श्लोक सरगर्भित है कृपा करके बताये की 5 नंबर का श्लोक आप कंहा से लिए है आपकी बहुत कृपा होगी
harshita saini says
thank you so much and the sloke is writteen in my of class-6th . i like you thank you so much
Rahul Singh Tanwar says
यहां पर अपने बहुत ही अच्छे अच्छे श्लोक लिखे है अच्छे लगे
Gaurav says
Dhanyawaad.. I always admired the knowledge that sanskrit gives ..
apne prayason ko jaaree rkhey jisse sanskrit ka knowledge online available ho skey ..
ALOK KUMAR says
बड़े ही आश्चर्य की बात है कि, ऋषि मुनि जो कि हमारे ही पूर्वज थे उन्होंने उस समय मानव के मूलभूत बाधाओं को पहचान कर उसका निवारण श्लोको के रूप में हमें बताया; परन्तु ये निवारण, जो श्लोको के रूप में हैं, आज भी प्रासंगिक हैं, आज भी उपयोगी हैं । परन्तु पाश्चात्य शिक्षा पद्दति के कारण ये उपयोगी श्लोक आजकल गुमनामी के अन्धकार में चले गए हैं। इन्हे इंटरनेट के माद्यम से प्रकाश में लाने के आपके प्रयास को मैं सादर नमन तथा सराहना करता हूँ।
ज्ञान को अंधकार से निकाल कर प्रकाश में लाना ज्ञान को पुनर्जीवन देने के सामान है, और मुझे आप जैसे नागरिकों पर गर्व है जो इस प्रकार के परम-उपयोगी कार्य कर रहें हैं ।
मेरे लिए श्लोक संख्या 4, 14, 16, 23, 26 अत्यंत उपयोगी हैं.