महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े 5 बेस्ट प्रेरक प्रसंग
दोस्तों ! आज 2 अक्टूबर है यानी हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी जन्मदिवस. आप सभी पाठको को 2 अक्टूबर की हार्दिक शुभकामनाएं. महात्मा गाँधी का सम्पूर्ण जीवन एक ऐसी किताब की तरह है जो हमें हर पेज को पलटने पर एक नयी शिक्षा देता है.
आज हम गाँधी के जीवन से जुड़े 5 प्रेरक प्रसंग को आपके साथ शेयर कर रहे है. जो आपको गाँधी जी के जीवन की गहराई और उनके जीवन सिद्धांतो से प्रेरणा देंगे.
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प्रसंग न. 1 – नक़ल करना अपराध है
बात उन दिनों की है जब गाँधीजी अल्फ्रेड हाईस्कूल में अपनी आरंभिक शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. एक बार उनके स्कूल में निरीक्षण के लिए विद्यालय निरीक्षक आये हुए थे.
उनके शिक्षक ने छात्रो को हिदायत दे रखी थी की निरीक्षक पर आप सब का अच्छा प्रभाव पड़ना चाहिए. जब निरीक्षक गाँधी जी की क्लास में आये तो उन्होंने बच्चो की परीक्षा लेने के लिए छात्रो को पांच शब्द बताकर उनके वर्तनी लिखने को कहा.
निरीक्षक की बात सुनकर सारे बच्चे वर्तनी लिखने में लग गये. जब बच्चे वर्तनी लिख ही रहे थे की शिक्षक ने देखा की गाँधी जी ने एक शब्द की वर्तनी गलत लिखी है.
उन्होंने गाँधी जी को संकेत कर बगल वाले छात्र से नक़ल कर वर्तनी ठीक लिखने को कहा. किन्तु गाँधी जी ऐसा कहाँ करने वाले थे. उन्होंने ऐसा नहीं किया. उन्हें नक़ल करना अपराध लगा. निरीक्षक के जाने के बाद उन्हें शिक्षक से डांट खानी पड़ी.
इस प्रसंग से सीख – गाँधी जी का यह प्रसंग हमें बताता है कि हमें परीक्षा में कभी भी नक़ल नहीं करनी चाहिए बल्कि हमें जितना भी उस विषय के बारे में जानकारी पता है उसका उत्तर लिखना चाहिए. नक़ल करने से कभी भी कोई छात्र परीक्षा में पास नहीं हो सकता. इसलिए हमें ईमानदारी से परीक्षा देनी चाहिए.
प्रसंग न. 2 – कभी झूठ मत बोलो
उन्ही दिनों की एक दूसरी घटना है. गाँधी जी के बड़े भाई कर्ज में फंस गये थे. अपने भाई को कर्ज से मुक्त कराने के लिए गाँधी जी ने अपना सोने का कड़ा बेंच दिया और उसके पैसे अपने भाई को दे दिए.
मार-खाने के डर से गाँधी जी ने अपने माता-पिता से झूठ बोला कि कड़ा कही गिर गया है. किन्तु झूठ बोलने के कारण गाँधी जी का मन स्थिर नहीं हो पा रहा था. उन्हें अपनी गलती का अहसास हो रहा था और उनकी आत्मा उन्हें बार – बार यह बोल रही थी की झूठ नहीं बोलना चाहिए.
गाँधी जी ने अपना अपराध स्वीकार किया और उन्होंने सारी बात एक कागज में लिखकर पिताजी को बता दी. गाँधी जी ने सोचा की जब पिता जी को मेरे इस अपराध की जानकारी होगी तो वह उन्हें बहुत पीटेंगे.
लेकिन पिता ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. वह बैठ गये और उनके आँखों से आंसू आ गये. गाँधी जी को इस बात से बहुत चोट लगी. उन्होंने महसूस किया की प्यार हिंसा से ज्यादा असरदार दंड दे सकता है.
इस प्रसंग से सीख – दोस्तों ! गाँधी जी ने अपनी इस छोटी से उम्र में झूठ न बोलने की शिक्षा ग्रहण कर ली थी. ऐसी ही आवाज हमारे अन्दर भी आती है जब हम किसी से झूठ बोलते है किन्तु हम उस आवाज पर Belive नहीं करते और इसे नजरंदाज करके हम सबसे बड़ी गलती कर देते है.
हमें अपने जीवन में कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए क्योंकि झूठ का कोई वजूद नहीं है और इससे हम किसी और को नहीं बल्कि खुद को ही धोखा देते है.
प्रसंग न. 3 – मांस को त्यागो और हिंसा मत करो
गाँधी जी ने अपने जीवन में कभी भी मांस को हाथ नहीं लगाया. किन्तु एक बार उन्होंने मांस का सेवन किया था. जब गाँधी जी ने मांस खा लिया उस रात को गाँधी जी को पूरी रात अपने पेट में बकरे की बोलने की आवाज महसूस हुई. तब से गाँधी जी ने अपने पूरे जीवन में कभी भी मांस को हाथ तक नहीं लगाया और अहिंसा का पालन करने की ठान ली.
इस प्रसंग से सीख – दोस्तों ! मांस वह खाता है जो मांसाहारी होता है और जिसके दांत मांस खाने के लिए बने होते है. जब हम किसी भी जानवर का मांस खाते है तो हम भी कही न कही उस जानवर की मौत के जिम्मेदार होते है. इसलिए हमें हिंसा को त्यागकर अहिंसा को अपनाना चाहिए और मांस का त्याग करना चाहिए.
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प्रसंग न. 4 – गलती की है तो माफ़ी माँगो
गाँधी जी एक बार अपनी यात्रा पर निकले थे. तब उनके साथ उनके एक अनुयायी आनंद स्वामी भी थे. यात्रा के दौरान आनंद स्वामी की किसी बात को लेकर एक व्यक्ति से बहस हो गई और जब यह बहस बढ़ी तो आनंद स्वामी ने गुस्से में उस व्यक्ति को एक थप्पड़ मार दिया.
जब गाँधी को इस बात का पता चला तो उन्हें आनंद जी की यह बात बहुत बुरी लगी. उन्हें आनंद जी का एक आम आदमी को थप्पड़ मारना अच्छा नहीं लगा.
इसलिए उन्होंने आनंद जी को बोला की वह इस आम आदमी से माफ़ी मांगे. गाँधी जी ने उनको बताया की अगर यह आम आदमी आपकी बराबरी का होता तो क्या आप तब भी इन्हें थप्पड़ मार देते.
गाँधी जी की बात सुनकर आनंद स्वामी को अपनी गलती का अहसास हुआ. उन्होंने उस आम आदमी से इस बात को लेकर माफ़ी मांगी.
इस प्रसंग से सीख – हमें कभी भी अपने ऊपर घमंड नहीं करना चाहिए. आनंद जी को गाँधी जी का अनुयायी होने का घमंड था.
लेकिन अगर वही कोई उनके टक्कर का आदमी होता तो वे उसके साथ ऐसा करने से पहले कई बार सोचते. इसलिए हमें कभी भी किसी गरीब या लाचार आदमी से लड़ना नहीं चाहिए. अगर कभी ऐसी गलती हो भी जाए तो विनम्रता से उस व्यक्ति से माफ़ी मांग ले.
प्रसंग न. 5 – छूत – अछूत को त्याग दो
यह बात उन दिनों की है जब महात्मा गांधी जी के पिता जी का तबादला पोरबंदर से राजकोट हो गया था. जहाँ गाँधी जी रहते थे वही उनके पड़ोस में एक सफाईकर्मी भी रहता था.
गाँधी जी उसे बहुत पसंद करते थे. एक बार किसी समारोह के मौके पर गाँधी जी को मिठाई बाँटने का काम सौंपा गया. गाँधी जी सबसे पहले मिठाई पड़ोस में रहने वाले सफाई कर्मी को देने लगे.
जैसे ही गाँधी जी ने उसे मिठाई दी वह गाँधी जी से दूर हटते हुए बोला कि ” मैं अछूत हूँ इसलिए मुझे मत छुएं ”. गाँधी जी को यह बात बुरी लगी और उन्होंने उस सफाई वाले का हाथ पकड़कर मिठाई पकड़ा दी और उससे बोले कि ” हम सब इंसान है, छूत – अछूत कुछ भी नहीं होता. गाँधी जी बात सुनकर सफाईकर्मी के आँसू निकल गये.
इस प्रसंग से सीख – यह कहानी हमें बताती है की गाँधी जी का ह्रदय कितना विशाल था. गाँधी जी के ज़माने में छूआछूत का बोलबाला था. उनका उस ज़माने में अपनी ऐसी सोच रखना उनकी महानता को दर्शाता है.
हमें गाँधी जी के इस प्रसंग से यह सीख अवश्य लेनी चाहिए की हम कभी भी किसी के साथ छूआछूत नहीं करेंगे. ऐसा करने पर हम किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि मानवता का दिल दुखाते है जो बिलकुल भी उचित नहीं. इसलिए छूआछूत का विरोध करे और इसे अपने जीवन से जड़ से उखाड़ फेंके.
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Achhilekh says
महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े बहुत ही अच्छे इंफॉर्मेशन आपने शेयर की है। धन्यवाद
shivbihari sahu charbhatha mungeli says
Aapna acchi kahani sar kia hai prana pad
Firoz Afridi says
Thanks bro
DILIP RATHORE says
thanks a lot sir
you are doing a great job
keep motivating us..
Dharam says
bahut he accha article hai sir
Neeraj says
very infirmative article. such a mahatma gandhi is great.
Neeraj says
sir apne bahut hi achhi kahani share ki hai. padhkar acha lga.