राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की प्रेरणादायक जीवनी | Mahatma Gandhi Biography In Hindi
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को कौन नहीं जानता ? भारत वर्ष का बच्चा-बच्चा इनके नाम से वाकिफ है. इनका नाम सारे विश्व में सूर्य के समान चमकता है.
आँखों में गोल कांच का चश्मा, कमर में धोती (लुंगी) लपेटे, खुला नंगा बदन, एक हाथ में गीता व दुसरे में लाठी लिए दुबली-पतली काया. यह हुलिया है भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक Mahatma Gandhi का.
Mahatma Gandhi को लोग प्यार से ”बापू” कहते है. भारतीय स्वतंत्रता में योगदान के कारण महात्मा गाँधी ”राष्ट्रपिता” कहे जाते है. महात्मा गाँधी का जीवन हमारे लिए प्रेरणास्रोत है. उन्होंने जिस कार्य व्यवहार की दूसरो से अपेक्षा की वह स्वयं पहले उसे करते थे.
Mahatma Gandhi Life Essay in Hindi
महात्मा गाँधी के सिद्धांतो को गांधीवाद व उनके राजनितिक काल को गाँधी युग के नाम से जाना जाता है. उनका भारतीय जनमानस पर कितना गहरा प्रभाव था, इसकी झलक कवी सोहन लाल द्विवेदी की कविता से मिलती है-
”चल पड़े जिधर दो डग-मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर
पड़ गयी जिधर भी एक दृष्टि
गड गये कोटि दृग उसी ओर.”
महात्मा गाँधी का जन्म गुजरात प्रान्त के पोरबंदर नामक स्थान में 2 अक्टूबर सन 1869 को हुआ था. इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था. इनके पिता का नाम करमचंद था जो राजकोट रियासत के दीवान थे और माता का नाम पुतलीबाई था.
बालक मोहन पर परिवार की धार्मिक आस्था व सादगी का गहरा प्रभाव पड़ा. उन्होंने बचपन में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र व श्रवण कुमार के नाटक देखे थे. इन नाटको का सन्देश उनके सम्पूर्ण जीवन (कार्य-व्यवहार में) परिलक्षित होता है. सत्यनिष्ठा, अहिंसा, त्याग व मानव सेवा की झलक उनके जीवन के अनेक प्रसंगों में मिलती है.
गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा राजकोट में हुई. राजकोट में इन्होने मैट्रिक की परीक्षा पास की. एक विद्यार्थी के रूप में गाँधी जी पढाई में तो अच्छे नहीं थे लेकिन इन्होने आरम्भ से ही चरित्र-निर्माण की ओर विशेष ध्यान दिया.
गाँधीजी अल्फ्रेड हाईस्कूल में आरंभिक शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. एक बार उनके स्कूल में निरीक्षण के लिए विद्यालय निरीक्षक आये हुए थे. उनके शिक्षक ने छात्रो को हिदायत दे रखी थी की निरीक्षक पर आप सब का अच्छा प्रभाव पड़ना चाहिए.
निरीक्षक ने छात्रो को पांच शब्द बताकर उनके वर्तनी लिखने को कहा. बच्चे वर्तनी लिख ही रहे थे की शिक्षक ने देखा की गाँधी जी ने एक शब्द की वर्तनी गलत लिखी है तो उन्होंने गाँधी जी को संकेत कर बगल वाले छात्र से नक़ल कर वर्तनी ठीक लिखने को कहा. किन्तु गाँधी जी ने ऐसा नहीं किया. उन्हें नक़ल करना अपराध लगा. बाद में उन्हें शिक्षक से डांट खानी पड़ी.
उन्ही दिनों की एक दूसरी घटना है. गाँधी जी के बड़े भाई कर्ज में फंस गये थे. कर्ज चुकाने के लिए उन्होंने अपना सोने का कड़ा बेंच दिया. मार-खाने के डर से उन्होंने माता-पिता से झूठ बोला की कड़ा कही गिर गया है. झूठ बोलने के कारण उनका गाँधी जी का मन स्थिर नहीं हो पा रहा था.
गाँधी जी ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कागज में लिखकर पिता को दिया. उन्होंने सोचा की जब पिता जी को मेरे अपराध की जानकारी होगी तो वह उन्हें पीटेंगे. लेकिन पिता ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. वह बैठ गये और उनके आँखों से आंसू आ गये. गाँधी जी को इस बात से बहुत चोट लगी. उन्होंने महसूस किया की प्यार हिंसा से ज्यादा असरदार दंड दे सकता है.
इसी घटना से प्रभावित होकर उन्होंने अहिंसा व्रत के पालन का संकल्प लिया. इनकी शादी 13 साल की उम्र में कस्तूरबा से हुई. गाँधी जी के 4 पुत्र थे. इन्होने अपने जीवन में कभी मांस या शराब का सेवन नहीं किया. केवल एक बार गाँधी जी ने मांस खा लिया जिसके फलस्वरूप इनको रात भर पेट में बकरा बोलता महसूस हुआ इसके बाद इन्होने मांस को हाथ तक नहीं लगाया.
मैट्रिक के बाद गाँधी जी इंग्लैंड चले गये. इंग्लैंड से वे बैरिस्टरी पास कर वापिस आये. पहले इन्होने राजकोट में और फिर बम्बई में वकालत शुरू की. गाँधी जी बहुत ही संकोची स्वभाव थे जिस कारण इनकी वकालत न चल सकी.
अचानक इन्हें एक व्यापारी के मुकदमें की पैरवी करने के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा. वहां पर रेल का प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद उन्हें पहले दर्जे के कम्पार्टमेंट से धक्के मारकर निकाल दिया गया. उन दिनों अफ्रीका में रंग भेद नीति का बोलबाला था.
गोरे लोग काले अफ्रीकियो और एशियाई मूल के नागरिको से बुरा बर्ताव करते थे. गाँधी जी सोचते रहे और निर्णय लिया की मैं रंगभेद नीति के विरुद्ध लडूंगा. उनका कहना था की वे हमें तिरस्कार की दृष्टि से देखते है, इन अपमानो के आगे झुकना घोर पतन है. उन्होंने वहां अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध मोर्चे लगाये और सत्याग्रह शुरू किया और काले लोगो को उनका हक़ दिलाया. इस कार्य के लिए इन्हें जेल भी जाना पड़ा.
गाँधी जी सन 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे. वहां से आकर वे भारत को स्वतंत्र कराने में जुट गये. इन्होने भारतीयों को स्वदेशी अपनाने पर जोर दिया. उन्होंने भारत में फैली छुआछूत की कुरीति का भी जमकर विरोध किया. स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रियता के साथ ही साथ उन्होंने सामाजिक कार्यो और कुरीतियों के विरुद्ध भी लड़ाई जारी रखी. गाँधी जी भारत में राम राज्य देखना चाहते थे.
गाँधी जी का कहना था- ‘ यदि कोई निश्चित रूप से यह प्रमाणित कर देता है की अस्पृश्यता हिन्दू धर्म का अंग है तो मैं यह धर्म छोड़ दूंगा.
महात्मा गाँधी ने साबरमती में आश्रम के लिए नियम बनाये जिसमे सत्य बोलना, अहिंसा का भाव, ब्रह्मचर्य व्रत, भजन संयम, चोरी न करना,स्वदेशी वस्तुओ का प्रयोग करना सभी आश्रमवासियों को समान रूप से मानने पड़ते थे. चरखे की शुरुआत भी गाँधी जी ने यही से की थी.इन्होने जनता को भी चरखा अपनाने को कहा और खुद कपडा तैयार कर पहनने को कहा. गाँधी जी स्वयं चरखे पर सूत कातते थे.
गाँधी जी ने सन 1919 में असहयोग आन्दोलन चलाया और जेल गये. इनके प्रयतनो के परिणाम से अंग्रेजी सरकार ने सुधारो की घोषणा की, परन्तु इस घोषणा से गाँधी जी संतुष्ट नहीं हुए. सन 1929 में इन्होने फिर स्वतंत्रता का नारा लगाया. इस प्रकार गाँधी जी अनुचित कानूनों को तोड़ते और हर बार जेल जाते. गाँधी जी कई बार जेल गये.
गाँधी जी ने सन 1930 में ‘नमक कानून’ का विरोध किया और सन 1931 में लन्दन में गोलमेज कांफ्रेंस में सम्मलित हुए जो की असफल रही. सन 1942 में गाँधी जी ने भारत छोडो आन्दोलन चलाया. इस प्रकार गाँधी जी के साथ और भी लाखो लोगो को जेल में डाल दिया गया.
गाँधी जी के आचार-विचार से अनेक अंग्रेज अधिकारी भी प्रभावित थे. गाँधी जी पर जब मुकदमा चलाया जा रहा था तो अंग्रेज न्यायाधीस ब्रूम्स फील्ड ने कहा था- ‘मिस्टर गाँधी आपने अपना अपराध स्वीकार करके मेरा काम आसान कर दिया है, लेकिन क्या दंड उचित होगा, इसका निर्णय ही सभी न्यायधिशो के लिए कठिन होता है.
जवाहर लाल नेहरू ने ‘मेरी कहानी’ पुस्तक में गाँधी जी के लिए लिखा है- ‘ इस दुबले-पतले आदमी में इस्पात की सी मजबूती है, कुछ चट्टान जैसी दृढ़ता है, जो शारारिक ताकतों के सामने नहीं झुकती, फिर चाहे ये ताकते कितनी भी बड़ी क्यों न हो.’
आखिर में गाँधी जी को सफलता मिली. भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया. गाँधी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे. इनका विश्वास था की सत्य की ही हमेशा जीत होती है.
जब भारत आजाद हुआ तब चारो ओर हाहाकार मच गया.भाई-भाई का दुश्मन बन गया. तब लंगोटी धारी बापू इस आग को ठंडा करने के लिए देश के एक भाग से दुसरे भाग तक निकले.
30 जनवरी 1948 को गाँधी जी दिल्ली के बिड़ला मंदिर में प्रार्थना के लिए जा रहे थे, उसी समय नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. दिल्ली के राजघाट पर इनकी समाधि स्थित है. उनके समाधि स्थल पर श्रद्धा के पुष्प चढाने बड़ी संख्या में आज भी लोग जाते है.
संसार के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टाइन ने ठीक ही कहा था की आने वाली पीढ़ियों को यह विश्वास होना कठिन होगा की ऐसा महान व्यक्ति एक मनुष्य के रूप में कभी इस धरती पर आया था. गाँधी जी को उचित रूप से बींसवी शताब्दी का महानतम व्यक्ति माना जाता है.
महादेवी वर्मा ने बापू को श्रदांजलि देते हुए लिखा है-
” चीर कर भू-व्योम की प्राचीर हो तम की शिलाएं
अग्नि-शर सी ध्वंश की लहरे गला दें पथ दिशाएं
पग रहे, सीमा रहे, स्वर रागिनी सूने निलय की
शपथ धरती की तुझे औ आन है मानव-ह्रदय की
यह विराग हुआ, अमर-अनुराग का परिणाम
हे असि-धार पथिक ! प्रणाम ! ”
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Nyc bhai aapne bahut hi vadiya or atisunder article
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